नवरात्रि का दूसरा दिन: मां का दूसरा स्वरूप है ब्रह्मचारिणी, यह ब्रह्म शक्ति यानी तप की शक्ति का प्रतीक है

मां ब्रह्मचारिणी की आराधना से मिलेगी कठोर तप से सफलता पाने की शक्ति

मां का दूसरा स्वरूप है ब्रह्मचारिणी, यह ब्रह्म शक्ति यानी तप की शक्ति का प्रतीक है
मां ब्रह्मचारिणी
  • हजारों वर्षों तक इन्होंने कठिन तपस्या की, इस कारण इनका नाम ब्रह्मचारिणी पड़ा

दधाना करपाद्माभ्याम, अक्षमालाकमण्डलु।
देवी प्रसीदतु मयि, ब्रह्मचारिण्यनुत्तमा।।
देवी के नौ रूपों में नवरात्र के दूसरे दिन माता ब्रह्मचारिणी की पूजा की जाती है। यह तप की शक्ति अर्थात ब्रह्म शक्ति का प्रतीक हैं। इनकी पूजा से भक्तों की तप करने की शक्ति बढ़ती है। माता ब्रह्मचारिणी हमें यह संदेश देती हैं कि जीवन में बिना तपस्या अर्थात कठोर परिश्रम के सफलता प्राप्त करना असंभव है। बिना श्रम के सफलता प्राप्त करना ईश्वर के प्रबंधन के विपरीत है। अत: ब्रह्मशक्ति अर्थात समझने व तप करने की शक्ति हेतु इस दिन शक्ति का स्मरण करें। योग-शास्त्र में यह शक्ति स्वाधिष्ठान में स्थित होती है। अत: समस्त ध्यान स्वाधिष्ठान में करने से यह शक्ति बलवान होती है एवं सर्वत्र सिद्धि व विजय प्राप्त होती है।

नवरात्रि की द्वितिया तिथि पर मां ब्रह्मचारिणी की पूजा होती है। देवी ब्रह्मचारिणी ब्रह्म शक्ति यानी तप की शक्ति का प्रतीक हैं। इनकी आराधना से भक्त की तप करने की शक्ति बढ़ती है। साथ ही, सभी मनोवांछित कार्य पूर्ण होते हैं।

माँ ब्रह्मचारिणी अपने सीधे हाथ में गुलाब का फूल पकड़े हुए हैं और अपने बाहिने हाथ में कमलदानु पकड़े हुए है। वह प्यार और वफ़ादारी को प्रदर्शित करती हैं। माँ ब्रह्मचारिणी ज्ञान का भंडार है. रुद्राक्ष उनका बहुत सुंदर गहना हैं। माँ ब्रह्मचारिणी सक्षम है अनंत लाभ पहुँचाने में माँ ब्रह्मचारिणी की आराधना करने से मनुष्य को विजय प्राप्त होती हैं।

मां ब्रह्मचारिणी हमें यह संदेश देती हैं कि जीवन में बिना तपस्या अर्थात कठोर परिश्रम के सफलता प्राप्त करना असंभव है। बिना श्रम के सफलता प्राप्त करना ईश्वर के प्रबंधन के विपरीत है। अत: ब्रह्मशक्ति अर्थात समझने व तप करने की शक्ति हेतु इस दिन शक्ति का स्मरण करें। योगशास्त्र में यह शक्ति स्वाधिष्ठान चक्र में स्थित होती है। अत: समस्त ध्यान स्वाधिष्ठान चक्र में करने से यह शक्ति बलवान होती है एवं सर्वत्र सिद्धि व विजय प्राप्त होती है।

इसके पीछे कहानी है कि मां दुर्गा ने पार्वती के रूप में पर्वतराज के यहां पुत्री बनकर जन्म लिया और महर्षि नारद के कहने पर अपने जीवन में भगवान महादेव को पाने के लिए कठोर तपस्या की थी। हजारों वर्षों तक अपनी कठिन तपस्या के कारण ही इनका नाम तपश्चारिणी या ब्रह्मचारिणी पड़ा।

स्वरूप
माता अपने इस स्वरूप में बिना किसी वाहन के नजर आती हैं। मां ब्रह्मचारिणी के दाएं हाथ में माला और बाएं हाथ में कमंडल है।


मां ब्रह्माचारिणी की आरती

जय अंबे ब्रह्मचारिणी माता।
जय चतुरामम प्रिय सुख दाता।
ब्रह्मा जी के मन भाती हो।
ज्ञान सभी को सिखलाती हो।
ब्रह्मा मंत्र है जाप तुम्हारा।
जिसको जपे सकल संसारा।
जय गायत्री वेद की माता।
जो मन निस दिन तुम्हें ध्याता।
कमी कोई न रहने पाए।
कोई भी दुख सहने न पाए।
उसकी विरति रहे ठिकाने।
जो तेरी महिमा को जाने।
रूद्राक्ष की माला लेकर।
जपे जो मंत्र श्रृद्धा देकर।
आलस छोड़ करे गुणगाना।
मां तुम उसको सुख पहुंचाना।
ब्रह्माचारिणी तेरो नाम।
पूर्ण करो सब मेरे काम।
भक्त तेरे चरणों का पुजारी।
रखना लाज मेरी महतारी। 

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