गहलोत के राज में यह कैसा न्याय: कांग्रेस कार्यकर्ता का लेबल हो तो अवैध निर्माण के साथ कहीं भी-कुछ भी करने की छूट!
नाले पर पांच मंजिला इस रिजोर्ट के निर्माण के लिए न केवल नगर पालिका ने नियम-कायदे ताक में रख दिए, बल्कि डीएलबी के अफसरों के आदेशों ने भी उच्चतम न्यायालय के साथ-साथ राष्ट्रीय हरित प्राधिकरण के नियमों तथा मापदंडों को भी ताक में रख दिया। यह सिफारिश की गई कि यह रिसोर्ट जिनका हैं, वे कांग्रेस के अच्छे कार्यकर्ता है।
माउंट आबू। मुख्यमंत्री अशोक गहलोत को गांधीवादी राजनीतिज्ञ के तौर पर जाना जाता रहा है। लेकिन, उनके राज में कांग्रेस कार्यकर्ता का लेबल लगाकर कहीं भी-कुछ भी किया जा सकता है। ताजा मामला पशु चिकित्सालय के समीप हीना रिजोर्ट का है।
नाले पर पांच मंजिला इस रिजोर्ट के निर्माण के लिए न केवल नगर पालिका ने नियम-कायदे ताक में रख दिए, बल्कि डीएलबी के अफसरों के आदेशों ने भी उच्चतम न्यायालय के साथ-साथ राष्ट्रीय हरित प्राधिकरण के नियमों तथा मापदंडों को भी ताक में रख दिया।
ऐसा इसलिए हुआ क्योंकि आबू-पिण्डवाड़ा विधायक, नगर कांग्रेस कमेटी, जिला कांग्रेस कमेटी ने अपने पत्रों में हीना रिजोर्ट की जमीन को विषम भौगोलिक परिस्थितियों में मानने के बाद भी यह सिफारिश की कि यह रिसोर्ट जिनका हैं, वे कांग्रेस के अच्छे कार्यकर्ता है।
होटल व्यवसायी विजय कुमार लालवानी माउंट आबू की आम जनता के हक की लड़ाई के लिए नगर पालिका के बाहर अनशन पर बैठ चुके हैं। उनका अनशन मंगलवार को दूसरे दिन भी जारी रहा। दूसरे दिन उनके स्वास्थ्य में गिरावट आ गई। साथ ही ब्लड शुगर गिर गई।
विजयकुमार लालवानी जनता के हक के लिए अकेले लड़ रहे है। आम जनता के हित की रक्षार्थ उन्होंने अनशन पर बैठकर एक भ्रष्ट सिस्टम के खिलाफ लड़ाई शुरू की है। बावजूद इसके, स्थानीय प्रशासन और पालिका के जिम्मेदार लोगों के कान पर जूं तक नहीं रेंग रही है।
लालवानी कहते हैं कि हीना रिजोर्ट को जिस तरह से मापदण्डों के विपरीत जाकर निर्माण स्वीकृति दी गई है, उससे पालिका से लेकर डीएलबी के अधिकारियों तथा स्वायत शासन मंत्री तक के दामन पर भ्रष्टाचार के दाग लग रहे हैं।
उनका सवाल है कि जब नियमों के परे हीना रिजोर्ट को सब कुछ गलत होते हुए भी मंजूरी दी जा सकती है तो फिर माउंट आबू की आम जनता ने क्या कसूर किया है, उन्हें भी अपने आशियाने के पुर्ननिर्माण तथा निर्माण की इजाजत मिलनी चाहिए। वह भी तब जब उनके पास सारे दस्तावेज नियमानुसार है।
24 अक्टूबर 2000 को आबू पिण्डवाड़ा विधायक लालाराम गरासिया की ओर से तत्कालीन स्वायत शासन मंत्री को लिखे गए एक पत्र में माना गया है कि आबू पर्वत पर परमानंद पुत्र किशनचंद कांग्रेस के कार्यकर्ता है और इनके द्वारा पालिका से पट्टाशुदा जमीन पर निर्माण कार्य करवाया जा रहा है।
बॉयलाज के अनुसार निर्माण संभव नहीं है। इनके प्लान को भौगोलिक परिस्थितियों के मददेनजर रिवाइज्ड मानकर मंजूरी दी जाएं। गरासिया यही नहीं रूके। उन्होंने एक अन्य पत्र में परमानंद को कांग्रेस का अच्छा कार्यकर्ता बताते हुए हीना रिजोर्ट की भूमि के समानांतर चालीस फीट चौड़े नाले और प्लाट के बीच की खांचा भूमि भी उन्हें आवंटित करने की सिफारिश कर दी।
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कमोबेश ऐसी ही सिफारिश नगर कांग्रेस कमेटी ने भी इसी तिथि को की। तत्कालीन अध्यक्ष असारसा ने स्वायत शासन विभाग को लिखे पत्र में हीना रिजोर्ट के मालिक को कांग्रेस कार्यकर्ता बताते हुए उनका रिवाइज्ड प्लान मंजूर करने का आग्रह किया। उन्होंने तो इस सिफारिश के साथ होटल हिललॉक, ममता पैलेस, जाल होटल, रंजना पैलेस के उदाहरण भी दिए। ऐसी ही एक अन्य सिफारिश जिला कांग्रेस अल्पसंख्यक प्रकोष्ठ के तत्कालीन जिलाध्यक्ष युसूफ खान ने भी की।
लालवानी का अनशन माउंट आबू के स्थानीय निवासियों के लिए है। इस कारण अब उन्हें आम जन का भी समर्थन मिलने लगा है। माउंट आबू पालिका के प्रतिपक्ष नेता सुनील आचार्य ने मंगलवार को आबू संघर्ष समिति के अध्यक्ष होने के नाते अनशन स्थल पर पहुंचकर विजय कुमार लालवानी से मुलाकात की।
उन्होंने कहा कि राज्य सरकार का आदेश यदि पूरे माउंट आबू के लिए लागू हो तो यह क्षेत्र के विकास के लिए मील का पत्थर साबित हो सकता है। उन्होंने भी उपखंड अधिकारी से इस संबंध में मुलाकात की है। हमने मांग की है कि हीना रिजोर्ट के रिवाइज्ड प्लान को नियमानुसार शुल्क लेकर कंपाउड करने तथा नए मानचित्र स्वीकृत करने के आदेश को पूरे क्षेत्र के लिए लागू किया जाएं। इससे माउंट आबू के निवासियों को राहत मिलेगी।
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