कवि सम्मेलन में नेता और अफसरों की मौज : आम जनता की गाढ़ी कमाई से हुआ कवि सम्मेलन, जनता आई नहीं, कुमार विश्वास ने गाए पुराने परिचित एसडीएम और सरकार के गीत

महोत्सव के निमित्त बड़े आयोजन कवि सम्मेलन में न तो पर्यटक यहां आ रहे हैं और ना ही इस समारोह में उनकी कोई सक्रिय भागीदारी नजर आ रही हैं। पर्यटकों के साथ ही यहां के स्थानीय जनता ने भी समारोह में रुचि नहीं दिखाई है।

सिरोही | माउंट आबू बर्फीली हवाओं से सर्द हुआ यह शहर इन दिनों प्रशासन , पर्यटन विभाग और नगर पालिका के सहयोग से शरद महोत्सव मना रहा है। 
उद्घोष यही किया गया है कि इस समारोह का उद्देश्य पर्यटकों को राजस्थान के पर्वतीय पर्यटन स्थल के प्रति आकर्षित करना है। 
लेकिन मगर पटल पर जो कुछ दिख रहा है, वह नजारा अलग ही है।
शरद महोत्सव के पहले ही दिन शरद महोत्सव के कवि सम्मेलन में लाखों रुपए खर्च करने की उपादेयता क्या है! बस यह चर्चा का विषय बन गया है। चर्चा इसलिए भी की जा रही है क्योंकि इस महोत्सव के निमित्त बड़े आयोजन कवि सम्मेलन में न तो पर्यटक यहां आ रहे हैं और ना ही इस समारोह में उनकी कोई सक्रिय भागीदारी नजर आ रही है।
पर्यटकों के साथ ही यहां के स्थानीय जनता ने भी समारोह में रुचि नहीं दिखाई है। तो फिर सवाल उठना लाजमी है, लाखों खर्च कर जनता के दर्शकों का अभाव क्यों रहा।

ना श्रोता, ना पर्यटक और ना ही स्थानीय बाशिंदे, तो फिर किस लिए...

नगर पालिका माउंट आबू, पर्यटन विभाग और प्रशासन ने माउंट आबू शरद महोत्सव में चार चांद लगाने में कोई कसर नहीं छोड़ी।

लेकिन महोत्सव की पहली ही शाम फीकी नजर आई। कवि सम्मेलन में सबसे महंगे कवियों की लिस्ट में शामिल कवियों को मंच पर बुलाने के बावजूद ना तो श्रोता नजर आए, ना ही आबू आने वाले पर्यटक और तो और इस समारोह में माउंट के स्थानीय बाशिंदे भी शामिल नहीं हुए।

कवि सम्मेलन में आगे की कुछ पंक्तियों को छोड़ दे तो बाकि सारी कुर्सियां खाली ही नजर आई। इसके लिए तस्वीर बहुत कुछ बोल रही है।

कवि सम्मेलन में नेता, अधिका​री और उनके परिजनों की उपस्थिति ही नजर आई।

ऐसे में समारोह की कुर्सियों के खाली रहने पर समारोह की रंगत फीकी हो गई। हालांकि नगर पालिका और पर्यटन विभाग ने यहां जमकर पैसा बहाया है। ऐसे में अब आप पूछेंगे किस लिए ?

तो कवि सम्मेलन को देखने के बाद जो कुछ दिखाई दे रहा है उसमें यही समझ आता है कि यह सब स्थानीय नेताओं और अधिकारियों के व्यक्तिगत मनोरंजन के लिए हुआ।

नेताओं और अधिकारियों के सामने यह चुनौती है कि वह इस समारोह पर हुए खर्च की उपयोगिता साबित करें। जो कि वे नहीं कर सकते। माउंट आबू के समारोह पर हुआ अपव्यय एक मिसाल है।

जो शहर न सिर्फ विकास को तरस रहा है बल्कि तमाम समस्याओं से रूबरू है, वहां जनता के पैसों का ऐसा दुरुपयोग सहज रूप से ध्यान आकर्षित करता है।

शरद समारोह के विशाल पंडाल के आधे हिस्से पर स्थानीय नेता उनके परिवार के लोग विभिन्न विभागों के अधिकारी उनके परिवार के लोग ही नजर आए। इस आधे पांडाल में इन विशेष लोगों के बैठने की व्यवस्था की गई।

माउंट आबू कवि सम्मेलन और पत्रकार दीर्घा

शरद महोत्सव के कवि सम्मेलन के दौरान पांडाल में आधी से ज्यादा कुर्सियां खाली रही।

माउंट आबू नगर पालिका के अधिकारियों और जनप्रतिनिधियों के व्यवहार के चलते पत्रकार दीर्घा भी सूनी रही।

इस बार भी नगर पालिका की ओर से पत्रकारों के लिए समूचित व्यवस्था नहीं की, ऐसे में स्थानीय पत्रकारों ने इस समारोह का भी बहिष्कार किया।

पत्रकार दीर्घा का उचित स्थान नहीं मिलने पर पत्रकारों की उपस्थिति ना के समान रही। इस पर कवि सम्मेलन के मुख्य वक्ता, प्रेम रस के कवि कुमार विश्वास ने हालात को देखते हुए माउंट आबू प्रशासन और एसडीएम अभिषेक सुराणा को पत्रकारों की समूचित व्यवस्था करने तक व्यंग्यात्मक लहजे में कह दिया।

हालांकि अभिषेक सुराणा और कुमार विश्वास पुराने परिचित है।  कुमार विश्वास इनके मकान पर कुछ समय किराएदार के तौर पर रह चुके। इस लिहाज से भी उन्होंने यहां की व्यवस्थाओं को लेकर बोल गए। वहीं जिला कलेक्टर ने मामले में हस्तक्षेप भी किया।

सरकारी भाषा बोलते नजर आए कुमार विश्वास

गहलोत सरकार के इस आयोजन में कुमार विश्वास सरकारी भाषा बोलते नजर आए। पहले पहल तो करीब दो घंटे तक उन्होंने नगरपालिका चेयरमैन से लेकर मुख्यमंत्री तक के सरकारी भाषण सुने। बाद में वे गहलोत की नीतियों को तारीफ करते नजर आए। कुमार विश्वास की पत्नी आरपीएससी की सदस्य हैं।

ऐसे में उनकी मजबूरी साफ नजर आ रही थी। हालांकि उन्होंने नेताओं को घेरने के मामले में संयम लोढ़ा पर कुछ निशाने साधे, लेकिन गहलोत पर कुछ खास नहीं कहा। यही नहीं लोढ़ा ने अपने ​ट्वीटर पर कुमार को अंतरराष्ट्रीय कवि बताते हुए फोटो वायरल किया है। यह वही कुमार विश्वास हैं, जिन्होंने राहुल गांधी को पप्पू का सम्बोधन सबसे पहली बार दिया था।

विश्वास अपने सम्बोधन में मौजूदा उपखण्ड मजिस्ट्रेट सुराणा के परिवार का उन पर अहसान गिनाते रहे। और यह भी बोले कि वे यहां बोलकर नमक का कर्ज अदा कर रहे हैं। परन्तु यहां कवि सम्मेलन के लिए उन्होंने जनता की गाढ़ी कमाई से बनी सरकारी पूंजी में से एक मोटा हिस्सा भी फीस के तौर पर बटोरा है।

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