India से टीबी को खत्म करने का आह्वान: Vice President of India ने 2025 तक देश से टीबी को खत्म करने के लिए जन आंदोलन का किया आह्वान

भारत के उपराष्ट्रपति एम. वेंकैया नायडु ने 2025 तक 'टीबी मुक्त भारत' अभियान में लोगों को 'प्रमुख भागीदार' बनाने का आह्वान किया। नायडु ने कहा कि टीबी को पूरी तरह खत्म करने के लिए समाज का जुड़ाव किसी भी अन्य बीमारी के मुकाबले कहीं ज्यादा महत्वपूर्ण है।

नई दिल्ली, एजेंसी। 
भारत के उपराष्ट्रपति एम. वेंकैया नायडु ने 2025 तक 'टीबी मुक्त भारत' अभियान में लोगों को 'प्रमुख भागीदार' बनाने का आह्वान किया। 
नायडु ने कहा कि टीबी को पूरी तरह खत्म करने के लिए समाज का जुड़ाव किसी भी अन्य बीमारी के मुकाबले कहीं ज्यादा महत्वपूर्ण है।
यह देखते हुए कि समाज के कमजोर वर्गों पर तपेदिक का प्रभाव कहीं ज्यादा पड़ता है, उन्होंने टीबी उन्मूलन के लिए बड़े पैमाने पर संसाधनों का इस्तेमाल करने और अलग अलग क्षेत्रों से आगे आने का आह्वान किया।
उपराष्ट्रपति नायडु ने कहा कि टीबी को पूरी तरह खत्म करने के लक्ष्य को तभी हासिल किया जा सकता है जब इसे जन आंदोलन का रूप दिया जाए।
उन्होंने सभी स्तरों पर जन प्रतिनिधियों से 'जन आंदोलन' में लोगों को शामिल करने के लिए आगे आने का आह्वान किया जाए। 
उन्होंने कहा कि 2025 तक भारत को टीबी मुक्त बनाने के लिए 'टीम इंडिया' की भावना को अपनाकर बहुआयामी प्रयास की जरूरत है।
टीबी के खिलाफ लड़ाई जीतने वाली महिलाओं पर राष्ट्रीय सम्मेलन को संबोधित करते हुए उपराष्ट्रपति ने कहा कि टीबी उन्मूलन पर सरकार की गंभीरता साफ दिखती है। यह इस वर्ष टीबी से संबंधित दूसरा सम्मेलन था। 
उन्होंने खुशी व्यक्त की कि सम्मेलन में न केवल सांसद, बल्कि अन्य जन प्रतिनिधि, टीबी उन्मूलन के लिए काम करने वाले संगठन, टीबी से मुक्त होने वाली महिलायें, आंगनवाड़ी कार्यकर्ता आदि शामिल हैं।
2025 तक पूर्ण उन्मूलन के लक्ष्य को प्राप्त करने के लिये सरकार के सभी स्तरों से ठोस कार्रवाई की आवश्यकता पर बल दिया। 
नायडु ने लोगों की पोषण स्थिति में सुधार, बेहतर संपर्क जांच, बीमारी पर होने वाले खर्च को कम करने, सबसे कमजोर वर्गों को सुरक्षित रखने और पर्वतीय, दूरदराज के क्षेत्रों में टीबी का शीघ्र पता लगाने जैसे कदम उठाने का आह्वान किया।
टीबी के बारे में सामाजिक धारणा को बदलने की आवश्यकता पर प्रकाश डालते हुए नायडु ने कहा कि बीमारी के शारीरिक प्रभाव के अलावा, लोगों के जीवन पर बहुत अधिक आर्थिक और सामाजिक दबाव पड़ता है।
टीबी रोगियों को बड़े पैमाने पर परिवारों, नियोक्ताओं और समाज की अनावश्यक गलत सोच का सामना करना पड़ता है। 
यह पूरी तरह से अस्वीकार्य है और इसे रोका जाना चाहिए।


नायडू ने कहा कि बीमारी को लेकर समाज का व्यवहार बीमारी की प्रारंभिक अवस्था में जांच को और भी मुश्किल बना देता है।
यह दर्शाता है कि 2020 में अनुमानित 26 लाख के मुकाबले टीबी के केवल 18 लाख नए मामले सामने आए। 
तपेदिक के बारे में सामाजिक धारणा को बदलने के लिए बेहतर जागरूकता और इसके पक्ष को रखने वाले कार्यक्रमों का आह्वान करते हुए लोगों तक यह संदेश पहुंचना चाहिये कि टीबी निश्चित रूप से रोकथाम योग्य और इलाज योग्य है।
उन्होंने सुझाव दिया कि टीबी का पक्ष रखने वाले कार्यक्रमों को महामारी के कारण फेफड़ों के स्वास्थ्य को लेकर बढ़ती जागरुकता का फायदा बीमारी के बारे में जानकारी फैलाने में करना चाहिए।
इस संबंध में उपराष्ट्रपति ने निर्वाचित प्रतिनिधियों, सांसदों, विधायकों और ग्राम प्रधानों से भी आग्रह किया कि वे जिला और तहसील स्तर पर नियमित समीक्षा करें। 
उन्होंने जन-प्रतिनिधियों का आह्वान किया कि वे जन संवाद में सक्रिय भूमिका निभाते हुए टीबी के खिलाफ लड़ाई के लिये जन जागरूकता अभियान में उत्प्रेरक बनें।
उपराष्ट्रपति ने महिला और बाल विकास मंत्रालय, और स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालयों के एक साथ आने एवं महिलाओं पर टीबी के प्रभाव को कम करने के लिए नई रणनीति विकसित करने के तरीके पर गंभीर चर्चा शुरू करने के प्रयासों की सराहना की।