हाड़ा वंश: कोटा के पूर्व महाराव बृजराजसिंह नहीं रहे, निधन से पहले तय कर गए बूंदी राजवंश का मुखिया

महाराव के निधन से राजस्थान के राजपूत समाज में शोक की लहर है। ये इतिहास प्रसिद्ध महाराजा गंगासिंह बहादुर बीकानेर के दोहिते थे। अपने निधन से करीब एक माह पूर्व वे हाड़ा वंश का सबसे बड़ा सवाल हल कर गए कि बूंदी राजवंश का मुखिया कौन होगा? महाराव ने कापरेन ठिकाने के कुंवर वंशवर्धन सिंह के नाम पर बनी सहमति को ...

जयपुर | कोटा पूर्व राज परिवार के मुखिया महाराव बृजराज सिंह का 29 जनवरी शनिवार की सुबह निधन हो गया है। वे 87 वर्ष के थे। बृजराजसिंह राजस्थान के झालावाड़ लोकसभा सीट से तीन बार सांसद रह चुके हैं। अपने निधन से करीब एक माह पूर्व वे हाड़ा वंश का सबसे बड़ा सवाल हल कर गए कि बूंदी राजवंश का मुखिया कौन होगा? अब तक राजपूताने में यह कहा जा रहा था कि बूंदी की पाग खूंटी पर टंगी है। महाराव ने कापरेन ठिकाने के कुंवर वंशवर्धन सिंह के नाम पर बनी सहमति को दिसम्बर में मान्यता प्रदान कर दी थी। महाराव के निधन से राजस्थान के राजपूत समाज में शोक की लहर है। ये इतिहास प्रसिद्ध महाराजा गंगासिंह बहादुर बीकानेर के दोहिते थे।

राजनीति में सक्रिय रहते हुए महाराव ने हाड़ोती के विकास के लिए काफी काम किया था। वे 1962 में पहली बार भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस तथा 1967 तथा 1971 में भारतीय जनसंघ से झालावाड़ से जीते थे। बृजराजसिंह कोटा के अंतिम शासक महाराव भीम सिंह द्वितीय के पुत्र थे। बृजराजसिंह के बेटे इज्यराजसिंह 2009 से कोटा लोकसभा सीट से सांसद रह चुके हैं और उनकी पुत्रवधु श्रीमती कल्पना देवी लाडपुरा से मौजूदा बीजेपी विधायक हैं।

इन्होंने 5 दिसंबर 1956 को प्रतापगढ़ के महारावत सर राम सिंहजी द्वितीय बहादुर की बेटी महारानी माहेश्वरी देवी से पहली शादी की। तलाक के बाद इनका दूसरा विवाह 21 मई 1963 को कूचबिहार के महाराज कुमार इंद्रजीतेंद्र नारायण की बेटी महारानी उत्तरा देवी से हुई थी।

बृजराज सिंह ने 1958 से विभिन्न पदों पर कार्य किया, जिसमें अध्यक्ष केंद्रीय सहकारी बैंक, कोटा (1959–61), झालावाड़ के लिए सांसद (लोकसभा) 1962-1967, 1967-1970 और 1971-1977 आदि शामिल हैं।

इनके पिता महाराव भीमसिंह द्वितीय 1956 तक राजस्थान संघ के उप राज प्रमुख रहे थे। 

उनकी बेटी शिवकुमारी साहिबा बृजराजसिंह की माता थीं। 20 जुलाई 1991 को पिता भीमसिंह द्वितीय के निधन के बाद वे पूर्व राजपरिवार के मुखिया थे।

हाड़ाओं की समस्या सुलझाई
अपने निधन से पूर्व उन्होंने हाड़ा वंश की एक बड़ी समस्या का निस्तारण किया है। बूंदी रियासत की पाग खूंटी पर टंगी होने का मामला लगातार चर्चा में था।
दिसम्बर में कुछ लोगों द्वारा ब्रिगेडियर भूपेश हाड़ा को बूंदी के पूर्व राज परिवार का मुखिया घोषित कर दिया गया। जब राजतिलक जैसी पारंपरिक रस्म को इस तरह आयोजित किए जाने जानकारी मिली तो वे खासे व्यथित हुए। उन्होंने कुंवर वंशवर्धनसिंह कापरेन को वास्तविक उत्तराधिकारी बताते हुए सामंतों द्वारा किए गए निर्णय को मान्यता दी। 

इस असमंजस की स्थिति में महारावल बृजराजसिंह ने ही आगे आकर यह साफ किया कि परम्परा का निर्वहन पूर्व निर्धारित व्यवस्थाओं के तहत ही किया जाना चाहिए। इसके तहत वंशवर्धन सिंह कापरेन ही सही उम्मीदवार हैं। बूंदी के भाणेज भंवर जितेन्द्रसिंह ने भी कोटा महाराव द्वारा दी गई मान्यता का स्वागत और अनुमोदन किया।

