सिरोही विधानसभा: ओटाराम देवासी का टिकट कटा तो पायल परसरामपुरिया हो सकती है उम्मीदवार!

ओटाराम देवासी के बाद अगर कोई मजबूत उम्मीदवार भाजपा के पास शेष रहता है तो वह पायल परसरामपुरिया है। यह निर्णय भाजपा केलिए फायदे का सौदा हो सकता है। पायल परसरामपुरिया की साफ सुधरी छवि, उनका महिला होना, उनका शिक्षित होना और उनके जिला प्रमुख के कार्यकाल को देखते हुए भाजपा उन्हें उम्मीदवार बना सकती है। 

ओटाराम देवासी का टिकट कटा तो पायल परसरामपुरिया हो सकती है उम्मीदवार!
ओटाराम देवासी का टिकट कटा तो पायल परसरामपुरिया हो सकती है उम्मीदवार!

धनराज माली

सिरोही। राजस्थान विधानसभा चुनावों की सरगर्मियों के बीच सिरोही विधानसभा सीट चर्चित सीट बन चुकी है। सिरोही विधानसभा सीट केलिए भाजपा को अपना उम्मीदवार घोषित करने केलिए भारी माथापच्ची करनी पड़ेगी, इसमें किसी को संदेह नहीं है। 

यह भी अजीब है कि सिरोही विधानसभा सीट से मौजूदा विधायक संयम लोढ़ा निर्दलीय है, इसके बावजूद वह कांग्रेस के कद्दावर नेता माने जाते है, यह भी राजनीति की अपनी खासियत है।

मौजूदा विधायक की मुख्यमंत्री अशोक गहलोत से नजदीकियों के चलते उन्होंने अपने क्षेत्र में कई जनपयोगी कार्य तो करवाए हैं, जमीनी स्तर पर उनकी मेहनत के चलते हर समय उनके दरवाजे पर माला पहनाने वालों की भीड़ भाजपा केलिए चिंताजनक विषय तो है ही।

 

ऐसी परिस्थितियों में भाजपा के पास सिरोही से उनके ठोक बजाए उम्मीदवार ओटाराम देवासी के अतिरिक्त कोई ऑप्शन शेष नहीं रहता है। इसलिए संयम लोढ़ा और पूर्व विधायक ओटाराम देवासी ही वापस एक दूसरे को टक्कर देते नजर आ सकते हैं। 

ओटाराम देवासी के पास जातिगत वोटों की सबसे बड़ी ताकत है, जो उनको अन्य उम्मीदवारों से मजबूत बनाती है, बाकी उपलब्धियों के नाम पर ज्यादा कुछ है नहीं।

वैसे भाजपा के अनेक कार्यकर्ता बाहरी उम्मीदवार को लेकर विरोध के स्वर तेज करते रहे हैं, लेकिन यह मुद्दा बड़ा इसलिए भी नहीं है कि पार्टी हाईकमान को इस सीट से जीताऊ उम्मीदवार ही चाहिए, ऐसे में भाजपा के पास ज्यादा विकल्प शेष नहीं रहते। 

राजनीतिक गलियारों में लोगों की जुबान पर संत कृपाराम महाराज व तीर्थगिरी महाराज जैसे नामों की चर्चा भी जोरो पर थी, लेकिन यह संभावनाएं भी धीरे-धीरे क्षीण पड़ती गई।

अगर बाहरी उम्मीदवारों की बात करें तो टिकट की दौड़ में शामिल प्रबल दावेदार पायल परसरामपुरिया और पूर्व जिला अध्यक्ष नारायण पुरोहित भी बाहरी समझे जा सकते है। यह दोनो ही सिरोही जिले से बेशक आते हो, सिरोही विधानसभा क्षेत्र से नहीं आते, इसलिए भी स्थानीय मुद्दा यहां भी ढेर हो जाता है।

महिला आरक्षण बिल को भाजपा इस बार चुनावों में जमकर भुनाने के मुड़ में दिखती है, जिसकी बानगी जयपुर में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के दौरे में दिख चुकी है। ऐसे में संभावना है कि राजस्थान में कुछ सीट महिलाओं को दी जा सकती हैं। 

