Education IGNOU: इग्नू के शिक्षाविद ने छात्रों के लिए सोशल वर्क पर लिखी अंतर्राष्ट्रीय स्तर की भारतीय पुस्तक
1936 से लेकर अब तक भारतीय छात्र और शोधकर्ता इस विषय के लिए वैश्विक स्तर की पाठ्यपुस्तकों के लिए पूरी तरह से यूरोपीय और अमेरिकी विद्वानों द्वारा लिखी गयी पुस्तकों पर निर्भर थे। डॉ. दास की पुस्तक को 26 अध्यायों से युक्त चार खंडों में विभाजित किया गया है।
नई दिल्ली | इंदिरा गांधी राष्ट्रीय मुक्त विश्वविद्यालय (इग्नू) के शिक्षाविद व एसोसिएट प्रोफेसर डॉ. बिष्णु मोहन दास ने इंट्रोडक्शन टू सोशल वर्क नामक विश्व विख्यात पुस्तक लिखी है। 1936 में ब्रिटिश औपनिवेशिक शासन के दौरान टाटा इंस्टीट्यूट ऑफ सोशल साइंसेज मुंबई द्वारा सोशल वर्क को एक विषय के रूप में शुरू किया गया था।
1936 से लेकर अब तक भारतीय छात्र और शोधकर्ता इस विषय के लिए वैश्विक स्तर की पाठ्यपुस्तकों के लिए पूरी तरह से यूरोपीय और अमेरिकी विद्वानों द्वारा लिखी गयी पुस्तकों पर निर्भर थे। डॉ. दास की पुस्तक को 26 अध्यायों से युक्त चार खंडों में विभाजित किया गया है। भारत और नाइजीरिया (अफ्रीका) के विभिन्न प्रतिष्ठित विश्वविद्यालयों, संस्थानों के अत्यंत अनुभवी सोशल वर्क के शिक्षाविदों ने इसके विभिन्न अध्यायों को लिखा है।
अंतरराष्ट्रीय ख्याति प्राप्त प्रकाशक एसएजीई इंडिया प्रकाशन (नई दिल्ली, कैलिफोर्निया, लंदन, सिंगापुर) द्वारा प्रकाशित हुई है। गौरतलब है कि पिछले आठ दशकों में एसएजीई द्वारा किसी भी भारतीय शिक्षाविद द्वारा समाज कार्य पर अंतर्राष्ट्रीय स्तर की यह पहली पाठ्यपुस्तक है।
दास इग्नू के ग्रामीण विकास विभाग में पाठ्यक्रम समन्वयक के रूप में कार्यरत है।
डॉ. दास ने बताया कि यूरोपीय और अमेरिकी शिक्षाविदों द्वारा लिखी गई पुस्तकें पश्चिमी समाज की आवश्यकताओं और प्रयोगों पर आधारित हैं। उनमें सोशल वर्क के क्षेत्र में भारतीय अनुभवों और प्रयोगों के लिए लगभग कोई जगह नहीं है।
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डॉ. दास के अनुसार, जो छात्र उन पुस्तकों को अपनी अध्ययन सामग्री के रूप में संदर्भित करते हैं, वे सोशल वर्क के पश्चिमी ²ष्टिकोण से अच्छी तरह परिचित हो जाते हैं, लेकिन भारतीय जड़ों से कट जाते हैं। वो विद्यार्थी और शोधार्थी आगे चलकर यूरोसेंट्रिक विद्वान बन जाते हैं और अंतत: भारतीय ज्ञान व्यवस्था के घोर विरोधी बन जाते हैं।
उन्होंने स्पष्ट किया है की यह पुस्तक विभिन्न सोशल वर्क सिद्धांतों और प्रयोगों के वैश्विक महत्व को रखने के साथ साथ भारतीय समाज कार्य विचारकों, सिद्धांतों और प्रयोगों को भी शामिल करती है, ताकि इसे भारतीय परिवेश के लिए प्रासंगिक बनाया जा सके।
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इस प्रकार यह भारतीय ज्ञान व्यवस्था के युगानुकूलन का एक बौद्धिक प्रयास है। सोशल वर्क के स्नातक एवं परास्नातक छात्रों के अलावा यह पुस्तक सिविल सेवा के अभ्यर्थियों के लिए भी बेहद उपयोगी होगी।
डॉ. दास ने बताया कि प्रकाशन के कुछ ही सप्ताह के भीतर इस पुस्तक को भारतीय और विदेशी विश्वविद्यालयों के शिक्षाविदों से अपार प्रशंसा मिल रही है। 18 अगस्त को, राजीव गांधी राष्ट्रीय युवा विकास संस्थान, खेल और युवा मंत्रालय, भारत सरकार ने कुछ अन्य विश्वविद्यालयों के शिक्षकों को आमंत्रित करके एक पैनल डिस्कशन (बौद्धिक परिचर्चा) का आयोजन किया।
एक और पैनल डिस्कशन आगामी 29 अगस्त को भोपाल स्कूल ऑफ सोशल साइंसेज, भोपाल में निर्धारित है।