लोकेन्द्रसिंह किलाणौत की कलम से : अग्निपथ स्कीम : क्या सैन्य नीतियों बनाने वालों का कॉमन सेंस मारा गया है
अगर ग्यारह लाख रुपये लेकर कोई बिजनेस करने की भी सोच रहा है तो यह भी समझना चाहिए कि सरकार चार साल इन युवाओं को मिलिक्ट्री माइंड का बनाकर बफर सोसाइटी में खुला छोड़ देगी. जिस सोसाइटी में अभी तक मिलिक्ट्री बिहेब एक्सेप्ट नही है तो बिजनेस सेक्टर में ये लड़के अपने आप को कैसे सेटल कर पाएंगे ?
अगर एक सैनिक में कॉमनसेंस की कमी हो तो बात जायज है, लेकिन सैन्य नीतियां बनाने वालों का कॉमन सेंस मारा गया हो तो इसी तरह का कबाड़ा होता है जिसकी चर्चा दो दिन से पूरे देश में है.
यह बिल्कुल जरूरी भी नहीं है कि अग्निपथ स्कीम को समझने के लिए कोई सैन्य विशेषज्ञ होने की अनिवार्यता है. कॉमनसेंस कोई स्टडी नहीं होती है और कॉमनसेंस किसी अनपढ़ में भी हो सकता है. अगर सेनाओं के प्रमुख इस स्कीम का समर्थन कर भी रहे है तो यह जरूरी नहीं कि सबकुछ ठीक है. सेना प्रमुखों पर भरोसा करने वाले लोगों को पता होना चाहिए कि हमारी सेना के ज्यादातर प्रमुख वे ही लोग बने हैं। जिनका काम सेना के हित से इतर अपने राजनीतिक आका की नीतियों पर काम करना अधिक रहा है। जिस भी सेना प्रमुख ने जब कभी सरकार से आंख मिलाने की जुर्रत करी है, उनके पर किस तरह कतरे गए है यह भी जान लेने की जरूरत है.
‘अग्निपथ’ की शपथ लेकर, देश का युवा बनेगा ‘अग्निवीर’ #BharatKeAgniveer pic.twitter.com/NnIocEg9gs
— Rajnath Singh (@rajnathsingh) June 14, 2022
भला हो जनरल नथू सिंह, सगत सिंह, सैम मानेकशॉ, फील्ड मार्शल के.एम. करिअप्पा, एयर मार्शल अर्जन सिंह, जनरल थिमैय्या, वीके सिंह, एयर वाइस मार्शल चंदन सिंह बागावास जैसे बहादुरों का जिन्होंने समय समय पर सरकार की परवाह किये बगैर अपने तरीके से सेना में नीतियां बनाई जिनकी बदौलत हम कुछ युद्ध जीत पाए और सेना का अनुशासन बना रहा वरना तो सेना प्रमुखों के बैज आजकल अधिकतर समय प्रधानमंत्री आवास में सेल्यूट ही मारते रहे हैं.
खैर मुद्दे पर आते हैं...
सरकार का लॉजिक ये है कि बेरोजगारी दूर करने के लिए अग्निपथ योजना लाई जा रही है, तो मैं कहता हूँ मनरेगा जैसी दस पांच स्कीम क्यों नहीं चला देते. अगर युवाओं को स्किल सिखाने के लिए यह सब कर रहे हैं तो प्रधानमंत्री कौशल विकास योजना में क्या आप तंबूरा बजा रहे थे। एक लॉजिक ये है कि इससे रक्षा खर्च में कटौती होगी तो यह कितनी बड़ी बेवकूफी है कि जब पूरा विश्व युद्ध के मुहाने पर खड़ा है और हर देश सामरिक चिंताओं से जूझ रहा है वहां आपको रक्षा खर्च कम करने की सूझी है।
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खैर कुछ कॉमन सेंस की बातें समझ लेना भी जरूरी है. सरकार ने स्पष्ट नहीं किया है कि 45000 अग्निवीरों की यह भर्ती साल में कितने बार होनी है. अगर एक बार होगी तो साफ मतलब यह है कि सेना में 45000 नए रंगरूट पहुंचेंगे. जबकि हर साल सेना से 55 से 60 हजार जवान रिटायर होते हैं. यानि हर साल सेना को रिटायर होने वाले 60 हजार जवानों की जगह उतने ही नए जवानों की जरूरत होती है. अगर साल में एक बार यह भर्ती होगी तो जरूरत से कम है और दो बार होगी तो जरूरत से ज्यादा है. अब आप जरूरत से कम सैनिक भर्ती कर रहे हो तो यह मेरी नजर में बेवकूफी ही है और दो बार भर्ती कर जरूरत से ज्यादा जवान भर्ती कर रहे हो तो खर्चा कम हो रहा है या बढ़ रहा है यह मेरे समझ में अभी तक नही आया.
