स्टिंग: संस्थागत प्रसव को धता बताता सरकारी कंपाउंडर, घर पर ही खोल लिया अस्पताल, मासूमों और प्रसूताओं का जीवन खतरे में

महिला साक्षरता में सबसे पिछड़ा जिला और स्वास्थ्य सेवाओं के लिहाज से देश के निम्नतम जिलों में शुमार जालोर अवैध मेडिकल प्रेक्टिस करने वालों का गढ़ बनता जा रहा है। निजी तो छोड़िए सरकारी तनख्वाह ले रहे कंपाउंडर भी डाक्टर बनकर मरीजों के जीवन के खिलवाड़ कर रहे हैं।

जालोर | महिला साक्षरता में सबसे पिछड़ा जिला और स्वास्थ्य सेवाओं के लिहाज से देश के निम्नतम जिलों में शुमार जालोर अवैध मेडिकल प्रेक्टिस करने वालों का गढ़ बनता जा रहा है। निजी तो छोड़िए सरकारी तनख्वाह ले रहे कंपाउंडर भी डाक्टर बनकर मरीजों के जीवन के खिलवाड़ कर रहे हैं। हमने एक स्टिंग में यह पाया है कि जालोर जिले के कोट कास्तां में आयुर्वेद चिकित्सालय में कार्यरत एक कंपाउंडर भीनमाल कस्बे में ही घर में अस्थाई अस्पताल चला रहा है। वह घर पर ही प्रसव करवाता है और संस्थागत प्रसव के सरकारी अभियान की धज्जियां उड़ाते हुए नौनिहालों के साथ-साथ माताओं के जीवन के साथ भी खिलवाड़ कर रहा है।
कोस्ट कांस्ता में कार्यरत कंपाउंडर रायमल चौधरी के घर पर आप देख सकते हैं कि एक अवैध चिकित्सालय संचालित है। बताया जाता है कि इस चिकित्सालय को उपरी अधिकारियों की भी शह है। सरकारी

चिकित्सालयों में आने की बजाय मरीज यहां भटकने को मजबूर हैं। यहां पर कई नवजातों की मौत हो चुकी हैं और प्रसूताओं का जीवन खतरे में पड़ चुका है। बताया जाता है कि स्थिति बिगड़ने पर परिजनों के पास यहां से आनन फानन में गुजरात भागने के अलावा कोई चारा नहीं रहता। आसपास के लोग भी यहां के हालातों से परेशान है, लेकिन राजनीतिक रसूखातों के चलते यह कंपाउंडर लोगों की जान से खिलवाड़ करने की अवैध प्रेक्टिस को बेखबर अंजाम दिए जा रहा है।


जालोर में मातृ और शिशु मृत्यु-दर ज्यादा
शिक्षा और स्वास्थ्य सेवाओं का अभाव होने के चलते जालोर देश के पिछड़े जिलों में शुमार होता है। आपको जानकर हैरत होगी कि इस जिले में मातृ और शिशु मृत्यु दर एक बड़ी समस्या है। साथ ही कुपोषित बच्चों का जन्म और प्रसव के दौरान जटिलताएं भी अधिक देखने को मिलती है।

इन सबके बीच ऐसे कंपाउंडरों की यह अवैध प्रेक्टिस सरकार के संस्थागत प्रसव के कायदों को धता बता रही है। साथ ही परिजनों को सरकारी सुविधाओं का लाभ तक नहीं मिलता। दबी जुबान में कुछ लोग यहां एमटीपी और पीसीपीएनडीटी जैसे बड़े कानूनों की धज्जियां उड़ाने की बात भी बताते हैं। परन्तु जिला स्तर पर बैठे अफसर इसके खिलाफ कार्रवाई क्यों नहीं करते यह समझ से परे हैं।

किसी तरह के उपाय नहीं
इस अवैध चिकित्सालय पर किसी तरह के सुरक्षा उपाय नजर नहीं आते। कोविड के हालातों को लेकर सुरक्षा उपाय तो छोड़िए साधारण मेडिकल सुविधाओं को लेकर किए जाने वाले उपाय और बायो मेडिकल वेस्ट निस्तारण जैसी व्यवस्थाएं भी यहां दूर की कौड़ी है। कंपांउडर घर में खाट पर आंगन में ही इलाज करता है। 

सुई लगाने, महिलाओं के प्रसव कराने जैसी तकनीक बाबा आदम के जमाने की है। साथ ही सेनिटाइजेशन और स्र्टलाइजेशन जैसे कामों में तो यह मरीजों के लिए जानलेवा हालात खड़े किए हुए हैं।