अगर ऐसा होता है तो सिरोही में ओटाराम देवासी के बाद अगर कोई मजबूत उम्मीदवार भाजपा के पास शेष रहता है तो वह पायल परसरामपुरिया है। यह निर्णय भाजपा केलिए फायदे का सौदा हो सकता है। पायल परसरामपुरिया की साफ सुधरी छवि, उनका महिला होना, उनका शिक्षित होना और उनके जिला प्रमुख के कार्यकाल को देखते हुए भाजपा उन्हें उम्मीदवार बना सकती है। 

वैसे भी एक चर्चा यह भी है कि ओटाराम देवासी के बाहरी उम्मीदवार वाला विरोध तथा लंबे समय से यहां की राजनीति में दखल को देखते हुए उन्हें अन्य जगह से टिकट दिया जा सकता है, क्योंकि देवासी समाज को टिकट देने की मजबूरी भी पार्टी के पास है, जोधपुर सम्मेलन के बाद यह मजबूरी बढ़ी भी है।

जहां तक पूर्व जिलाध्यक्ष नारायण पुरोहित की बात है, संघ से नजदीकियों के चलते टिकट मिलने के कयास भले ही लग रहे हो लेकिन इनके ही कार्यकर्ताओं के बिंदास विरोध के स्वर भी रास्ते में बड़ी रुकावट है। 

वैसे भी अपने भाई को जिला प्रमुख बनाने से भी इनकी उम्मीदवारी कमजोर हो गई है, अगर टिकट मिलता है तो भारी विरोध हो सकता है।  वैसे भी नारायण पुरोहित को जिताऊ उम्मीदवार मानकर पार्टी कितना रिस्क लेगी यह देखने वाली बात होगी।

अन्य कुछ नाम भी है, लेकिन ऐसा कोई भी नाम नहीं जिस पर हम चर्चा करें या पार्टी चर्चा करके इस सीट को कांग्रेस की झोली में डाले। कांग्रेस छोड़कर या अन्य को छोड़कर भाजपा में आते ही टिकट मांग रहे लोगों को पार्टी कितनी तवज्जो देगी, यह सोचा जा सकता है।

पूर्व जिलाध्यक्ष लुंबाराम चौधरी भी लंबे समय से भाजपा से टिकट मांगते रहे हैं, भाजपा ने उनकी अब तक तो सुनी नहीं, इस बार सुनेगी! यह कहना भी जल्दबाजी ही होगी। चौधरी भी अपने पुत्र को उप जिला प्रमुख बना चुके है। 

माली समाज से भी इस बार दो नाम चर्चा में है। एक नाम तो पड़ोसी जिले से है, समाज की संस्था में अध्यक्ष है और संघ का दायित्व भी है, लेकिन लोगों के बीच किसी समाज का अध्यक्ष नहीं, आमजन के बीच मौजूद रहने वाला उम्मीदवार ही मायने रखता है, इसलिए संभावना कम ही है।

एक अन्य समाजसेवी की भी चर्चा तो हो रही है। पिछले चुनावों में क्षेत्र की कायापलट करने के वीडियो बनाकर खूब वायरल किए लेकिन बाद में खुद ही मैदान छोड़कर साइड हो गए। मौजूदा विधायक के मित्र भी है, इसलिए सिर्फ चर्चा ही रहेगी। वैसे भी पार्टी टिकट उसी को देती है जो सीना ठोककर सार्वजनिक मंच से पार्टी केलिए वोट मांगता हो।

इसलिए मौजूदा विधायक संयम लोढ़ा के सामने भाजपा के पास ओटाराम देवासी या पायल परसरामपुरिया के अलावा ऑप्शन कम बचते है, इसलिए मुकाबला संयम लोढ़ा वर्सेज ओटाराम देवासी या संयम लोढ़ा वर्सेज पायल परसरामपुरिया हो सकता है। इसकी संभावनाएं भी अत्यधिक है। फ़स्टभारत का आंकलन भी यही है। 

वैसे मध्यप्रदेश की तर्ज पर राजस्थान में भी भाजपा सांसदों और मंत्रियों को टिकट दे सकती है। लेकिन सिरोही में यह संभावना बहुत नहीं है क्योंकि यहां पहले से ही ढोल नगाड़े बज रहे हैं।

कांग्रेस से क्या है स्थिति - 
पिछले चुनावों में कांग्रेस के बागी उम्मीदवार संयम लोढ़ा को पार्टी इस बार टिकट देगी, ऐसी संभावना साफ तौर पर नजर आ रही है। कांग्रेस में चर्चा है कि पिछले बागी उम्मीदवारों को इस बार टिकट नहीं देकर पार्टी सबक सिखाएगी, लेकिन कांग्रेस इस स्थिति में नहीं है कि किसी को सबक सिखाए। 

