Sirohi : राजस्थान का माउण्ट आबू मॉडल, घर से दफ्तर चलाओ डबल चार्ज का ईनाम पाओ

पिछली सरकार को हार का सामना सरकारी दफ्तरों में जनता को धक्के पर धक्के खिलवाने वाले अधिकारियों को प्रोत्साहित करने से करना पड़ा था। जनता से सीधे तौर पर जुडे हुए कार्यालय जो सरकार की छवि बनाते और बिगाडते हैं

सिरोही। पिछली सरकार को हार का सामना सरकारी दफ्तरों में जनता को धक्के पर धक्के खिलवाने वाले अधिकारियों को प्रोत्साहित करने से करना पड़ा था। जनता से सीधे तौर पर जुडे हुए कार्यालय जो सरकार की छवि बनाते और बिगाडते हैं वो हैं नगर पालिकाएं और ग्राम पंचायत। आम आदमी की रोटी, कपडा  और मकान जैसी रोजमर्रा की जरूरतों के हर काम यहां से होते है। पर जब अधिकारी दफतरों में बैठने बजाय कुर्सियां छोडकर घरों से दफतर चलाते हैं और जनता को धक्का खिलवाते हैं तो जनता सीधे तौर पर इसके लिए सरकार को ही दोषी मानती है। ये ही हालात पिछले करीब चार सालों से माउण्ट आबू नगर पालिका में आए अलग-अलग आयुक्तों ने कर रखे हैं। ये परिपाटी गहलोत  सरकार के बाद भजनलाल सरकार में भी जारी है, इस पर ऐसे अधिकारियों की कार्य प्रणाली दुरूस्त करने की बजाय ईनाम दिया जाने लगे तो आम आदमी में सरकार की छवि कैसी बनेगी ये बताने की जरूरत नहीं है।
-ईनाम में सिरोही का अतिरिक्त चार्ज
माउण्ट आबू के आयुक्त शिवपालसिंह और उनसे पहले के आयुक्त रामकिशोर को लेकर लम्बे समय से माउण्ट आबू की जनता और खुद जनप्रतिनिधि भी ये शिकायतें करते रहे हैं कि ये लोग नगर पालिका में अपने चैम्बर में नहीं बैठते। नगर पालिका परिसर में स्थित अपने घरों में ही बैठे रहते हैं। इनके कार्यालय भी वहीं से चलते हैं। सामान्य नागरिक चैम्बर के चक्कर काट काट कर परेशान हो जाता है लेकिन, हर बार जवाब उन्हें यही मिलता है कि साहब नहीं हैं। 
सरकार बदलने से पहले माउण्ट आबू में रामकिशोर और उनके बाद शिवपालसिंह आयुक्त हैं। कांग्रेस राज वाला ढर्रा भजनलाल सरकार के एक साल होने के बाद अब भी बरकरार रखने का आरोप इन पर लगातार लग रहा है। इसके बाद भी जनता को परेशान  करने वाले ऐसे अधिकारियों को इनाम स्वरूप सिरोही नगर परिषद का अतिरिक्त चार्ज भी दे दिया गया है। ये प्रमाण है कि गहलोत सरकार की तरह भजनलाल सरकार भी जनता को धक्के खिलवाने वाले अधिकारियों के प्रति सहिष्णु है। 
-घर पर जाने पर विवाद भी हुआ 
ये अधिकारी नगर पालिका की जगह नगर पालिका परिसर में जुडे उनके मकानों से ही कार्यालय चलाने की शिकायतों से घिरे रहे। आरोप ये भी लगते रहे हैं कि जरूरी और प्रभावशाली लोगों की पत्रावलियां ये लोग कार्मिकों से घरों पर ही मंगवा लेते आम आदमी अपनी छोटी-बडी अर्जियों को लेकर दफतर में चक्कर पर चक्कर काटता रहता है। वो इनके घरों में काम के लिए नहीं जा पाता है। रामकिशोर के कार्यकाल में तो नगर पालिका के जनप्रतिनिधि द्वारा  कार्यालय में नहीं बैठने के कारण उनके घर पर काम लेकर चले जाने पर घर में घुसने का विवाद खडा कर दिया था। ऐसे हाल में आम आदमी किस तरह से रामकिशोर और शिवपालसिंह जैसे अधिकारियों के घर से दफतर चलाने की प्रवृति के कारण अपने काम से वंचित रह जाता होगा ये अंदाज लगाना मुश्किल नहीं है।