सलाम शरणागतवत्सल क्षत्राणी को: करौली के दंगों में एक राजपूत महिला ने बताया क्या है क्षत्रिय धर्म, बचाई 15 जिंदगी

करौली की क्षत्राणी मधुलिका सिंह ने हिन्दू—मुस्लिम दंगों के बीच 15 मुस्लिम युवकों की जान बचाकर यह साबित किया कि मानवता की रक्षा करने का धर्म सबसे बड़ा धर्म है।

करौली के दंगों में एक राजपूत महिला ने बताया क्या है क्षत्रिय धर्म, बचाई 15 जिंदगी
Madhulika Singh : Photo credit Scroll .in

जयपुर | क्षत्रिय धर्म मानवता की रक्षा के लिए है और पीड़ित की सेवा से यह किसी अन्य जाति या धर्म में भेद नहीं करता। 22 दिसम्बर 2021 को जयपुर में हुए हीरक जयंती समारोह में यह सम्बोधन कई बार गूंजा, लेकिन इसे चरितार्थ करके दिखाया है करौली की क्षत्राणी मधुलिका सिंह ने। हिन्दू—मुस्लिम दंगों के बीच इस महिला ने 15 मुस्लिम युवकों की जान बचाकर यह साबित किया कि मानवता की रक्षा करने का धर्म सबसे बड़ा धर्म है।

2 अप्रैल को पूरे दिन भीड़ ने राजस्थान के करौली शहर में दंगों को अंजाम दिया। दंगों में गलती किसकी थी, यह साबित करना हमेशा मुश्किल ही रहा है, लेकिन 48 वर्षीया मधुलिका राजपूत ने जो किया। वह स्तुत्य है।

करौली के बाजार में एक शॉपिंग कॉम्प्लेक्स में आग लगने के बाद धुआं भर गया। दुकानदार और उनके कर्मचारी ​जो कि करीब 15 की संख्या में थे। वे शरण लेने के लिए वहां पहुंचे तो मधुलिका ने उन्हें एक सुरक्षित कमरे में बिठाया। धुएं से खांस रहे लोगों को पंखा लगाकर पानी पिलाया और विश्वास दिलाया कि वे जब तक ज़रूरत हो, वहाँ रह सकते हैं। अनहोनी की आशंका से भरे इन लोगों की आंखों में डर देखकर उन्होंने आश्वासन दिया कि “यह हिंदुस्तान है और हम राजपूत हैं, हम लोगों की रक्षा करने के लिए जाने जाते हैं और हम इसे हमेशा करेंगे।”

मधुलिका राजपूत को राजस्थान के करौली शहर में बाजार परिसर के बाहर गुस्साई भीड़ का सामना करना पड़ा, जहां उनके परिवार की कई दुकानें हैं। भीड़ में शामिल लोगों ने अंदर आने देने के लिए और उनके परिसर में घुसने की कोशिश की। 48 वर्षीया श्रीमती मधुलिका ने दृढ़ता से रोका और कहा कि मैं किसी को अंदर नहीं जाने दूंगी। लोगों ने पूछा कि क्या यहां कोई छुपा है, लेकिन उन्होंने कहा कि यहां कोई नहीं है। उन्होंने इन लोगों को फटकारा भी और चले जाने को कहा।

मधुलिका के पास शरण लेने वालों में 28 वर्षीय दानिश खान भी थे। वह इस परिसर में एक जूते की दुकान चलाते हैं और करीब तीस वर्षीय मोहम्मददीन सड़क पर एक महिलाओं के कपड़ों की स्टॉल लगाता है। जब हंगामे की खबर मिली तो सब अपनी—अपनी दुकानों के शटर गिराते चले गए। 

photo credit :  scroll.in

दानिश खान बताते हैं कि  "हम डर गए और घर जाने के लिए पैकअप करके निकल रहे थे।" “जैसे ही हमने बाहर कुछ कदम उठाए, हमने देखा कि भीड़ दुकानों को नष्ट कर रही है। मेरी नज़र भीड़ में से एक आदमी से मिली मैं वापस इस परिसर में चला गया।”

