अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस पर विशेष: हम भी किसी से कम नहीं.. कामयाबी कदम जरुर चूमेगी
- महिला सशक्तिकरण का बेहतरीन उदाहरण प्रस्तुत कर रही है शिवगंज की युवतियां
शिवगंज। साखों से टूट जाए वो पत्ते नहीं है हम, आंधियों से कह दो कि औकात में रहे, हम पंखों से नहीं हौंसलों से उड़ा करते है। मशहूर शायर राहत इंदोरी का यह शेर शहर की उन युवतियों पर सटीक साबित हो रहा है, जो महिला सशक्तिकरण का बेहरतरीन उदाहरण प्रस्तुत कर रही है।
एक दौर हुआ करता था जब महिलाओं को घर की चौखट तक ही सीमित रखा जाता था। लेकिन अब दौर बदल चुका है, महिलाएं भी पुरुषों के बराबर कंधे से कंधा मिलाकर अपनी प्रतिभा का प्रदर्शन कर रही हैं। कार्यक्षेत्र कोई भी हो वह हर कार्य को चुनौती के रूप में स्वीकार कर यह साबित कर रही हैं कि देश की उन्नति में वे भी बराबर की साझेदार हैं। आज प्रत्येक क्षेत्र में महिलाओं को आगे लाकर उनको आत्म निर्भर बनाने पर जोर दिया जा रहा है। ऐसे में कई क्षेत्र ऐसे हैं जहां हमेशा से पुरुषों का वर्चस्व रहा है मगर अब ऐसा नहीं है क्षेत्र कोई भी हो महिलाएं उसे चुनौती के रूप में स्वीकार कर उस क्षेत्र में अपनी छाप छोड़ रही है।
कंप्यूटर पर फोटो एडिटिंग का कार्य एक ऐसा कार्य है जो दिमागी रूप से काफी कठिन है। क्षेत्र में अब तक पुरुषों का ही वर्चस्व रहा हैं, मगर अब इस क्षेत्र में महिलाएं भी कमतर नहीं है। शहर के एक जानी-मानी डिजीटल फोटो लैब की एडिटिंग लैब में कंप्यूटर पर बैठकर बेहद ही तेजी से की-बोर्ड और माउस पर अपनी अंगुलियां चलाती युवतियों को देखकर कोई यह नहीं कह सकता कि अब इस क्षेत्र में पुरुष ही कार्य कर सकते हैं। आरके कॉम्पलेक्स स्थित इस डिजीटल फोटो एडिटिंग लैब में कार्य करने वाली दीपिका सुआरा की कहानी काफी प्रेरणा देती हैं। पिता की मौत के बाद परिवार में वह अकेली यह कैसी शख्स थी, जिसके कंधों पर पूरे परिवार का बोझ आन पड़ा था। ऐसी स्थिति में उसने अपने भीतर छिपे आत्मविश्वास को जगाया और इस कठिन कार्य में अपने आप को झौंकने का निर्णय लिया। पहले यह काम सीखा और आज दीपिका इस कार्य में इतनी पारंगत हो गई है कि वह फोटो एडिटिंग के क्षेत्र में उसने अपने आप को साबित कर दिखाया हैं। इसी प्रकार बडग़ांव के नरेंद्र सिंह राठौड़ की पुत्री साक्षी राठौड़ अपने पिता की तरह इस फील्ड को अपना कार्य क्षेत्र बनाना चाहती थी। आज वह पूरी तल्लीनता के साथ इस कार्य को अंजाम दे रही है और अपने दम पर आत्मनिर्भर हो चुकी हैं। इसी लैब में कार्य करने वाली भारती बच्चों को ट्यूशन पढ़ाने का काम तो करती ही है फोटो एडिटिंग कर प्रतिमाह 20 से 25 हजार की कमाई कर लेती है। वे बताती है कि इस लेब में वे अपने आप को काफी सुरक्षित महसूस करती है।
लेब संचालक की पत्नी श्रीमती डिम्पल परिहार जो स्वयं स्नातक की पढ़ाई करने के बाद एक गृहणी बनकर ससुराल आई थी, लेकिन वह केवल गृहणी बनकर रहना नहीं चाहती थी। परिणामस्वरूप उन्होंने अपने पति के काम में ही हाथ बटाने का निर्णय लिया। अपनी शिक्षा के दम पर आज वह घर का चुल्हा चौखट निपटाने के बाद लेब पर मुख्य काउंटर का कार्य बखुबी निस्तारण कर रही है। लेब में फोटो एडिटिंग का कार्य करने वाली श्रीमती कंचन परिहार ने भी स्नातक तक की शिक्षा अर्जित की है। कुछ कर गुजरने की तमन्ना अपने दिल के भीतर लिए कंचन ने पहले तो अपने फोटोग्राफर पति के साथ घर पर ही थोडा बहुत फोटो एडिटिंग का कार्य सीखा। अब इस लेब पर कार्य करने अपने आप को साबित करने का माद्दा रखती है। वह सुबह घर का काम काज निबटाने और बच्चों को स्कूल भेजने के बाद अपनी ड्यूटी पर जाती है और अपने परिवार के लिए अच्छी आय अर्जित करने का प्रयत्न कर रही है।
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