माउंट आबू। प्रदेश की सबसे धनाढ्य मानी जाने वाली स्वायत्तशासी निकाय माउंट आबू नगर पालिका में एवजी कार्मिक की सहायता से फाइलों का इधर से उधर किया जा रहा है। यह एवजी कार्मिक न केवल अफसरों का चहेता है, बल्कि अफसरों की कृपादृष्टि से उसे ठेकेदारी भी हासिल हो रही है। लग्जरी लाइफ जीने के शौकीन इस एवजी कार्मिक के खिलाफ असंतोष के स्वर उठने के बावजूद न तो पालिका प्रशासन और न ही उपखंड प्रशासन के कान पर जूं रेंग रही है। एक सामान्य परिवार से आने वाला व्यक्ति फाइव स्टार और सेवन स्टार होटल में ठहरता है। कुछ दूसरे फर्मों के नाम से जो ठेके उठते हैं उनकी निगरानी का काम करता है। नगर पालिका के कामों में उसका दखल है और लोग उम्मीद में उसके इर्द-गिर्द घूमते हैं। यहां तक कि कुछ पार्षद भी उसकी मान-मनुहार करते हैं कि वह उनके काम आसानी से करवा देगा।
कौन है वह? नगर पालिका से पूछा जाने वाला यह वह प्रश्न है, जिसका जवाब देने को कोई तैयार नहीं है। पालिका ने मानो उसके प्रति आंखें मूंद रखी है। वह ठेकेदार है? अधिकारी है? कर्मचारी है? या कुछ भी नहीं है। जवाब तो सामने आना ही चाहिए। शहर में इनदिनों सबसे बड़ी चर्चा बस यही है। यहां के व्हाट्सएप समूहों में उस व्यक्ति के नाम की चर्चा है। अब पार्षद प्रश्न उठा रहे हैं। पार्षद उपखंड अधिकारी को ज्ञापन देकर पालिका में हो रही अंधेरगर्दी पर सवाल खड़े कर रहे हैं, लेकिन किसी से जवाब देते नहीं बन रहा। पार्षद जसोदा अरोड़ा ने अंततः उपखंड अधिकारी को ज्ञापन देकर महावीर नामक व्यक्ति के बारे में जानकारी मांगी है? पर जवाब अब तक अनुतरित है।
कौन है महावीर? जवाब हम आपको बताएंगे। महावीर नामक यह शख्स पालिका आयुक्त के यहां काम करता है। पालिका आयुक्त का वरदहस्त होने के कारण उसे पिछले कुछ समय से पालिका में कुछ भी करने की इजाजत मिल चुकी है। पार्षद जसोदा अरोड़ा के साथ पार्षद तस्लीम बानो ने सोशल मीडिया पर आपत्ति उठाई है कि यह व्यक्ति कौन है? जो नगरपालिका में फाइलें इधर-उधर कर रहा है। यह गंभीर मामला है और सवाल यह भी है कि उसे किसने यह अधिकार दिया या नगरपालिका की ओर से उसे किसने अधिकृत किया है? महावीर सिंह का दखल केवल पालिका के कामों में ही नहीं है, बल्कि वह ठेकेदार भी है। फर्स्ट भारत को यह जानकारी मिली है कि वह राज्यपाल के माउंट आने के दौरान आशापुरा फर्म के नाम से नालों के ठेके का काम कर चुका है। वह जलकुंभी हटाने के दो लाख वाले ठेके, नाला सफाई के दस लाख वाले ठेके, साढ़े पांच लाख के आमथला पोकलेंड ठेके में सीधे रूप से भागीदार रह चुका हैं।
आलम यह हैं कि एक सामान्य परिवार से आने वाला व्यक्ति फाइव स्टार और सेवन स्टार होटल में ठहरता है। कुछ दूसरे फर्मों के नाम से जो ठेके उठते हैं उनकी निगरानी का काम करता है। नगर पालिका में उसका दखल है। पालिका में फाइलों को इधर से उधर करने के अलावा पालिका की ओर से लगाए जाने वाले शिविरों में अफसरों की मौजूदगी में वह फाइलें लेकर घूमता है। शिविरों में फाइलें भी उसी के पास रहती है।
महावीर सिंह के पालिका में बढ़ते दखल को लेकर अब असंतोष बढ़ रहा है। फर्स्ट भारत ने इस मसले पर महावीर सिंह से फोन पर बात की तो उसका कहना था कि उसे ऐसे किसी मामले की जानकारी नहीं है। पार्षद उसके खिलाफ क्यों असंतोष जता रहे हैं, उसे पता नहीं है। साेशल मीडिया पर अब लोग भी महावीर गाथा लिखने लगे हैं। सलीम कलमा लिखते हैं कि एटीपी को भले ही पालिका से हटा दिया हो, वहां का काम महावीरजी देख लेंगे। सभी फाइलें वही देख रहे हैं आजकल। प्रवीण सिंह देलवाड़ा तो इससे भी आगे लिखते हैं कि सुना है कि आबू के कुएं को साफ करवाने का भी टैंडर दिया गया है। वो भी पालिका में आए नए कर्मचारी ने लिया है और इसका भुगतान भी उन्हें कर दिया गया है। ऐसा किसका आशीर्वाद है इस ठेकेदार पर। पार्षद तस्लीम बानो लिखती हैं कि आबू पर्वत पालिका में कोई महावीरजी नए आए है क्या? सभी पट्टों की फाइलें भी उनके पास ही है। कोई कहता है कि ये ठेकेदार है और इन्होंने आबू के नालों की सफाई भी करवाई है। पिछले चार महीनों में उन्हें इसका भुगतान भी किया गया है। कितना पैसा उठाया इन्होंने, कोई जवाब नहीं है।
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