हमारी नजर नाउम्मीदी से भरी थी और चाची मधुलिका से मिले। दानिश खान ने कहा कि उन्हें उनसे इस तरह की दया की उम्मीद नहीं थी। लेकिन वे बोलीं "ऊपर की मंजिल पर हमारे कमरे में आओ, यहां सुरक्षित नहीं है।"

वह याद करता है कि हम वहां करीब 15 लोग थे। एक—दूसरे को सांत्वना देने की कोशिश कर रहे थे। हम कुछ लोग एक—दूसरे को जानते थे और कई अजनबी थे। घर से आशंकाओं से भरे फोन कॉल आ रहे थे। 

अचानक गेट पर भीड़ आ गई। दानिश खान याद करते हैं, "वे चिल्ला रहे थे, जबरदस्ती गेट खोलने की कोशिश कर रहे थे, यह पता लगाने की कोशिश कर रहे थे कि हम कहां हैं।" मोहम्मददीन खान ने बताया कि "वे कह रहे थे कि वे मुसलमानों की दुकानों को आग लगा देंगे।"

तब उन्होंने राजपूत को चले जाने के लिए कहते सुना। "चाची उन पर चिल्लाईं और कहा कि वह उन्हें दुकानों को नष्ट करने नहीं देंगी," उन सभी ने राहत की सांस ली। 

वहां पहुंचे मधुलिका राजपूत के रिश्तेदार संजय सिंह कमरे में गए। जब दंगा भड़का तो सिंह जो एक तकनीशियन है। वह ड्यूटी पर था। इसके तुरंत बाद, उन्हें उनकी पत्नी का फोन आया, जो मधुलिका सिंह के साथ रह रही थी। उसने उन्हें वापस बुलाया था।

संजय सिंह बताते हैं कि "मैं वापस आया और इन सभी लड़कों को कमरे में बैठे देखा।" उन्होंने कहा— उसने सुनिश्चित किया कि उन सभी के पास पानी और चाय है। उसने उन्हें यह भी बताया कि बाहर चीजें शांत हो रही हैं और जल्द ही सड़कें साफ हो जाएंगी।

जब मोहम्मददीन खान की मां ने फोन किया, तो उन्होंने उससे कहा, "हम यहां सुरक्षित हैं। मधुलिका और संजय जी ने हमें सुरक्षित रखा है।”

Mohammadin khan with his mother:                      Photo credit Scroll .in

ये लोग बताते हैं कि उसने कॉम्पलेक्स परिसर के अंदर कभी भी काम नहीं किया था। "मैं उनसे पहले कभी नहीं मिला था," उन्होंने कहा। "उनके लिए मुझे अंदर ले जाना और मुझे वहां सुरक्षित रखना, यह मेरे लिए बहुत मायने रखता था। मैं इस बात से इंकार नहीं कर सकता कि दयालुता के ऐसे कार्य दुर्लभ हैं। ये बहुत अच्छे लोग हैं।"

जैसे ही दंगा शांत हुआ और दुकान मालिकों और श्रमिकों का समूह जाने लगा, सिंह ने पूछा कि क्या उन्हें घर ले जाने के लिए मदद की आवश्यकता है। “यह हिंदुस्तान है और हम राजपूत हैं, हम लोगों की रक्षा करने के लिए जाने जाते हैं और हम इसे हमेशा करेंगे।” 

बाद में मधुलिका सिंह ने जब हिन्दू रैली पर मुसलमानों द्वारा पत्थर फेंकने की कहानियां सुनी तो भी वे उन लड़कों की रक्षा करने के अपने फैसले पर कायम है। "देखो, इन लड़कों का उस जुलूस से कोई लेना-देना नहीं था," उसने कहा। “उन्होंने जाने की कोशिश की लेकिन भीड़ ने उन्हें घेर लिया था। मैं नहीं चाहती थी कि उन्हें चोट लगे या खून बहाया जाए। यह इंसानियत और मानवता का सवाल था।” 

Must Read: पाली के नाना से बड़ी खबर, वरावल टोल प्लाजा पर टोलकर्मियों की खुलेआम गुंडागर्दी, बारात की गाडी पर किया हमला

पढें राजस्थान खबरें, ताजा हिंदी समाचार (Latest Hindi News) के लिए डाउनलोड करें First Bharat App.

  • Follow us on :