लोकेन्द्रसिंह किलाणौत की कलम से: डार्लिंग जानती हो, आज पच्चीस जुलाई है : फूलन देवी के बहाने से बीहड़ को जानें
जो फूलन ने बोया वह कुसमा ने काट लिया। उधर 22 ठाकुर मारे गए इधर 13 मल्लाह। दिल किया तो कभी कुसमा नाइन की कहानी भी सुना देंगे। 'हमें बागियों के किस्से ना सुनाया करो डार्लिंग, नाती लगते है उनके' बागी को लंगोट का पक्का होना चाहिए क्योंकि पुलिस जब रडार पर लेती है तो सबसे पहले बागी का लंगोट ही खोलती है।
यह तो सच ही है कि बीहड़ के पानी की तासीर ही कुछ ऐसी है कि बदला गोलियों से लिया जाता है। खैर वह दौर तो नहीं रहा जब बीहड़ का मरद मेहरारू की जगह 315 माउजर साथ लेकर सोता था पर किस्सों में बीहड़ खूब जिंदा है।आज पच्चीस जुलाई है और नारीवादियों का नारीवाद उफान पर है। कारण है कि नारीवाद को बीहड़ में हांफ-हांफ कर जिंदा करने वाली बीहड़ की डकैत फूलन देवी की आज पुण्यतिथि है।
फूलन को मरे एक अरसा हो गया लेकिन अब फूलन की गैंग बीहड़ से निकलकर कैम्पस और मीडिया मंडी तक पहुंच गई है। जितना कबाड़ा फूलन गैंग की बंदूक ने नहीं किया उससे ज्यादा उसकी गैंग की कलम कर रही है। हमारा तो उसूल रहा है कि बंदूक की बगावत बंदूक से और कलम की बगावत कलम से होनी चाहिए। सिलसिलेवार उन सभी क्रांतिकारियों को यहां जवाब दिया जा रहा है जिन्हें फूलन में नारीवाद की मिसाल नजर आती है।
डार्लिंग, हालातों ने फूलन को डकैत नहीं बनाया और ना ही वह सच पूरा है जो तुम शेखर कपूर की बेंडिड क्वीन के आईने में देखती हो। लेखिका अरुंधति राय लिखती है कि अगर बलात्कार से कोई महिला डकैत बनती तो आज हजारों महिलाएं बंदूक उठाकर बीहड़ में घूम रही होती।
बीहड़ के जितने भी बागी हुए है उनमें एक जो बात सबसे कॉमन मिलती है वो यह है कि हर गैंग का सरदार अपनी गैंग में एक लौंडिया जरूर रखता था। निर्भय सिंह गुर्जर तो इस मामले में इतना उस्ताद था कि बिग बॉस फेम सीमा परिहार उसकी गैंग में हुआ करती थी। पुलिस ने भी अपनी सरकारी रायफल की गोलियां इन लौंडिया के कंधों पर रखकर ही दागी है।
एक दौर में मुरैना जिले के नामी बागी हुए रमेश सिंह सिकरवार अपने इंटरव्यू में कहते है कि बीहड़ में बागी को लंगोट का पक्का होना चाहिए क्योंकि पुलिस जब रडार पर लेती है तो सबसे पहले बागी का लंगोट ही खोलती है।
खैर, हुआ यूँ था कि एक डकैत की यौन इच्छा ही फूलन को बीहड़ तक ले आई थी। फूलन उन दिनों अपनी रिश्तेदारी में गई हुई थी। वहां से बाबू सिंह गुर्जर नाम का एक डकैत फूलन को उठाकर बीहड़ में ले जाता है। बाबू सिंह गुर्जर की गैंग में ही एक रंगरूट होता है जिसका नाम विक्रम मल्लाह है। वह फूलन की ही जात का है और फूलन के यौवन पर लट्टू हो जाता है।
Must Read : लोकेन्द्रसिंह किलाणौत की कलम से : मोरचंग से मन चंगा
बागियों की गैंग का एक ओर उसूल होता है कि लौंडिया पर पहला हक गैंग के सरदार का होगा। लेकिन विक्रम मल्लाह को फूलन का बाबू सिंह गुर्जर के साथ हमबिस्तर होना नागवार गुजरता है। फूलन यह बात भी भली भांति जानती है कि विक्रम उस पर लट्टू हुआ पड़ा है। लेकिन फूलन वह सब स्वीकार करती है जो गैंग का उसूल है।
