लोकेन्द्रसिंह किलाणौत की कलम से: महाराणा प्रताप में राम की खोज
राजस्थान विश्वविद्यालय से स्नातकोत्तर में अध्ययनरत लेखक लोकेन्द्रसिंह किलाणौत ने महाराणा प्रताप जयंती पर यह उत्कृष्ट आलेख लिखा है। उनके फेसबुक पेज से साभार लिया है।
सोलहवीं शताब्दी में इतिहास की घड़ी में तब अतिव्यापन हुआ जब मिनट और घण्टे की सुई एक साथ ठहरी और इस महान घटना से महाराणा प्रताप के अंदर राम की चेतना प्रवेश कर गई. हमारी सनातन चेतना ना तो राम से इतर कुछ सोच सकती है ना कर सकती है.
इतिहास की घड़ी में यह अतिव्यापन तब हुआ जब गोस्वामी तुलसीदास सरयू तट पर रामचरितमानस लिख रहे थे और यही वह कालखंड था जब राजपुताना की मेवाड़ रियासत में एकलिंग का दीवान महाराणा प्रताप मुगलिया सल्तनत से लोहा ले रहा था.
(यह भी क्या गजब की बात है कि जब जब भारत में कोई महान पुरुष अवतरित हुआ है उसके अंदर राम की चेतना स्वत: प्रवेश कर जाती है।)
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उधर तुलसीदास जी ने लिखा ...
"सजी बनू साजु समाजु सबु बनिता बंधु समेत"
इधर महाराणा ने भी अपने समाजबंधुओं के साथ आवश्यक सामान बांधकर अरावली के दर्रो की तरफ प्रस्थान किया.
गोस्वामी आगे लिखते है कि "रघुपति प्रजा प्रेमबस देखी,सदय हृदय दुख भयउ बिशेषी" तो इधर महाराणा ने अपनी प्रजा को देखा और प्रजा अपने महाराणा का दुख देखकर जंगलों में जाने के लिए उनके साथ हो जाती है.
गोस्वामी जी फिर लिखते है कि "यह सुधि गुंह निषाद जब पाई,मुदित लिए प्रिय बन्धु बोलाई" तो अरावली में महाराणा का एक मित्र भामाशाह निषाद की भांति अपने मित्र की सेवा में उपस्थित होता है।
गोस्वामी जी सरयू तट पर जो लिख रहे थे उसका ज्यों का त्यों अभिनय अरावली के अरण्यों में हो रहा था. इसलिए मुझे लगता है कि गोस्वामी जी ने न केवल राम बल्कि महाराणा को भी अपने मानस में लिख दिया. इसलिए रामचरित मानस एक नहीं बल्कि दो सूर्यवंशी राजाओं का चरित है.
क्या जिल्लेइलाही अकबर को लंकेश की भांति यह घमंड नहीं होगा कि वनपुत्र भीलों की सेना लेकर यह वनवासी भला दिल्ली की शाही सेना को क्या टक्कर दे पाएगा ? लेकिन जब गोस्वामी ने लिखा "जयति राम जय लछिमिन जय कपीश सुग्रीव,गरजहि सिंघनाद भालू महा बलसीव" तो हल्दीघाटी के मैदान में वनपुत्र भीलों ने मलेच्छ सेना के पांव उखाड़ दिए।
क्या श्री राम और महाराणा के उस कथन में समानता नहीं है जब श्री राम किष्किंधा नरेश बाली से सुग्रीव की स्त्री का अपरहण करने के विषय पर कहते है कि दूसरे की स्त्री को देखना तक पाप है और मेवाड़ नरेश महाराणा अब्दुलरहीम खानखाना की बेगम को बंदी बना लेने पर अपने पुत्र राजकुमार अमर सिंह को खरी खोटी सुना देते है और बेगम को ससम्मान वापस भेजने का आदेश देते है.
इस घटना के बाद अब्दुलरहीम खानखाना इतिहास में रहीम दास हो जाते है और उन्हें कृष्ण भक्ति की प्रेरणा कही और से नही बल्कि एकलिंग और श्रीनाथ जी के चरणों से मिली थी.
मैं शुरू से कहता आया हूँ कि अभी महाराणा प्रताप पर बहुत अधिक अनुसंधान की आवश्यकता है अगर ठीक से अनुसंधान किया जाए तो हमें मालूम चलेगा कि महाराणा के जीवन की प्रेरणा कोई और नहीं बल्कि मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान श्री राम थे.
Source Credit : https://www. facebook.com/ lokendra.lokendrasingh.92
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