इसलिए अगर संयम लोढ़ा का टिकट काटकर किसी अन्य को दिया जाता है तो भी संयम लोढ़ा पिछले चुनावों की तरह ताल ठोकेंगे ही, इसमें तो संदेह है नहीं। क्योंकि टिकट कटने पर वह घर बैठ जायेंगे, ऐसा लगता नहीं।

अगर कांग्रेस को दिल्ली हाईकमान के आदेश पर संयम लोढ़ा का टिकट काटना पड़ा तो शिवगंज से हरीश परिहार को टिकट दिया जा सकता है। हरीश परिहार माली समाज से आते हैं, उन्हें पार्टी मौका दे सकती है। 

परिहार इस मौके का फायदा उठा पाएंगे, यह कहना अभी मुश्किल है। हरीश परिवार के अलावा कांग्रेस से पूर्व जिलाध्यक्ष, मुंगथला से पुखराज गहलोत की भी टिकट केलिए दावेदारी की चर्चा तो है ही। पूर्व जिलाध्यक्ष जीवाराम प्रजापत के हश्र को देखते हुए पार्टी सोच समझकर ही निर्णय लेगी।

इस बार निर्दलीय बिगाड़ सकते हैं समीकरण -
वैसे माली समाज, देवासी समाज, पुरोहित समाज के साथ साथ बहुत लोग इस बार निर्दलीय भी नजर आ सकते है, जिन्हें लोग मौजूदा विधायक के मोहरों के रूप में देखेंगे, इसमें भी संदेह नहीं है। क्योंकि भाजपा से टिकट मांग रहे एक व्यक्ति को अभी से ही उनका मोहरा बताया जा रहा है, ऐसी  चर्चा है।

भाजपा के सामने चुनौतियां -
जालोर सिरोही सांसद देवजी पटेल ने तेरह चौदह वर्षों में इस क्षेत्र हेतु विकास की कितनी गंगा बहाई है, यह किसी से छुपा नहीं है। देवजी पटेल आदर्श सोसायटी के जमाकर्ताओं को मोदीजी के माध्यम से पाई पाई चुकाने का वादा करके गले में घंटी बांध चुके हैं।

चर्चा है कि इस बार चुनाव प्रचार में आदर्श सोसायटी के जमकर्ता अपनी पाई मांगने केलिए सामने आकर खड़े रह सकते हैं, ऐसे में देवजी नया वादा क्या करेंगे यह देखना दिलचस्प होगा।

कांग्रेस केलिए चुनौतियां -
संयम लोढ़ा के राजनीति में आने के बाद कांग्रेस में ऐसा कोई कद्दावर नेता इस जिले से नहीं पनपा जो उनका विकल्प बन सके। पिछले एक साल से संयम लोढ़ा के पुत्र की क्षेत्र में सक्रियता भी सवाल पैदा कर रही है कि क्या संयम लोढ़ा अपना विकल्प बना रहे हैं।

व्यक्ति का बढ़ता कद भी रास्ते में रुकावट बनता है, कांग्रेस में भी संयम लोढ़ा के चाहने वाले और न चाहने वाले भी तेजी से बढ़े है। कई लोग उनके हारने की राह देख भी रहे है तो भीतर से मेहनत भी करेंगे। 

बेशक संयम लोढ़ा की लोकप्रियता बढ़ी है लेकिन भाजपा का हिंदुत्व मुद्दा खासकर महिला वोटरों को ज्यादा लुभाता है, ऐसे में चुनौतियां कम नहीं है। वैसे भी राजनीति में सिर्फ विकास के मुद्दे पर चुनाव लड़ने के दिन अब रहे नही। अब रजीनीति साम दाम दंड भेद की भी है। 

कांग्रेस के सामने एक मुश्किल मुख्यमंत्री अशोक गहलोत की योजनाएं भी है। अनेक योजनाओं में कई लाभार्थी आज भी भटक रहे हैं, कुछ किराना समान की क्वालिटी से तो कुछ फोन न मिलने से, बहरहाल नाराज लोगों की फेहरिस्त भी लंबी है। चुनावों में सरकारी योजनाओं से वंचित लोगों को भी संभालना कांग्रेस केलिए मुश्किल होगा।

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