भ्रष्टाचार को सींच रही ब्यूरोक्रेसी: बसपा के वाजिब खुलकर बोले, चालीस विधायकों की भी शिकायत, फिर भी माउंट में ब्यूरोक्रेसी हावी
एक आम आदमी नगर पालिका के बाहर भ्रष्ट सिस्टम की पोल खोलने के लिए माउंट आबू वासियों के अधिकारों की लड़ाई लड़ रहा है, लेकिन ब्यूरोक्रेसी उसके अनशन का मजाक बना रही है। खुद नगर पालिका रसूखदारों को नियम दरकिनार कर फायदा पहुंचा रही है, जबकि आम आदमी के अधिकार नजर अंदाज कर गांधी वाटिका में लिखी इबारत को भूल रही है।
माउंट आबू। महात्मा गांधी ने कहा था एक आदमी परिवर्तन ला सकता है और परिवर्तन हमेशा एक आदमी से शुरू होता है। महात्मा गांधी के इसी वाक्य को माउंट आबू नगर पालिका ने बाकायदा शहर के ह्रदयस्थल नक्की झील के किनारे बनाई गई गांधी वाटिका में उनके स्टेच्यू के समीप लिखी पुस्तक में इबारत के रूप में अंकित कर रखा है।
दूसरी तरफ शहर का एक आम आदमी नगर पालिका के बाहर भ्रष्ट सिस्टम की पोल खोलने के लिए माउंट आबू वासियों के अधिकारों की लड़ाई लड़ रहा है, लेकिन ब्यूरोक्रेसी उसके अनशन का मजाक बना रही है। खुद नगर पालिका रसूखदारों को नियम दरकिनार कर फायदा पहुंचा रही है, जबकि आम आदमी के अधिकार नजर अंदाज कर महात्मा गांधी की गांधी वाटिका में लिखी इबारत को भूल रही है। केवल नगर पालिका ही नहीं, उपखंड अधिकारी कार्यालय को भी आम आदमी के अनशन से कोई सरोकार नहीं है।
वह भी तब जब बसपा से कांग्रेस में शामिल हुए भरतपुर के नगर से विधायक वाजिब अली एक दिन पहले ही पत्रकारों के सामने ब्यूरोक्रेसी के सरकार पर हावी होने की पोल खोल चुके हैं। जी-6 के प्रतिनिधि राजेन्द्र गुढ़ा समेत गहलोत सरकार के चालीस से अधिक विधायक सीएम अशोक गहलोत तक ब्यूरोक्रेसी के हावी होने की शिकायतें पहुंचा चुके हैं।
विधायकों की पीड़ा और शिकायतों का सार यह है कि रसूखदार तो ब्यूरोक्रेसी से संपर्क साधकर अपना काम निकलवा रहे हैं, जबकि आम आदमी ब्यूरोक्रेसी की मनमानी के चलते संबंधित कार्यालयों के चक्कर काटने को मजबूर है।
पर्वतीय पर्यटन स्थल माउंट आबू में हीना रिसोर्ट का प्रकरण ब्यूरोक्रेसी की हठधर्मिता का नतीजा कहा जा सकता है। हीना रिसोर्ट के रिवाइज्ड प्लान को 7650 वर्ग फीट के नक्शे बनाकर पास करवाया गया, लेकिन मौके पर निर्माण साढ़े आठ हजार वर्ग फीट से ज्यादा क्षेत्रफल में किया गया।
माउंट आबू के बॉयलाज में दो बेसमेंट का प्रावधान नहीं होने के बावजूद हीना रिसोर्ट में दो बेसमेंट बना लिए गए। नाले पर अतिक्रमण कर निर्माण कर लिया गया। खांचा भूमि का आवंटन ग्रीनरी विकसित करने तथा पार्किंग के लिए होने के बावजूद खांचा भूमि पर इमारत खड़ी कर ली गई। निर्माण में बॉयलाज और निकायों के नियमों तथा मापदंडों को ताक पर रख लिया गया।
साफ है कि नगर पालिका की मिलीभगत के बिना यह संभव नहीं है। आयुक्त शिवपाल सिंह कहते हैं कि जो हुआ, वह डीएलबी के निर्देशों पर हुआ। स्थानीय स्तर पर अनशनकर्ता विजय लालवानी की ओर से जो दस्तावेज हमें सौंपे गए, वे अब तक पालिका की फाइलों में नहीं है।
दूसरी तरफ तीन दिनों से अनशन पर बैठे विजय कुमार लालवानी कहते हैं कि गुजरे एक साल से वे हीना रिसोर्ट से जुड़ी अनियमितताओं के सभी दस्तावेज पूर्ववर्ती आयुक्त रामकिशोर को कई मर्तबा तथा वर्तमान आयुक्त शिवपाल सिंह को गुजरे एक महीने में दे चुके हैं, लेकिन उन्होंने इन दस्तावेजों पर कभी गौर ही नहीं किया।
उनकी सिर्फ यही मांग है कि जो रियायत उन्होंने हीना रिसोर्ट के मामले में दी है, वहीं माउंट आबू के दूसरे आवेदकों को भी दी जाएं। दस्तावेज देखकर पालिका यह तो मान रही है कि मामले में गोलमाल है, लेकिन डीएलबी के आदेशों का हवाला देकर हीना रिसोर्ट के रसूखदारों से शुल्क वसूली कर गोलमाल को कागजों में ठीक करने का जतन किया जा रहा है।
उनका आरोप है कि अब अनियमितताओं से जुड़े सारे दस्तावेज पालिका आयुक्त शिवपाल सिंह को सौंपने के बावजूद भी वे कोई कार्रवाई करने को तैयार नहीं है।
मामले का एक पहलू यह भी है कि सच की आवाज बुलंद कर विजय लालवानी पालिका के बार बुधवार को तीसरे दिन भी अनशन पर बैठे रहे, लेकिन उपखंड कार्यालय प्रशासन के कान पर जूं तक नहीं रेंग रही।
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अनशन को तीसरा दिन होने के बावजूद उपखंड अधिकारी कनिष्क कटारिया की ओर से खुद या अपना प्रतिनिधि भेजकर अनशनकर्ता की बात सुनने की जहमत तक नहीं उठाई गई। जिला प्रशासन तक भी पूरा मामले की जानकारी पहुंचने के बावजूद आम आदमी की पीड़ा इस सरकार में बैठे अधिकारी सुनने में दिलचस्पी नहीं दिखा रहे हैं।