ऑक्सीजन संकट में सेना का समाधान: कोरोना में मरीजों की मदद के लिएभारतीय सेना के इंजीनियर्स ने लिक्विड ऑक्सीजन को बिना बिजली बदला मेडिकल ऑक्सीजन में
कोरोना की दूसरी लहर से देशभर में अचानक से बढ़ी ऑक्सीजन की डिमांड से चारों ओर हाहाकार सा मच गया। ऑक्सीजन की कमी से कुछ अस्पतालों में तो मरीजों ने दम तक तोड़ दिया। ऐसे में भारतीय सेना के इंजीनियर्स ने इस ऑक्सीजन संकट के बीच बड़ा समाधान निकालते हुए बड़ी राहत दी है।
नई दिल्ली।
कोरोना की दूसरी लहर से देशभर में अचानक से बढ़ी ऑक्सीजन (Oxygen) की डिमांड से चारों ओर हाहाकार सा मच गया। ऑक्सीजन की कमी से कुछ अस्पतालों में तो मरीजों ने दम तक तोड़ दिया। ऐसे में भारतीय सेना (Indian Army) के इंजीनियर्स ने इस ऑक्सीजन संकट के बीच बड़ा समाधान निकालते हुए बड़ी राहत दी है। इंजीनियर्स ने दो तरल सिलेंडर वाले कुछ प्रोटोटाइप तैयार किए हैं, जो बिना लाइट के सीधे तरल ऑक्सीजन (Liquid oxygen) को मेडिकल ऑक्सीजन (Medical oxygen) में बदल देंगे। दरअसल, हवा में मौजूद ऑक्सीजन को सबसे पहले तरल फॉर्म में बड़े-बड़े क्रायोजेनिक टैंकों में जमा किया जाता है। इसकी शुद्धता 99.5% तक होती है। इसके बाद इन्हें सही तापमान के साथ डिस्ट्रिब्यूटर्स के पास पहुंचाया जाता है, जो इसे मेडिकल ऑक्सीजन में बदलकर सिलेंडर में भरते हैं और अस्पतालों को सप्लाई करते हैं। या बड़े अस्पतालों अपने पास बड़े टैंक में तरल ऑक्सीजन जमा रखते हैं, जिन्हें मेडिकल ऑक्सीजन में बदलकर सीधे पाइपलाइन के जरिए कोविड वार्ड में सप्लाई की जाती है। इस प्रक्रिया में लाइट की जरूरत होती है। इंजीनियर्स की टीम को यह सफलता मेजर जनरल संजय रिहानी (Major General Sanjay Rihani) के नेतृत्व में मिली।
इस दौरान सेना के इंजीनियर्स 7 से ज्यादा दिन तक CSIR और DRDO के साथ सीधे संपर्क में रहे। टीम ने वैपोराइजर्स, PRV और तरल ऑक्सीजन के सिलेंडर्स का उपयोग करते हुए दो तरल सिलेंडर वाले कुछ प्रोटोटाइप तैयार किए। इसके जरिए कोरोना मरीज के बिस्तर पर अपेक्षित दबाव और सही तापमान पर तरल ऑक्सीजन को मेडिकल ऑक्सीजन में बदलकर सीधे पहुंचाया जा सके। इसके लिए टीम ने 250 लीटर के खुद दबाव डाल सकने वाले तरल ऑक्सीजन सिलेंडर को विशेष तौर से डिजाइन किए गए वैपोराजर को लीक प्रूफ पाइपलाइन और प्रेशर वाल्व के साथ जोड़ा। डिफेंस मिनिस्ट्री के प्रवक्ता ने बताया कि पहले दो तरल सिलेंडर वाले प्रोटोटाइप दिल्ली कैंट के बेस अस्पताल में लगाए गए हैं। यहां 40 कोरोना बेड के लिए 2 से 3 दिन तक मेडिकल ऑक्सीजन उपलब्ध कराई जा सकेगी। यह सिस्टम काफी सस्ता और सुरक्षित है, क्योंकि यह पाइपलाइन या सिलेंडर्स के उच्च गैस दबाव को भी दूर करती है। इसके लिए बिजली की जरूरत भी नहीं होती है। कई जगहों पर इस सिस्टम को लगाना भी काफी आसान है। प्रवक्ता ने बताया कि टीम ने अस्पतालों में रोगियों को एक स्थान से दूसरे स्थान तक ले जाने जैसी आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए एक मोबाइल संस्करण का भी परीक्षण किया है। स्पेशलिस्ट की मानें तो देश में हर रोज 7 हजार मीट्रिक टन ऑक्सीजन बनती है। भारत में पर्याप्त संख्या में क्रायोजेनिक टैंक भी नहीं हैं, जो तरल ऑक्सीजन को रख सकें। तेज आवागमन न होने के कारण मेडिकल ऑक्सीजन भी अस्पतालों तक पहुंच पाना मुश्किल होता है। कई छोटे अस्पताल जहां, ऑक्सीजन स्टोरेज की समस्या है, वहां मरीजों को जूझते हुए देखा गया है। ऐसे में सेना की यह नई खोज मरीजों के लिए वरदान साबित हो सकती है।
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