भारत: सुप्रीम कोर्ट ने गुजरात सरकार को तीस्ता सीतलवाड़ की जमानत याचिका पर जवाब दाखिल करने का समय दिया

गुजरात सरकार का प्रतिनिधित्व कर रहे सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा कि सरकार की प्रतिक्रिया तैयार है लेकिन इसमें कुछ संशोधन की जरूरत है।

सुप्रीम कोर्ट ने गुजरात सरकार को तीस्ता सीतलवाड़ की जमानत याचिका पर जवाब दाखिल करने का समय दिया
Ahmadabad :Gujrat Police Crime branch produces Activist Teesta Setalvad in the court in Ahmedabad on Saturday, Jul 02, 2022.(PHOTO:IANS/Siddharaj Solanki)
नई दिल्ली, 25 अगस्त (आईएएनएस)। सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार को गुजरात सरकार को राज्य के तत्कालीन मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी सहित उच्च पदस्थ अधिकारियों को 2002 के दंगों के मामले में फंसाने के लिए कथित रूप से फर्जी दस्तावेज बनाने के आरोप में गिरफ्तार कार्यकर्ता तीस्ता सीतलवाड़ की जमानत पर जवाब दाखिल करने के लिए और समय दिया है।

गुजरात सरकार का प्रतिनिधित्व कर रहे सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा कि सरकार की प्रतिक्रिया तैयार है लेकिन इसमें कुछ संशोधन की जरूरत है।

न्यायमूर्ति यू. यू. ललित की अध्यक्षता वाली पीठ ने नोट किया कि कोई सलाखों के पीछे है और अदालत को इस बात की जांच करनी होगी कि क्या इस मामले में और कैद की जरूरत है? याचिकाकर्ता का प्रतिनिधित्व कर रहे वरिष्ठ अधिवक्ता कपिल सिब्बल ने कहा कि किसी भी अतिरिक्त दिन की कैद गलत है।

शीर्ष अदालत ने दलीलें सुनने के बाद मामले की अगली सुनवाई मंगलवार को तय की।

सीतलवाड़ को पूर्व वरिष्ठ पुलिस अधिकारियों आर. बी. श्रीकुमार और संजीव भट के साथ, अहमदाबाद में गुजरात एटीएस द्वारा एक आपराधिक मामला दर्ज किए जाने के बाद गिरफ्तार किया गया था।

इस महीने की शुरूआत में गुजरात उच्च न्यायालय ने एसआईटी को नोटिस जारी कर सीतलवाड़ और राज्य के पूर्व पुलिस महानिदेशक श्रीकुमार की जमानत अर्जी पर जवाब मांगा था। हाईकोर्ट अब इस मामले की सुनवाई सितंबर में करने वाला है।

शीर्ष अदालत के समक्ष अपनी अपील में, सीतलवाड़ ने अपनी जमानत अर्जी की सुनवाई में डेढ़ महीने के लंबे अंतराल पर आपत्ति जताई और सतेंद्र कुमार अंतिल बनाम सीबीआई मामले में शीर्ष अदालत के फैसले का हवाला देते हुए कहा कि जमानत के मामलों में शीघ्र सुनवाई की जानी चाहिए।

जुलाई में अहमदाबाद की एक सत्र अदालत ने उन्हें और श्रीकुमार को जमानत देने से इनकार कर दिया था। जमानत अर्जी को खारिज करते हुए अदालत ने कहा, अगर आवेदक-आरोपी को जमानत दे दी जाती है तो यह गलत काम करने वालों को प्रोत्साहित करेगा कि तत्कालीन मुख्यमंत्री और अन्य के खिलाफ इस तरह के आरोपों के बावजूद, अदालत ने आरोपी को जमानत दे दी। इसलिए, उपरोक्त तथ्यों और परिस्थितियों को देखते हुए, भले ही आवेदक एक महिला है और दूसरा एक सेवानिवृत्त आईपीएस अधिकारी और वृद्ध व्यक्ति है, उन्हें जमानत दिए जाने की आवश्यकता नहीं है।

24 जून को, सुप्रीम कोर्ट ने 2002 में अहमदाबाद की गुलबर्ग सोसाइटी में हिंसा के दौरान मारे गए कांग्रेस नेता एहसान जाफरी की पत्नी जकिया जाफरी द्वारा दायर अपील को खारिज कर दिया था, जिसमें तत्कालीन मुख्यमंत्री मोदी और अन्य को राज्य में दंगों के दौरान एसआईटी की क्लीन चिट को चुनौती दी गई थी।

तब सुनवाई करते हुए न्यायमूर्ति ए. एम. खानविलकर (अब सेवानिवृत्त) ने कहा था, वर्तमान कार्यवाही पिछले 16 वर्षों से जारी है (8 जून, 2006 की शिकायत दर्ज करने से लेकर 67 पृष्ठों में और फिर 15 अप्रैल, 2013 को 514-पृष्ठ की विरोध याचिका दायर करके) जिसमें अपनाई गई कुटिल चाल को उजागर करने की प्रक्रिया में शामिल प्रत्येक पदाधिकारी की सत्यनिष्ठा पर सवाल उठाने का दुस्साहस भी शामिल है।

अदालत ने कहा, प्रक्रिया के इस तरह के दुरुपयोग में शामिल सभी लोगों को कटघरे में लाए जाने और कानून के अनुसार आगे बढ़ने की जरूरत है।

--आईएएनएस

एकेके/एएनएम

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