वादियों में पनप रहा कंकरीट का जंगल: चंद रुपयों के लालच में खतरे में डाली जा रही कुंभलगढ़ की जैव विविधता

चंद सिक्कों के लालच में यहां पहाड़ों को काटकर होटल खड़े किए जा रहे हैं। वैसे भी कुंभलगढ़ इलाके में होटलों और रिसोर्टस की भरमार है, लेकिन बदलते समय के साथ इस क्षेत्र में बढ़ रही डेस्टीनेशन वेडिंग को देखते हुए उदयपुर समेत विभिन्न जिलों के कारोबारी यहां जमीनों में पैसा इन्वेस्ट करने लगे हैं। 

चंद रुपयों के लालच में खतरे में डाली जा रही कुंभलगढ़ की जैव विविधता
गणपत सिंह मांडोली

राजसमंद। मेवाड और मारवाड को जोड़़ने वाली सरहद किनारे वेडिंग डेस्टीनेशन के रूप में मशहूर हो रहे हरी-भरी वादियों के बीच अवस्थित कुंभलगढ़ में थोड़ी कमाई के लालच में अब कंकरीट का जंगल खड़ा हो रहा है। हालत यह है कि

इसका नतीजा बड़ी होटलों और रिसोर्ट्स के रूप में सामने आ रहा है। इससे यहां की जैव विविधता को न केवल खतरा पैदा हो रहा है, बल्कि वन्य जीव अभयारण्य में विचरण करने वाले वन्य जीवों की जान भी सुरक्षित नहीं रह पा रही है। फस्ट भारत अपने पाठकों को कुंभलगढ़ के अनछुए पहलूओं की  जानकारी देने के लिए तैयार हो रहा है। जल्द ही पाठकों को कुंभलगढ़ के ऐसे कारनामे सामने लाए जाएंगे, जो यह साबित करेंगे कि कैसे चंद रुपयों के लालच में पहाड़ों को काटकर वन्य जीवों के प्राकृतिक आवास नष्ट किए जा रहे है।

जमीनों के दाम आसमान पर
कुंभलगढ़ क्षेत्र वैसे तो उपखंड मुख्यालय है, लेकिन यहां जिस तरह से होटल उद्योग पनपा है उससे यहां कृषि जमीनों के दाम आसमान पर पहुंचा दिए है। कुंभलगढ़ से सटे इलाकों में भी जमीनों के दाम प्रति बीघा लाखों रुपयों तक पहुंच चुके हैं।

ऐसा है कुंभलगढ़

कुंभलगढ़ किला राजस्थान का एक प्रमुख पर्यटन स्थल है जो राजसमंद जिले में उदयपुर शहर के उत्तर-पश्चिम में 82 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। कुंभलगढ़ किला राजस्थान राज्य के पांच पहाड़ी किलों में से एक है जिसको साल 2013 में यूनेस्को द्वारा विश्व धरोहर स्थल घोषित किया गया था। अरावली पर्वतमाला की तलहटी पर बना हुआ यह किला पर्वतमाला की तेरह पहाड़ी चोटियों से घिरा हुआ है और 1,914 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है। यह आकर्षक किला एक जंगल के बीच स्थित है जिसको एक वन्यजीव अभयारण्य में बदल दिया है। यह किला चित्तौड़गढ़ महल राजस्थान का दूसरा सबसे बड़ा और सबसे खास मेवाड़ किला है जिसकों देखकर कोई भी इसकी तरफ आकर्षित हो सकता है। कुम्भलगढ़ किले का निर्माण पंद्रहवी सदी में राजा राणा कुम्भा ने करवाया था। यह मेवाड़ किला बनास नदी के तट पर स्थित है। पर्यटक बड़ी संख्या में इस किले को देखने आते हैं क्योंकि यह किला राजस्थान राज्य का दूसरा सबसे महत्वपूर्ण किला है। यह विशाल किला 13 गढ़, बुर्ज और पर्यवेक्षण मीनार से घिरा हुआ है। कुम्भलगढ़ किला अरावली की पहाड़ियों में 36 किमी में फैला हुआ है। इसमें महाराणा फ़तेह सिंह द्वारा निर्मित किया गया एक गुंबददार महल भी है। लंबी घुमावदार दीवार दुश्मनों से रक्षा के लिए बनवाई गई थी, और ऐसा माना जाता है कि लंबाई के मामले में इसका स्थान चीन की महान दीवार के बाद दूसरा है। इस किले में सात बड़े दरवाजे हैं। इनमें से सबसे बड़ा राम पोल के नाम से जाना जाता है। किले की ओर जाने वाले मुख्य रास्ते हनुमान पोल पर पर्यटक एक मंदिर देख सकते हैं। हल्ला पोल, राम पोल, पाघरा पोल, निम्बू पोल, भैरव पोल एवं तोप-खाना पोल किले के अन्य दरवाजे हैं। पर्यटक एक पक्षी की तरह किले के ऊपर से आस पास के क्षेत्रों का अवलोकन कर सकते हैं। करतारगढ़ के नाम से जाना जाने वाला एक और किला कुम्भलगढ़ के मुख्य किले के अंदर स्थित है।

ये हैं नियम

प्राचीन संस्मारक तथा पुरातत्वीय स्थल और अवशेष अधिनियम १९५८ के मुताबिक कोई भी व्यक्ति जो कि संरक्षित क्षेत्र का स्वामी हो, या संरक्षित क्षेत्र का अधिभोगी हो। फिर भी संरक्षित क्षेत्र के भीतर किसी भवन का संनिर्माण या ऐसे क्षेत्र में कोई खनन खदान क्रिया उत्खनन विस्फोट या किसी प्रकार की कोई क्रिया नहीं कर सकता। ना ही केन्द्र सरकार की अनुज्ञा के बिना ऐसे क्षेत्र या उसके किसी भाग का निर्बन्धन उपयोग कर सकता है। संरक्षित क्षेत्र के भीतर उपधारा (1) के उपबंधो के उंल्लघन में कोई व्यक्ति यदि निर्मित भवन को विनिर्दिष्ट कालावधि के भीतर हटाने या आदेश की अनुपालना में इनकार करता है, या मानने में असफल रहता है तो कलक्टर सीधा उस निर्माण को हटवा सकता है। साथ ही दोषी व्यक्ति ऐसे हटाए जाने वाले खर्चें का खुद उत्तरदायी होता है।

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