पॉलिक्टिस मेल—मुलाकात: गहलोत से मुलाकात के बाद राजपूत वोटर खिसकने का अंदेशा, प्रताप फाउण्डेशन में अब बीजेपी के अरुण सिंह ने लगाई ढोक

मोदी तुझसे वैर नहीं, वसुन्धरा तेरी खैर नहीं का नारा देने वाले राजपूतों का इस बार सीधा मन है, यदि मोदी सरकार उन्हें ईडब्ल्यूएस आरक्षण का लाभ देती है तो वे बीजेपी के विकल्प पर विचार करेंगे। साथ ही प्रदेश आलाकमान के तौर पर सतीश पूनिया भी राजपूतों की पसंद नहीं है। ऐसे में अरुण सिंह की यह मुलाकात कई मायने निकालती है।

गहलोत से मुलाकात के बाद राजपूत वोटर खिसकने का अंदेशा, प्रताप फाउण्डेशन में अब बीजेपी के अरुण सिंह ने लगाई ढोक

जयपुर | बीजेपी का धुर वोट बैंक माना जाने वाला राजपूत समाज भगवा पार्टी से उदासीन है। वजह यही है कि अब बीजेपी के प्रभारी अरुण सिंह ने राजपूत समाज की नाराजगी को दूर करने की नीयत से राजनीतिक संगठन प्रताप फाउण्डेशन के यहां हाजिरी लगाई है। 

हाल ही में क्षत्रिय युवक संघ संगठन के संरक्षक भगवानसिंह रोलसाहबसर की मुख्यमंत्री अशोक गहलोत से हुई लम्बी मुलाकात के बाद बीजेपी के नेताओं ने कान फड़फड़ाए हैं। परन्तु संगठन की मांग है कि केन्द्र सरकार ईडब्ल्यूएस आरक्षण की विसंगतियां दूर करे, परन्तु इस मांग पर बीजेपी के नेता मौन ही रहते हैं।

जयपुर-भाजपा के प्रदेश प्रभारी अरुण सिंह झोटवाड़ा स्थित संघशक्ति भवन पहुंचे। श्री क्षत्रिय युवक संघ के संरक्षक भगवान सिंह रोलसाहबसर से मुलाकात की। साथ ही प्रताप फाउण्डेशन के संयोजक महावीर सिंह सरवड़ी से भी शिष्टाचार भेंट की।

इस दौरान बीजेपी संगठन में सक्रिय प्रदेश मंत्री श्रवण सिंह बगड़ी, जैतारण विधानसभा क्षेत्र के युवा नेता भंवरसिंह बांझाकुड़ी तथा पूर्व विधायक प्रेमसिंह बाजौर भी मौजूद रहे। हालांकि पहले बीजेपी के संगठन मंत्री चन्द्रशेखर भी यहां हाजिरी लगा चुके हैं। परन्तु उप चुनावों में राजपूतों ने बीजेपी से यथोचित दूरी बनाए रखी। ऐसे में प्रदेश प्रभारी की इस मुलाकात के कई राजनीतिक मायने निकलते हैं।

यह सभी को ज्ञात है कि वसुन्धरा राजे संरक्षक भगवानसिंह रोलसाहबसर का खासा सम्मान करती हैं और वे प्रताप फाउण्डेशन का सहयोग प्राप्त करती रही हैं। हीरक जयंती समारोह में हुए राजपूत समाज के शक्ति प्रदर्शन और हाल ही में संगठन के संरक्षक भगवान सिंह तथा संयोजक महावीरसिंह सरवड़ी की गहलोत से मुलाकात चर्चा में है।

इस मुलाकात के सूत्रधार बने क्षात्र पुरुषार्थ फाउण्डेशन के केन्द्रीय सदस्य यशवर्धनसिंह शेखावत तथा राजस्थान पर्यटन विकास निगम के चेयरमैन धर्मेन्द्र राठौड़। अशोक गहलोत ने राजस्थान में ईडब्ल्यूएस आरक्षण की विसंगतियां दूर करके राजपूत समाज को अपने पक्ष में साधा। जिसके परिणामस्वरूप राजपूतों ने उप चुनावों, स्थानीय निकाय तथा पंचायतराज चुनावों में सीधे तौर पर कांग्रेस का साथ दिया।

अब 2023 के विधानसभा चुनावों से पहले वसुन्धरा राजे की सक्रियता ने बीजेपी नेताओं के कान फड़फड़ा दिए हैं। वसुन्धरा राजे के शक्ति प्रदर्शन के बाद अब बीजेपी के नेता ओम माथुर का बयान और पार्टी से लगातार नाराज राजपूतों को साधने की कोशिश के रूप में देखा जा रहा है।

दूसरी ओर जमीनी वोटों पर पकड़ से दूर, लेकिन आरएसएस के बूते दिल्ली में प्रभावी नेता ओम माथुर ने एक बयान यह दिया है कि 2023 का चुनाव केन्द्र के नेतृत्व में लड़ा जाएगा। इसके बाद सीएम का प्रत्याशी तय किया जाएगा।

ऐसा माना जा रहा है कि माथुर खुद का मन प्रदेश का सीएम बनने का है। ऐसे में इस बयान की मान्यता पर ही सवाल उठ जाते हैं। वहीं वसुन्धरा राजे के जन्मदिन समारोह में अधिकांश बीजेपी के राजपूत नेता शरीक हुए। राजे की प्रताप फाउण्डेशन से नजदीकी भी रही है। ऐसे में अब शेष बीजेपी नेता इस सवाल को लेकर चिंतित है कि राजपूत वोट उनके बुलावे पर क्या इस बार बीजेपी में लौट आएंगे?

तब शेखावत साध गए थे चुप्पी
22 दिसम्बर 2021 को जयपुर में हुए श्री क्षत्रिय युवक संघ के हीरक जयंती समारोह में कांग्रेस नेता धर्मेन्द्र राठौड़ जब प्रदेश की गहलोत सरकार द्वारा ईडब्ल्यूएस आरक्षण की विसंगतियां दूर करने का श्रेय लिया। तथा समाज हित में जलशक्ति मंत्री गजेन्द्रसिंह शेखावत से इन विसंगतियों के मुद्दे को मोदी सरकार के सामने उठाने की बात की। परन्तु अपने सम्बोधन के वक्त गजेन्द्रसिंह शेखावत इस मुद्दे पर सामाजिक मंच से राजनीतिक बयानबाजी नहीं करने की बात कहते हुए हुए चुप्पी साध गए थे।

परन्तु आम राजपूत के मन में इस मामले को लेकर एक बड़ी उम्मीद केन्द्र सरकार से है। क्षत्रिय युवक संघ का अनुषांगिक संगठन क्षात्र पुरुषार्थ फाउण्डेशन तो लगातार इस मामले पर सक्रिय है। मोदी तुझसे वैर नहीं, वसुन्धरा तेरी खैर नहीं का नारा देने वाले राजपूतों का इस बार सीधा मन है, यदि मोदी सरकार उन्हें ईडब्ल्यूएस आरक्षण का लाभ देती है तो वे बीजेपी के विकल्प पर विचार करेंगे। साथ ही प्रदेश आलाकमान के तौर पर सतीश पूनिया भी राजपूतों की पसंद नहीं है। क्योंकि पूनिया के संगठन में आम तथा युवा राजपूतों की भागीदारी संगठन की अपेक्षा के अनुरूप नहीं है। ऐसे में अरुण सिंह की यह मुलाकात कई मायने निकालती है।

(लेखक राजस्थान के वरिष्ठ पत्रकार एवं राजनीतिक विश्लेषक हैं)

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