बागियों की सल्तनत में क्या ? उसूल और काहे की आजादी। 315 माउजर की 8 MM की नली के आगे या तो मरो या मार डालो। विक्रम मल्लाह एक दिन अचानक मौका देखकर अपने सरदार बाबू सिंह गुर्जर की हत्या कर देता है और खुद गैंग का सरदार बन बैठता है। बाबू सिंह गुर्जर की हत्या के बाद विक्रम को गैंग और फूलन दोनों मिल जाती है। लेकिन फूलन की किस्मत में अब भी हांफना ही बचता है बस मरद बदल जाता है।
वक्त गुजरता है और सलाखों में बन्द एक खूंखार बागी लालाराम वापस गिरोह में लौटता है। विक्रम मल्लाह भी इसी लालाराम का शार्गिद है तो एक बार फिर गैंग का सरदार और फूलन का मरद दोनों बदल जाते है।
इस बात से परेशान विक्रम अपनी नई गैंग बना लेता है और ठाकुरों की गैंग से उसकी छिटपुट झड़पें चलती रहती है। एक दिन बड़ी मुठभेड़ में विक्रम मल्लाह ढेर हो जाता है। लालाराम की गैंग फूलन को उठाकर बेहमई गांव ले जाती है जहाँ उसके साथ बलात्कार होता है।
अब यहां एक और बात समझने की जरूरत है कि फूलन को बेहमई गांव ही क्यों ले जाया जाता है। जबकि लालाराम और राम ठाकुर तो बेहमई गांव के नहीं थे। राम ठाकुर का गांव बेहमई गांव के पास ही दमनपुर है तो इस पूरी कहानी में बेहमई गांव की क्या भूमिका है।
नदी के किनारे बसा यह गांव बागियों के छिपने का बढ़िया और सुरक्षित ठिकाना हुआ करता था। जबकि इस गांव के लोग ना तो राम ठाकुर की गैंग में शामिल थे और ना ही फूलन पर उन्होंने कोई अत्याचार किया। बल्कि बेहमई गांव के लोग तो खुद ही इन बागियों से परेशान थे। ये बागी जब मन आये तब ही इस गांव के लोगों को धमकाकर रासन, पैसे और जरूरी सामान ले जाया करते थे।
बेहमई गांव से फूलन जैसे तैसे बच निकलती है और यहां से देश और बीहड़ दोनों के जातीय समीकरण तेजी से बदलते है। यह ठीक वहीं दौर था जब मान्यवर काशीराम तिलक तराजू और तलवार इनको मारो जूते चार का झंडा उठाये हुए थे और लालू जैसे दोगले समाजवादियों ने भूरा बाल साफ करो कि अमल पिछड़ों को चटा दी थी।
ये सब कवायद तो संसद का समीकरण बदलने की थी लेकिन संसद से पहले इस समीकरण की चपेट में बीहड़ आ गया। उस वक्त बीहड़ में हर दूसरी गैंग ठाकुरों की थी। हर दूसरी गैंग का सरदार भी ठाकुर ही हुआ करता था। लेकिन बाकी जातियों ने तय कर किया कि अब ठाकुरों की गैंग में रहकर पिट्ठू लादने से अच्छा है कि खुद की गैंग बना ली जाए और फूलन ने इस काम के लिए एक बहाना दे दिया।
ठाकुरों की गैंग से परेशान दूसरे रंगरूट फूलन को साथ लेते है और एक दिन बेहमई गांव पहुंच जाते है। वहां फूलन द्वारा एक आवाज दी जाती है कि राम ठाकुर और लालाराम कहाँ है। उसके बाद पूछा जाता है कि इस गांव से राम ठाकुर की गैंग को रसद कौन देता है। मतलब फूलन अपने साथ हुए बलात्कार का बदला लेने नहीं बल्कि उस गांव के लोगों को इस लिए मारने गई थी कि वे राम ठाकुर को रसद देते थे।
एक रिपार्ट यह भी बताती है कि बेहमई कांड में गोली चलाने का आदेश खुद फूलन ने नहीं दिया था। जबकि फूलन तो गोलीबारी के बीच इतना कांप गई कि उससे बंदूक की एक गोली तक नहीं चली। गोली चलाने का आदेश फूलन के पीछे खड़े गैंग के दूसरे सरदार ने दिया।
बेहमई गांव में फूलन की गैंग द्वारा की गई बाइस ठाकुरों की हत्या ने पूरे देश मे सनसनी ला दी। फूलन एक बड़ी आबादी के लिए आदर्श बन गई। लोकतंत्र में एक वर्ग का आदर्श बराबर एक वोटबैंक का ठेकेदार भी होता है।
