कोरोना जैसी महामारी में पुण्य कार्य: जब अपने ही कोरोना मरीज का नहीं करते अंतिम संस्कार, तब प्रकाश करता है पहल, विधि विधान से करता है मृतक का अंतिम संस्कार

हालात कोरोना महामारी का हो तो समाज के लोग तो दूर अपने ही अंतिम संस्कार में शामिल होने से कतराते है। वहीं ऐसे में सिरोही का एक शख्स शास्त्रों का पुण्य कमाने के लिए पहल करता है और शव का विधि विधान से अंतिम संस्कार करता है। 

जब अपने ही कोरोना मरीज का नहीं करते अंतिम संस्कार, तब प्रकाश करता है पहल, विधि विधान से करता है मृतक का अंतिम संस्कार

सिरोही।
धर्म शास्त्र कहते हैं कि मनुष्य को अंतिम संस्कार जैसी रस्म में शामिल होने से पुण्य मिलता हैं लेकिन हालात कोरोना महामारी का हो तो समाज के लोग तो दूर अपने ही अंतिम संस्कार में शामिल होने से कतराते है। वहीं ऐसे में सिरोही का एक शख्स शास्त्रों का पुण्य कमाने के लिए पहल करता है और शव का विधि विधान से अंतिम संस्कार करता है। जी हां ये सुनने में भले ही अजीब लगता हो, पर यह सौ फीसदी सत्य हैं कि राजस्थान प्रदेश के एक छोटे से जिले सिरोही का समाजसेवी प्रकाश प्रजापति यह नेक काम कर रहे हैं। इतना ही नहीं, प्रकाश प्रजापति पिछले साढ़े आठ से लावारिश लाशों के अंतिम संस्कार करने का बीड़ा उठाया हुआ हैं। कोरोना काल में भी इनके कदम पीछे नहीं हुए। इन्होंने अब तक 754 शवों का पूरे विधि विधान से अंतिम संस्कार करवाया हैं। इस कोरोना काल की बात करें तो प्रकाश प्रजापति ने पिछले एक साल में जब से कोरोना ने दस्तक दी हैं, तब से अब तक 175 शवों का गन्तव्य तक पहुंचाकर अंतिम संस्कार करवाया हैं। वही अगर कोरोना की इस दूसरी लहर की बात करें तो पिछले 7 दिनों ने इन्होंने 27 शवों का अंतिम संस्कार करवाकर अपने मानव होने का धर्म निभाया हैं।
शववाहिनी के साथ आधी रात को भी तैयार प्रकाश


शववाहिनी का संचालन करने वाले प्रकाश खुद इसके चालक है और ईंधन का जुगाड़ भी खुद ही करते हैं। यहां कम्प्यूटर इंस्टीट्यूट चलाने वाले प्रकाश प्रजापति की प्रेरणा से एक भामाशाह ने यह वाहन मुहैया कराया था। शव ले जाने में किसी का पैसा खर्च न हो इसके लिए वे खुद ही चालक बन गए। जब भी किसी जरूरतमंद का फोन आता है वे तत्काल ही निकल पड़ते हैं। वे रक्तदान से लेकर शवों को घर तक पहुंचाने और लावारिस शवों का अंतिम संस्कार कराने तक के विभिन्न सेवा कार्यों से प्रकाश जुड़े हुए हैं।
लावारिश लाशों का परिजन की तरह करते है अंतिम संस्कार


प्रकाश ने बताया कि करीब साढ़े आठ वर्ष पूर्व सिरोही शहर के एक फुटपाथ पर एक भिखारिन की मौत हो गई थी। नगरपालिका में जब इसकी सूचना दी गई तो नगरपालिका ने कचरा उठाने वाली ट्रेक्टर ट्रॉली भेजी जो गंदगी से अटी पड़ी थी। ये दृश्य देखकर उनका अंतर्मन तार—तार हो गया। इस पर उन्होंने नगरपालिका के कर्मचारियों को ट्रॉली को धोने का आग्रह कर पूरी ट्रॉली को साफ पानी से धुलवाया, और शव को ट्रॉली में रखकर खुद भी श्मशान घाट तक साथ में गए। वहां लकड़ियों पर शव को डालकर आग के हवाले करते पूरी प्रक्रिया को देखा, जो असहनीय थी... उसी दिन से प्रकाश प्रजापति ने ठान लिया कि सिरोही में कोई भी लावारिश या बेसहारा मृतक को वो वारिस की तरह अंतिम संस्कार की समस्त सामग्री जुटाकर उसके धर्म के अनुसार पूरे विधि विधान के साथ शव यात्रा निकाल उनकी अंतिम क्रिया करेंगे। तब से लेकर आज तक वो अपना फर्ज निभा रहे हैं। अब ये सिरोही शहर के आसपास के 35 किलोमीटर तक के क्षेत्र में किसी भी लावारिश शव के मिलने पर उनका पूरे सम्मान के साथ अंतिम संस्कार करते हैं।
मरणोपरांत लिया देहदान का संकल्प
लावारिश लाशों को अंतिम संस्कार करने वाले समाजसेवी प्रकाश प्रजापति ने मरने के बाद अपने पूरे शरीर का देहदान करने का फैसला लिया। यानी जीवनभर समाजसेवा का बीड़ा उठाने वाले व्यक्ति ने मरने के बाद भी अपने शरीर के अंगों से जरूरतमन्दों की सेवा करने की ठान रखी हैं।
पिता की स्मृति में बनाया मोक्षरथ
कोरोना काल में जब लोग किसी भी शव के अंतिम संस्कार में शामिल होने से डर रहे हैं। शव को हाथ लगाने से डर रहे हैं। तो ऐसे में प्रकाश प्रजापति के सामने शव की अंतिम यात्रा निकालने में बड़ी समस्या खड़ी होने लगी। इन्होंने अपने पिता स्वर्गीय  हरजीरामजी ने नाम से एक मोक्ष रथ तैयार करवाया। जिस पर शव को रखकर उनकी अंतिम यात्रा निकालते हुए श्मसान घाट ले जाकर अंतिम संस्कार कर रहे हैं।

Must Read: RBSE 10वीं-12वीं की पूरक परीक्षाएं 4 अगस्त से, जानें परीक्षा शुल्क और आवेदन प्रक्रिया

पढें लाइफ स्टाइल खबरें, ताजा हिंदी समाचार (Latest Hindi News) के लिए डाउनलोड करें First Bharat App.

  • Follow us on :