इस तरह स्पष्ट की व्यवस्था, वंशवर्धनसिंह को माना असली हकदार

दिसम्बर माह में बूंदी में कुछ लोगों ने पाग समिति नामक एक संस्था के माध्यम से भूपेश सिंह हाड़ा को बूंदी का महाराव घोषित कर दिया था। यही नहीं राजतिलक जैसी रस्म आयोजित कर उसका मीडिया प्रचार भी किया गया।

इस पर कोटा महाराव बृजराजसिंह ने एक पत्र मीडिया को लिखकर इस पर अपनी भावना बताई की थी। महाराव बृजराजसिंह ने पत्र में साफ लिखा था कि "भारतीय परंपरा के अनुरूप किसी घर के स्वामी के निधन के बाद उस परिवार के वरिष्ठ व्यक्ति को उत्तराधिकारी घोषित करने की औपचारिकता की जाती है। इस औपचारिकता को पगड़ी के दस्तूर के रूप में जनभाषा में कहा जाता है। पगड़ी की औपचारिकता का मुख्य उद्देश्य परिवार की निरंतरता को बनाए रखना तथा परिवार द्वारा प्रतिपादित मर्यादाओं का सुचारु रूप से पीढ़ी दर पीढ़ी अनुपालना किया जाना है। सामूहिक पगड़ी आयोजन जनसामान्य की स्वीकृति को भी इंगित करता है। इस परिपाटी को जन सामान्य पुरातन काल से अनुसरण करते आए हैं।"

महाराव बृजराजसिंह ने बूंदी में हुए नाटकीय घटनाक्रमों पर अपनी नाराजगी भी इस पत्र में व्यक्त करते हुए आगे लिखा था कि "यही सिद्धांत राज परिवारों के पगड़ी के संदर्भ में भी विशेष रूप से लागू होती है। पगड़ी की रस्म एक धार्मिक रस्म है जिसे मतदान द्वारा निर्णीत नहीं किया जा सकता। यह पगड़ी की रस्म कुल—रीति तथा कुल—परिपाटी के अनुरूप संपन्न की जाती है। उन्होंने लिखा बूँदी राजघराने के शौर्य और पराक्रम की कथाओं के अंकन भारत और राजस्थान के इतिहास में सुनहरे प्रस्ताव में किया गया है। इस राजकुल की पगड़ी परम्परा को विवादित एवं हास्यास्पद बनाना इस राज्य की परंपरा के अनुकूल नहीं है।"

महाराव ने अपने पत्र में यह भी जानकारी दी कि "बूंदी राजवंश की पगड़ी परम्परा के खिलाफ दुष्प्रचार से खिन्न होकर बूँदीराजवंश से जुड़े पूर्व हाड़ा सामंत एवं बून्दी के पूर्व उमराव एवं जागीरदारों ने पाँच दिसंबर को बूँदी में सामूहिक रूप से सर्वसम्मति एक प्रस्ताव पारित कर बूंदी राज्य की कापरेन शाखा के कुमार वंशवर्धनसिंह जो पूर्व महाराजा बहादुर सिंह जी के छोटे भाई महाराज केसरी सिंह जी के पौत्र हैं। उनको बून्दी की गद्दी का असली वारिस माना है। इन सभी सामंतों ने मुझे एवं भाणेज साहब श्री जितेन्द्र सिंह जी अलवर से अनुरोध किया है कि वे इस सुझाव को अनुमोदित कर बूंदी राजकुल की निरंतरता को जीवित रखने में अपना योगदान प्रदान करें।"

महाराव ने पत्र के अंत में यह स्पष्ट रूप से लिखा कि "बूंदी की पाग के लिए बूंदी कापरेन का सामंत परिवार निकटस्थ है। इसका निर्धारण महाराव राजा ईश्वरसिंह जी ने 90 वर्ष पूर्व कापरेन शाखा के बहादुरसिंह जी को गोद लेकर कर दिया है। इसी नज़ीर के अनुरूप श्री वंशवर्धनसिंह को बूँदी की पाग का असली हकदार मानने का बून्दी पूर्व सामंतों का प्रस्ताव पुरातन प्रतिपादित परंपरा के अनुकूल होने के कारण मैं भी इस प्रस्ताव का अनुमोदन करते हुए मान्यता देता हूँ।" 21 June 1991

महाराव के इस पत्र के बाद अलवर के पूर्व महाराज जितेन्द्रसिंह ने भी इसका समर्थन किया और सालों से चले आ रहे नाटकीय घटनाक्रमों पर एक स्थिति स्पष्ट हुई है।