यहां से राजनीति की चौसर जमती है। ठाकुरों की गैंग फूलन को सलटाने के लिए बीहड़ छान मारती है लेकिन फूलन का जिंदा रहना अब राजनीतिक समीकरणों को जिंदा रखने के लिए जरूरी हो गया था।
लोकेन्द्रसिंह किलाणौत की कलम से : महाराणा प्रताप में राम की खोज
फूलन के साथ जिस मल्लाहों की गैंग ने बेहमई कांड किया था वह पूरी गैंग अचानक भूमिगत हो जाती है और उत्तर-प्रदेश के बीहड़ों को छोड़कर मध्य-प्रदेश के बीहड़ों में गुजर बसर करती है।
मध्य-प्रदेश में उन दिनों दलित और पिछड़ों के मसीहा अर्जुन सिंह शासन कर रहे थे। फूलन का ठाकुरों की किसी गैंग के साथ सीधी मुठभेड़ में गिराया जाना एक वोटबैंक का बड़ा नुकसान था। इसलिए फूलन को भीतर से कितना राजनीतिक संरक्षण मिला इस बात से रत्तीभर भी इनकार नहीं किया जा सकता है। लेकिन फूलन को बहुत जल्दी समझ आ गया कि इन हालातों में बीहड़ में बसर करना ज्यादा दिन मुमकिन नहीं हो पायेगा।
अंततः 14 फरवरी 1981 को फूलन मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री अर्जुन सिंह के सामने आत्मसमर्पण कर देती है। जेल काटने के बाद मुलायम सिंह यादव फूलन को संसद पहुंचा देते है।
राजनीतिक समीकरण फिर बदलते है और उत्तर प्रदेश के दलित बहुजन समाज पार्टी के पीछे लामबंद होते है। मुलायम को समझ आ जाता है कि अब फूलन का पोलिटिकल माइलेज पहले वाला नहीं रहा क्योंकि दलित वोटबैंक मायावती के पीछे हो लिया था।
समाजवादी पार्टी को समझ आया कि कैसे भी ठाकुरों को लपक लिया जाए तो माइलेज का मामला जम जाएगा। चरकनगर की एक राजनीतिक सभा से इसकी शुरुआत होती है जहां मंच पर फूलन और मुलायम सिंह दोनों होते है। फूलन का भाषण होता है वह कहती है कि "ठाकुरों का मेरे ऊपर बहुत उपकार है। जब मैं बीहड़ में चारो तरफ से घिर गई थी तो इसी इलाके के ठाकुर जसवंत सिंह सेंगर की कृपा से मेरी जान बच पाई।"
ओह माय गॉड व्हाट इज दिस? फेमिनिज्म का मेकअप उतार कर थोड़ा पॉलिटिक्स भी समझा करो ना डार्लिंग।
उसके बाद जानती हो क्या हुआ डार्लिंग ? एक कुसमा नाइन नाम की बागी भी हुई थी उसी बीहड़ में। फूलन से कहीं ज्यादा क्रूर और बर्बर। उन दिनों वह फूलन के जानी दुश्मन लालाराम की गैंग की कमांडर हुआ करती थी। एक दिन कुसमा बेहमई कांड का बदला लेने के लिए फूलन की जाति के 13 मल्लाहों को लाइन में लगाकर 325 माउजरों से भून देती है इस ऐलान के साथ कि मैंने 22 ठाकुरों की हत्या का बदला लिया है।
जो फूलन ने बोया वह कुसमा ने काट लिया। उधर 22 ठाकुर मारे गए इधर 13 मल्लाह। मैंने कहा था ना कि बीहड़ की तो तासीर ही ऐसी है कि गोली का बदला बस गोली होती है। दिल किया तो तुम्हें कभी कुसमा नाइन की कहानी भी सुना देंगे।
"हमें बागियों के किस्से ना सुनाया करो डार्लिंग, नाती लगते है उनके"
✍️ लोकेन्द्र सिंह किलाणौत
.
Source Credit : https://www. facebook.com/ lokendra.lokendrasingh.92
Must Read: इतिहास का जातीय विकृतिकरण आने वाली नस्लों के लिए भारी पड़ेगा
पढें आलेख खबरें, ताजा हिंदी समाचार (Latest Hindi News) के लिए डाउनलोड करें First Bharat App.