दूसरा यह कि भर्ती होने वाले 45000 जवानों में से 75 परसेंट रिटायर होंगे मतलब लगभग ग्यारह हजार सैनिक ही पूर्णकालिक सैनिक बन पाएंगे. यानी कि साल में एक भर्ती आयोजित कर आप बस ग्यारह हजार पूर्णकालिक सैनिक भर्ती कर रहे हो,अगर जरूरत के हिसाब से सैनिक चाहिए तो पांच भर्ती सरकार को करनी पडेंगी तो दो लाख पच्चीस हजार अग्निवीर सरकार को हर साल चाहिए. अब आप छोटा सा कॉमनसेंस यह भी लगाएं कि इतने ज्यादा अग्निवीरों के लिए सरकार इतने ट्रेनिंग सेंटर, हथियार,वाहन और बाकी के सामान कहां से लाएगी. अगर लाएगी तो खर्चा बढ़ रहा है या घट रहा है. अब इस जगह आप यह कहेंगे कि जो 45 हजार भर्ती किये जायेंगे उनसे सैनिक के काम ही करवाये जाएंगे.
खैर बात अग्निवीरो के भविष्य पर भी होनी चाहिए. 21 साल का लड़का अग्निवीर बनेगा तो 25 साल का रिटायर होकर आएगा. माना कि जेब मे पैसे होंगे बैंक बैलेंस होगा. लेकिन यह बात हम सब जानते है कि जिन जातियों के लड़के ज्यादातर सेना में जाते है उन जातियों में यह उम्र शादी कर सेटल होने की होती है. आप 10वीं 12वीं पास लड़के को भर्ती कर रहे हो और जब तक उसे घर भेजोगे तब तक उसकी हायर एजुकेशन में जाने की उम्र निकल गई होगी. चार साल लड़के को सिखाओगे निशाना लगाना, पिट्ठू लादना और डिग्री ग्रेजुएशन की दोगे. फिर उम्मीद करोगे की वह प्राइवेट सेक्टर में कहीं सेटल हो जाये तो सेना में रहकर वो ना तो कम्यूटर पर सॉफ्टवेयर डवलप करना सीखेगा और ना ही प्रोजेक्ट बनाना.यह बात समझने के लिए भी कोई ज्यादा दिमाग नहीं चाहिए कि जो 60 हजार जवान हर साल रिटायर होते है उनमें से दो चार परसेंट को ही जॉब मिल पाती है बाकी बचे अधिकतर सिक्योरिटी का काम करते है. जब यह काम सर्विस पूरी करने के बाद रिटायर हुए जवान बखूबी कर रहे हैं तो नई उम्र के लड़कों को क्यों अम्बानी—अडानी जैसी कंपनियों के लिए सिक्युरिटी गार्ड बनाने के लिए इस स्कीम में फंसाया जा रहा है.
The ‘Agnipath’ scheme approved by the CCS chaired by Prime Minister Shri @narendramodi is a truly transformative reform which will enhance the combat potential of the Armed Forces, with younger profile and technologically adept soldiers. #BharatKeAgniveer pic.twitter.com/2NI2LMiYVV
— Rajnath Singh (@rajnathsingh) June 14, 2022
अगर ग्यारह लाख रुपये लेकर कोई बिजनेस करने की भी सोच रहा है तो यह भी समझना चाहिए कि सरकार चार साल इन युवाओं को मिलिक्ट्री माइंड का बनाकर बफर सोसाइटी में खुला छोड़ देगी. जिस सोसाइटी में अभी तक मिलिक्ट्री बिहेब एक्सेप्ट नही है तो बिजनेस सेक्टर में ये लड़के अपने आप को कैसे सेटल कर पाएंगे ?
सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि गांव के लड़के देशसेवा के साथ साथ जीवन भर की रोजी रोटी के लिए सेना को चुनते है. यह स्कीम आने के बाद किसी भी लड़के की यह सोच नहीं रहेगी कि उसका जीवन बस सेना के लिए है क्योंकि उसे खुद नही पता कि चार साल बाद उसके फ्यूचर का क्या होगा. ना वह ट्रेनिंग में डेडिकेशन दिखायेगा ना ड्यूटी में फिर यह भी की रंगरूटों के साथ सेना का बिहेब भी चेज हो जाएगा. हवलदार मेजर परेड करवाते टाइम यही सोच रखेगा कि अगर सीखे तो ठीक है वरना चार साल बाद निकल जायेगा और मोदी जी ने स्किल सिखाने लड़कों को भेजा है.
एक अंतिम बात भी यह है कि यहां सेना उन लड़कों पर पैसा खर्च करेगी जो सेना के तो कम से कम किसी काम के नही है. अनट्रेंड जवान को ना तो किसी ऑपरेशन में काम ले सकते है ना किसी विशेष अभियान में.इसके एवज में सेना उन्हे भर्ती के खर्चे सहित चार साल तक ट्रेनिंग का खर्चा,खाना, रहना,वर्दी, बूट, बिस्तर,हथियार,वाहन ना जाने क्या क्या उपलब्ध करवाएगी और चार साल बाद वे सेना के किसी भी काम के नहीं रहने वाले है. शुरुआत के तीन साल तो उन्हें फौजी बनने में लगेंगे तब तक वे फौजी बन पाएंगे उससे पहले ही सेना को उनके लिए फेयरवेल आयोजित करना पड़ेगा.
बातें और भी खूब है लेकिन उन पर बात बीते दो दिनों से की जा ही है। तो सॉरी डार्लिंग तुमसे ना हो पायेगा.
✍️ लोकेन्द्र सिंह किलाणौत
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