गांधी के सामने बिखर रहा विकास: नक्की किनारे गांधी वाटिका में फिजूल बहा दी जनता की गाढ़ी कमाई

जिस स्थान पर राजस्थान समेत अन्य राज्यों के सैलानी पर्यटन के मकसद से आते हैं, वहां राष्ट्रपिता महात्मा गांधी के सामने ही विकास की परतें उधड़ रही है। गांधी वाटिका में लाखों रुपए खर्च करने के बाद भी न तो वाटिका का विकास हुआ और न ही पैदल चलने वालों को राहत मिली।

नक्की किनारे गांधी वाटिका में फिजूल बहा दी जनता की गाढ़ी कमाई
माउंट आबू | प्रदेश के पर्वतीय पर्यटन स्थल माउंट आबू में दिनभर सैर-सपाटे के बाद सैलानियों को नक्की झील के किनारे सुकून मुहैया कराने के मकसद से नगर पालिका प्रशासन की ओर से विकसित की गई गांधी वाटिका में जनता के हिस्से की गाढ़ी कमाई मिट्टी में मिल रही है। हालत यह है कि गांधीजी की प्रतिमा के ठीक सामने ही मिट्टी धंस रही है, सैलानियों के कदम धंस रहे हैं, फिर भी पालिका प्रशासन अपने विकास का राग अलाप रहा है।
सैलानी फिर भी गांधीजी से मिलते-जुलते चेहरे के साथ सेल्फी खिंचाकर खुद को धन्य मान रहा है। इस मामले में प्रतिपक्ष भाजपा के नेता भी अपनी सियासत चमकाने के लालच में मौन धारण किए हुए हैं। मजबूरी यह है कि अब तक गांधी वाटिका के लिए आई सामग्री तक को पालिका प्रशासन खोलकर गांधीजी के समक्ष प्रस्तुत नहीं कर सका है।

राजस्थान के सिरोही जिले में स्थित अरावली की पहाड़ियों की सबसे ऊंची चोटी पर बसे माउंट आबू की भौगोलिक स्थिति और वातावरण राजस्थान के अन्य शहरों से भिन्न व मनोरम है। यह स्थान राज्य के अन्य हिस्सों की तरह गर्म नहीं है। इसी कारण यहां राजस्थान के अलावा अन्य राज्यों, समूचे देश से सैलानी शीतल वादियों का लुत्फ उठाने के लिए आते हैं।
यह हिल स्टेशन अरावली पर्वत की सबसे ऊंची चोटी पर 1220 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है। माउंट आबू एक लोकप्रिय जैन तीर्थ स्थल और राजस्थान में एकमात्र प्राचीन हिल स्टेशन है। पौराणिक कथाओं की मानें तो इस पवित्र पर्वत पर हिन्दू धर्म के तैंतीस करोड़ देवी देवता भ्रमण करते हैं। माना जाता है कि एक बार जब महान संत वशिष्ठ ने पृथ्वी से असुरों के विनाश के लिए यहां पर एक यज्ञ का आयोजन किया था तो जैन धर्म के चौबीसवें र्तीथकर भगवान महावीर भी यहां आये थे।
इसके बाद से ही यह जगह जैन भक्तों के लिए लिए एक पवित्र और धार्मिक जगह बन गई थी। यह भी कहा जाता है कि इस जगह का आबू नाम हिमालय के पुत्र आरबुआदा के नाम पर पड़ा है। आरबुआदा एक बहुत ही शक्तिशाली सर्प था, जिसने भगवान शिव के बैल नंदी की खाई में गिरने से जान बचाई थी। बाद में यह स्थान ‘माउंट आबू’ के रूप में विकसित हुआ, जो धार्मिक भक्ति का निवास बन गया। लोक कथाओं में यह बताया गया है कि इस निर्मल पर्वत पर कई हिंदू देवी-देवता अक्सर आया करते थे। गोमुख, ऋषि वशिष्ठ ने भी यहां पर निवास किया है।
माउंट आबू में अरावली पर्वतमाला के बीच नाखून से खोदकर बनाई गई नक्की झील है। यह झील प्रकृति प्रेमियों के लिए स्वर्ग के समान मानी जाती है। अद्भुत प्राकृतिक दृश्यों से भरी हुई यह झील भारत की पहली मानव निर्मित झील है जिसकी गहराई लगभग 11 हजार मीटर और चौड़ाई एक मील है। बताया जाता है कि नक्की झील में महात्मा गांधी की राख को 12 फरवरी 1948 को विसर्जित कर दिया गया था और गांधी घाट का निर्माण किया गया था। इसी कारण पर्वतीय पर्यटन स्थल माउंट आबू में नगर पालिका ने पिछले दिनों गांधी वाटिका तैयार करने की योजना बनाई थी। इस पर दस लाख रुपए खर्च करने का प्रावधान किया गया।

