विश्व: ताकि एशिया की बन सके सदी
भारतीय विदेश मंत्री बैंकाक के चुलालांगकोर्न विश्वविद्यालय में हिंद-प्रशांत का भारतीय ²ष्टिकोण विषय पर अपनी बात रखने गए थे। इसी दौरान उन्होंने कहा कि एशिया की दोनों शक्तियां मिलकर इक्कीसवीं सदी को एशिया की सदी के तौर पर स्थापित कर सकेंगी।
भारतीय विदेश मंत्री बैंकाक के चुलालांगकोर्न विश्वविद्यालय में हिंद-प्रशांत का भारतीय ²ष्टिकोण विषय पर अपनी बात रखने गए थे। इसी दौरान उन्होंने कहा कि एशिया की दोनों शक्तियां मिलकर इक्कीसवीं सदी को एशिया की सदी के तौर पर स्थापित कर सकेंगी।
दुनिया का कोई भी देश सबकुछ बदल सकता है, अपना पड़ोसी बदल नहीं सकता। यही स्थिति भारत और चीन की भी है। चीन में जिस बौद्ध धर्म को मानने वाले सबसे ज्यादा लोग हैं, उस बौद्ध धर्म की जन्मभूमि भारत है। चीनी यात्री ह्वेनसांग हों या फाह्यान, उन्होंने भारत की यात्राएं कीं और भारतीय संस्कृति के बारे में चीन को अवगत कराया।
चीन आज दुनिया की दूसरी बड़ी अर्थव्यवस्था है, जबकि भारत पांचवें नंबर की अर्थव्यवस्था है और कुछ वर्षों में उसे दुनिया की चौथी बड़ी अर्थव्यवस्था बनने की भविष्यवाणी अंतरराष्ट्रीय एजेंसियां भी कर रही हैं। फिर दुनिया की सबसे ज्यादा जनसंख्या इन्हीं दोनों देशों के पास है। यानी सबसे ज्यादा कार्यबल भी है। अतीत में दोनों देशों की जनसंख्या मिलकर पूरी दुनिया की पचपन प्रतिशत आबादी की हिस्सेदारी करती थी। हालांकि अब यह हिस्सेदारी घटकर सिर्फ चालीस प्रतिशत रह गई है। उसमें भी भारत की करीब पैंसठ फीसद आबादी युवा है और कार्यशील है। जाहिर है कि इतनी बड़ी जनसंख्या मिलकर दुनिया का इतिहास बदल सकती है। शायद यही वजह है कि भारतीय विदेश मंत्री एस जयशंकर ने यह बात कही है।
इसमें दो राय नहीं है कि अगर दोनों देशों के बीच के मतभेद की वजहें जब तक नहीं सुलझ जातीं, तब तक एशिया की सदी बनाने की दिशा में दोनों देशों का योगदान नहीं हो सकता। इसकी तरफ दोनों देशों को देखना होगा। तभी जाकर एशिया की सदी के सपने को साकार किया जा सकता है।
(उमेश चतुवेर्दी, वरिष्ठ भारतीय पत्रकार)
--आईएएनएस
एएनएम
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