महान धावक दुनिया से अलविदा : पद्म श्री मिल्खा सिंह का निधन, कोरोना से रिकवर होने के बाद शुक्रवार रात अस्पताल में ली आखिरी सांस

भारत के महान धावक मिल्खा सिंह एक महीने तक कोरोना संक्रमण से जूझने के बाद अब इस दुनिया में नहीं रहे। पद्म श्री मिल्खा सिंह 91 वर्ष के थे।  उनके परिवार में उनके बेटे गोल्फर जीव मिल्खा सिंह और तीन बेटियां हैं। उन्होंने शुक्रवार रात 11. 30 पर आखिरी सांस ली

पद्म श्री मिल्खा सिंह का निधन, कोरोना से रिकवर होने के बाद शुक्रवार रात अस्पताल में ली आखिरी सांस

नई दिल्ली, एजेंसी। 
भारत के महान धावक मिल्खा सिंह (Milkha Singh ) एक महीने तक कोरोना संक्रमण से जूझने के बाद अब इस दुनिया में नहीं रहे। पद्म श्री मिल्खा सिंह 91 वर्ष के थे।  उनके परिवार में उनके बेटे गोल्फर जीव मिल्खा सिंह (Golfer Jeev Milkha Singh) और तीन बेटियां हैं। उन्होंने शुक्रवार रात 11. 30 पर आखिरी सांस ली। इससे पहले उनकी पत्नी और भारतीय बॉलीबॉल टीम की पूर्व कप्तान निर्मल कौर (Nirmal Kaur) ने भी कोरोना के कारण दम तोड़ दिया था।  ओलिंपियन (Olympian) में तीन बाद पदक और  चार बाद के एशियन गोल्ड मेडलिस्ट रह चुके मिल्खा की रफ्तार पूरी दुनिया ने देखी। मिल्खा सिंह ने भारतीय खेल प्रेमियों को जश्न मनाने के लिए कई यादगार मौके दिए थे। मिल्खा सिंह ने 1947 में भारत-पाकिस्तान (India-Pakistan) के बंटवारे का मंजर देखा और उसका दर्द को भी झेला, मगर उन्होंने हिम्मत नहीं हारी। उनकी हिम्मत और जज्बा का ही परिणाम था कि  बंटबारे के दर्द को भूलकर वह पाकिस्तान गए और वहां के स्टार खिलाड़ी को हरा दिया। पाकिस्तान के तानाशाह माने जाने वाले जनरल अयूब खान भी मिल्खा सिंह के कायल हो गए और उन्हें फ्लाइंग सिख की उपाधि दी।  
पीएम नेहरू के समझाने पर गए पाकिस्तान 
 मिल्खा सिंह (Milkha Singh)  के पास 1960 में पाकिस्तान के लाहौर शहर में दौडऩे का निमंत्रण आया, लेकिन उन्होंने पाकिस्तान के बंटवारे के समय हुए मंजर को याद करते हुए इनकार कर दिया। लाशों से भरी ट्रेनें उनकी आंखों के सामने फिर दौडऩे लगी और इसी वजह से उन्होंने लाहौर में दौडऩे के लिए मना कर दिया था, हालांकि बताया जाता है कि इसकी जानकारी जैसे ही  तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू (Jawaharlal Nehru) को मिली तो उन्होंने मिल्खा सिंह से बात करके उन्हें समझाया और लाहौर जाने के लिए राजी किया। मिल्खा सिंह ने एक बार फिर पाकिस्तानी जमीं पर कदम रखा और रेस के लिए खुद को तैयार किया।  उनका सामना स्टार खिलाड़ी अब्दुल खालिद से था। भारतीय स्टार ने पाकिस्तानी खिलाड़ी को उसी के घर में, उसी के दर्शकों के सामने हरा दिया। मिल्खा की रफ्तार के कायल जनरल अयूब खान भी हो गए।
रोम ओलंपिक में मिल्खा का शानदार प्रदर्शन
 चार बार के एशियाई खेलों के स्वर्ण पदक विजेता मिल्खा ने 1958 राष्ट्रमंडल खेलों में भी पीला तमगा हासिल किया था। बताया जाता है कि उनका सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन 1960 के रोम ओलंपिक में रहा। इस में वे 400 मीटर फाइनल में चौथे स्थान पर रहे थे। उन्होंने 1956 और 1964 ओलंपिक में भी भारत का प्रतिनिधित्व किया।  उन्हें 1959 में पद्मश्री से नवाजा गया था। मिल्खा सिंह के जीवन पर भाग मिल्खा भाग फिल्म भी बन चुकी है, जिसमें कि फरहान अख्तर ने उनका किरदार निभाया था।  फिल्म के लिए रॉयल्टी के तौर पर उन्होंने सिर्फ एक रुपये की मांग की थी।
2001 में अर्जुन अवॉर्ड से किया सम्मानित 
मिल्खा को 2001 में अर्जुन अवॉर्ड (Arjuna Award) से भी सम्मानित किया गया था। हालांकि  उन्होंने इस पुरस्कार को स्वीकार नहीं किया था। इससे पहले 1959 में ही मिल्खा सिंह को पद्मश्री पदक से सम्मानित किया जा चुका था। 1962 में कोलकाता में आयोजित राष्ट्रीय खेलों में माखन सिंह ने मिल्खा सिंह को हराया था।  मिल्खा सिंह ने एक इंटरव्यू में भी माना था, रेस में अगर मुझे किसी से डर लगता था तो वह माखन सिंह थे। वह एक बेहतरीन धावक थे। 
पेट की भूख से लेकर मैडल की भूख तक
मिल्खा  का जन्म 20 नवंबर 1929 को गोविंदपुरा (अब पाकिस्तान) में किसान परिवार में हुआ था। वह अपने अपने मां-बाप की 15 संतानों में से एक थे। उनका परिवार विभाजन की त्रासदी का शिकार हो गया, उस दौरान उनके माता-पिता के साथ आठ भाई-बहन भी मारे गए। इस खौफनाक मंजर को देखने वाले मिल्खा पाकिस्तान से ट्रेन की महिला बोगी में छिपकर दिल्ली पहुंचे। मिल्खा ने बंटवारे के बाद दिल्ली के शरणार्थी शिविरों में अपने दुखदायी दिनों को याद करते हुए कहा था, जब पेट खाली हो तो देश के बारे में कोई कैसे सोच सकता है? जब मुझे रोटी मिली तो मैंने देश के बारे में सोचना शुरू किया।  भूख की वजह से पैदा हुए गुस्से ने उन्हें आखिरकार अपने मुकाम तक पहुंचा दिया. उन्होंने कहा था, जब आपके माता-पिता को आपकी आंखों के सामने मार दिया गया हो तो क्या आप कभी भूल पाएंगे... कभी नहीं। 

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