पालिका ने अपनी इस योजना को परवान चढ़ाया और नक्की झील किनारे बने बगीचे के एक कोने में गांधी वाटिका के नाम पर काले पत्थर की महात्मा गांधी की प्रतिमा स्थापित की। इसके समीप ही एक तरफ एक पुस्तक और दूसरी तरफ चरखा लगाया गया। पालिका के उन अधिकारियों की दाद देनी होगी, जिन्होंने गांधी वाटिका का खाका खींचा था।
गांधी वाटिका में लगाई जाने वाली महात्मा गांधी की प्रतिमा बनवाते समय अफसरों ने गांधी जी के मूल चेहरे को ही बदल दिया। और तो और, गांधी वाटिका का उद्घाटन मुख्यमंत्री अशोक गहलोत से वर्चुअल करवाते समय अफसरों ने इस भूल पर पर्दा तक डाले रखा। चूंकि, पालिका में कांग्रेस का बोर्ड हैं और वर्तमान में सरकार भी कांग्रेस की है, इस कारण किसी ने भी इस भूल को उजागर करने अथवा सुधारने की चेष्टा तक नहीं की। यहां प्रतिपक्ष की भूमिका निभा रही भारतीय जनता पार्टी भी खुद की सियासत को चमकाने तथा खुद की दुकानदारी चलाने की चेष्टा में विपक्ष का फर्ज नहीं निभा सकी।
अब हालत यह है कि गांधी वाटिका में जिस स्थान पर यह प्रतिमा लगाई गई हैं, उसके आगे बारिश के दिनों में मिट्टी धंस रही है। दिनभर माउंट का भ्रमण कर शाम के समय थके-हारे सैलानी जब नक्की किनारे सुकून की तलाश में पहुंचते हैं तो उनका सामना होता है गांधी वाटिका की हकीकत से। गांधी जी की प्रतिमा के सामने सेल्फी लेते समय उनके पांव धंसते हैं भ्रष्टाचार के दलदल में। सेल्फी में वह हकीकत सामने नहीं आ पाती, जो उनके कदमों तले होती है।

पालिका के भ्रष्टाचार की बानगी यही नहीं रूकती। गांधी जी की प्रतिमा के समक्ष सेल्फी लेते समय सैलानी की नजर स्टेच्यू के बिल्कुल करीब पड़े लकड़ी के पैक बॉक्स पर पड़ती है। सैलानी उसके इर्द-गिर्द घूमते हैं यह टोह लेने के लिए कि उसमें क्या है? लेकिन, उन्हें पता तक नहीं चलता कि उसमें क्या बंद है। इस बॉक्स में पैक है वह सामान जो गांधी वाटिका में गांधी जी के समक्ष लगना था।
करीब एक साल गुजरने के बावजूद पालिका प्रशासन को अवैध निर्माण की खुली इजाजत देने से फुर्सत नहीं मिलने के कारण यह बॉक्स खुल नहीं पाता है और गांधी जी को उनका हक नहीं मिल पाता है। पालिका के आयुक्त शिवपाल सिंह हंसते हुए कहते हैं कि व्यस्तता के कारण बॉक्स को खोला नहीं जा सका। जल्द ही बॉक्स खोलकर गांधी वाटिका को उसके असली रंग में लौटाएंगे। प्रतिपक्ष नेता सुनील आचार्य आयुक्त के सुर में सुर मिलाते हुए कहते हैं कि गांधी वाटिका को दोबारा नए सिरे से व्यवस्थित करेंगे, साथ मिलकर।

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