विश्व: दही, बौद्ध प्रदर्शनी और तिब्बती ओपेरा की दावत - शोतुन महोत्सव
तिब्बती बौद्ध धर्म के गेलुग संप्रदाय के नियम (पीला संप्रदाय) के मुताबिक तिब्बती पंचांग के अनुसार हर अप्रैल से जून तक दुनिया में जीवन के प्रजनन की अवधि होती है। जीवन के पूर्ण प्रजनन की गारंटी करने के लिये भिक्षुओं को अपने मठों में रहना और एक महीने के पीछे हटना होता है। पूर्व में जब भिक्षु अपने मठों से बाहर आते थे, तो स्थानीय लोग उन्हें दही धर्मपरायण के रूप में समर्पित करते थे। यही शोतुन महोत्सव का स्रोत है।
तिब्बती बौद्ध धर्म के गेलुग संप्रदाय के नियम (पीला संप्रदाय) के मुताबिक तिब्बती पंचांग के अनुसार हर अप्रैल से जून तक दुनिया में जीवन के प्रजनन की अवधि होती है। जीवन के पूर्ण प्रजनन की गारंटी करने के लिये भिक्षुओं को अपने मठों में रहना और एक महीने के पीछे हटना होता है। पूर्व में जब भिक्षु अपने मठों से बाहर आते थे, तो स्थानीय लोग उन्हें दही धर्मपरायण के रूप में समर्पित करते थे। यही शोतुन महोत्सव का स्रोत है।
हर बार के परंपरागत शोतुन महोत्सव का आरंभ बुद्ध के विशाल थांगका चित्र का अनावरण होता है, जिसकी मुख्य गतिविधि तिब्बती ओपेरा प्रदर्शन करना व देखना, आउटिंग व पिकनिक करना, दही खाना आदि हैं। साथ ही इनमें अद्भुत याक दौड़ और घुड़सवारी का प्रदर्शन भी शामिल है। हाल के वर्षों में शोतुन महोत्सव परंपरा व आधुनिकता को एकीकृत करने वाला एक ऐसा त्यौहार बन गया है, जो सांस्कृतिक प्रदर्शन, खेल प्रतियोगिताओं, व्यापार वार्ता, पर्यटन व अवकाश को आपस में जोड़ता है।
इस त्यौहार की शुरूआत की तरह तिब्बत में सबसे बड़े मठ डेपुंग मठ में आयोजित शाक्यमुनि बुद्ध के विशाल थांगका चित्र का अनावरण समारोह बहुत प्रसिद्ध है। लगभग 100 भिक्षु डेपुंग मठ के त्सोचेन हॉल से विशाल थांगका चित्र को बाहर निकालते हैं और इसे डेपुंग मठ के पश्चिम में विशेष बुद्ध प्रदर्शनी मंच पर प्रदर्शित करते हैं। शाक्यमुनि बुद्ध के इस विशाल थांगका चित्र की लंबाई और चौड़ाई लगभग 30 मीटर होती है। वहां मौजूद हजारों अनुयायी व पर्यटक डेपुंग मठ में प्रार्थना करते हैं। पहाड़ों पर यह थांगका चित्र प्रदर्शित किया जाता है और लोग दस किलोमीटर दूर से ही इसकी पूजा करना शुरू कर देते हैं।
इस त्यौहार के दौरान स्थानीय निवासी उत्सव की वेशभूषा में कपड़े पहने हुए उपनगरों में मक्खन दूध चाय लाते हैं। हरे-भरे वृक्षों की छांव में वे रंग-बिरंगे पर्दे लगवाते हैं, नए-नए कालीन बिछाते हैं और फल व व्यंजन रखते हैं। वे कालीन पर बैठकर मक्खन दूध चाय पीते हैं और नाच-गान करते हैं। साथ ही वे तिब्बती ओपेरा देखते हैं और इस त्यौहार का आनंद लेते हैं।
तिब्बती ओपेरा का प्रदर्शन शोतुन महोत्सव का मुख्य भाग है। गौरतलब है कि तिब्बती ओपेरा का इतिहास 600 से अधिक वर्ष पुराना है, जिसकी कहानियां लोक कथाओं, ऐतिहासिक किंवदंतियों, बौद्ध क्लासिक्स आदि पर आधारित हैं। वर्तमान में तिब्बती ओपेरा प्रदर्शन अपना अनूठा नृत्य ताल, जोर से गाने, भव्य वेशभूषा, साधारण मुखौटे, रंगीन भूखंडों के साथ तिब्बती ओपेरा कला का आकर्षण दिखाता है।
शोतुन महोत्सव तिबब्त जातीय लोगों के लिए खुशी का स्रोत है। यह हजारों वर्षों से शोतुन संस्कृति पर आधारित है, जो थांगका चित्र प्रदर्शित होने, तिब्बती ओपेरा प्रदर्शन करने, जातीय संगीत संगोष्ठियों व आदान-प्रदान करने, दही खाने, आउटिंग-पिकनिक का आनंद लेने और शुद्ध भूमि पर स्वास्थ्य उद्योग को बढ़ाने आदि गतिविधियों की एक श्रृंखला के माध्यम से इतिहास और वास्तविकता से मिलन करता है।
इस तरह शोतुन उत्सव तिब्बती सभ्यता और संस्कृति से गहराई से जुड़ा एक त्यौहार कहा जा सकता है।
(साभार -- चाइना मीडिया ग्रुप, पेइचिंग)
--आईएएनएस
एएनएम
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