मुम्बई टीआरपी जैसा विज्ञापन घोटाला: झूठे चैनल और बिलों के माध्यम से कई छुटभैये पत्रकार विज्ञापन के नाम पर लूट रहे हैं राजकोष, करोड़ों का खेल, जिम्मेदार मौन

कहने को जालोर छोटा सा जिला है, लेकिन जिले में एक ऐसा बड़ा खेल चल रहा है कि मायानगरी मुम्बई में हुआ टीआरपी घोटाला जेहन में कौंध जाएगा। वहां बड़े चैनल और उसके लोग थे, लेकिन यहां तो कई छुटभैये पत्रकार चांदी कूटने में लगे हुए हैं। ये लोग फर्जी बिल, ​मीडिया संस्थानों के माध्यम से राजकोष को ऐसा चूना लगाने...

जालोर | कहने को जालोर छोटा सा जिला है, लेकिन जिले में एक ऐसा बड़ा खेल चल रहा है कि मायानगरी मुम्बई में हुआ टीआरपी घोटाला जेहन में कौंध जाएगा। वहां बड़े चैनल और उसके लोग थे, लेकिन यहां तो कई छुटभैये पत्रकार चांदी कूटने में लगे हुए हैं। ये लोग फर्जी बिल ही नहीं बल्कि फर्जी ​मीडिया संस्थानों के माध्यम से राजकोष को ऐसा चूना लगाने की माया कई सालों से रचे हुए हैं कि जिम्मेदार इस ओर देख भी नहीं रहे। इस खेल में न केवल जनता लुट रही है, बल्कि बड़े मीडिया संस्थानों की साख भी गिर रही है क्योंकि अधिकांश बिल इनके नाम से दिए जा रहे हैं। जबकि इन संस्थानों तक यह विज्ञापन कभी पहुंचे ही नहीं। सूचना के अधिकार के तहत जब जानकारियां मांगी तो यह पोल चौड़े आई है और विज्ञापनों का रिलीज आर्डर और उनके बिल का भुगतान करने बाबुओं में हड़कम्प मचा हुआ है। छोटे से हिस्से पर खुश होने वाले बाबू अब तनाव में है। हमारे सूत्र बताते हैं कि मामला कई बार एसीबी के स्थानीय दफ्तर की चौखट तक भी पहुंचा, लेकिन अफसर पता नहीं क्यों अपनी जिम्मेदारी निभा नहीं पाए और यह खेल लगातार बड़ा होता जा रहा है। आरटीआई लेने वाले व्यक्ति ने जब इसकी जानकारी सोशल मीडिया पर डाली तो घोटाला करने वाले लोग अब उसकी खुशामद में जुटे हैं।

ऐसे होता है खेल
लगभग सभी सरकारी विज्ञापन सूचना एवं जनसम्पर्क विभाग की ओर से जारी किए जाते हैं। परन्तु स्वायत्तशासी संस्थानों, ग्राम पंचायतों आदि को अपने स्तर पर विज्ञापन देने के अधिकारों का फायदा ये लोग उठा रहे हैं। इनकी भुगतान शीट देखें तो इसमें आपको जानकर हैरत होगी कि राजस्थान पत्रिका, दैनिक भास्कर, नवज्योति, राष्ट्रदूत जैसे बड़े संस्थानों का बिल जहां पांच हजार सात हजार का बन रहा है, वहीं चार पन्नों वाले ऐसे अखबार जो जनता तक पहुंच ही नहीं उनका बिल चालीस—पैंतालिस हजार का उठ रहा है। मजे की बात तो यह है राज्य स्तरीय और राष्ट्रीय स्तरीय अखबारों को यह निकाय सरकारी अर्थात डीपीआर दर से विज्ञापन जारी करते हैं जबकि ये छुटभैये बिना किसी दर के मनमर्जी का बिल पेश करते हैं और बड़े अखबारों से पहले बिल उठा ले जाते हैं। बताया जा रहा है इसमें विज्ञापन जारी करने वाली अथॉरिटी और भुगतान करने वालों सबका हिस्सा तय होता है।

बड़े संस्थानों को चूना
जी मीडिया, सुदर्शन टीवी समेत कई बड़े संस्थानों के पेश किए बिलों की जानकारी जब पड़ताल की तो मालूम हुआ कि ये बिल फर्जी है। जयपुर स्थित या दिल्ली स्थित कार्यालयों में इस तरह के बिल नहीं होते। क्योंकि विज्ञापन पर जीएसटी होती  है और बिना ​जीएसटी के जारी किए गए इन बिलों का आधार भी नहीं है और ये सरकार को न केवल विज्ञापन ​बल्कि टैक्स का भी चूना लगा रहे हैं। आश्चर्य तो तब होता है कि कई अखबार मार्केट में आते तक नहीं है और उनके हजारों के ​बिल पास हुए जा रहे हैं। यह खेल बीते कई सालों से चल रहा है और घोटाला करोड़ों तक में पहुंचा है। बताया जा रहा है कि ये लोग कम्प्यूटराइज्ड तरीके से मीडिया संस्थानों की न्यूज का वीडियो डाउनलोड करके बीच में विज्ञापन घुसाते हैं और उसकी सीडी बनाकर इन बिलों को पास करवा लेते हैं। कई बार इसकी शिकायतें भी हुई, लेकिन एकाध स्थानीय नेता भी इन छुटभैये और चाटुकार टाइप के पत्रकारों के रहनुमा बने हुए हैं। एक पूरी गैंग इस तरह का काम कर रही है। कुछ पत्रकार तो इन संस्थानों में काम कर रहे हैं और स्थानीय लोगों से महज बाइट करने के, वीडियो में दिखाने के और पट्टी चलाने तक के पैसे वसूल कर रहे हैं, ज​बकि यह पूर्णतया निशुल्क होता है। सरकारी दफ्तर बिना जीएसटी के बिल कैसे पास करते हैं, यह अभी तक समझ नहीं आ रहा।