राष्ट्रीय जनता दल के साथ समाजवादी पार्टी: समाजवादी पार्टी संस्थापक मुलायम सिंह ने आरजेडी अध्यक्ष लालू प्रसाद यादव के साथ चाय पर की चर्चा, राजनीति में कई मायने

राजनीति में कुछ भी हो सकता हैं। आज सुबह नई दिल्ली में राष्ट्रीय जनता दल के अध्यक्ष लालू प्रसाद यादव से उत्तर प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री और समाजवादी पार्टी के संस्थापक मुलायम सिंह यादव ने मुलाकात की। लालू और मुलायम की ये मुलाकात चाय पर चर्चा बताई जा रही हैं।

गणपतसिंह मांडोली 9929420786

नई दिल्ली। 

राजनीति में कुछ भी हो सकता हैं। आज सुबह नई दिल्ली में राष्ट्रीय जनता दल(Rashtriya Janata Dal) के अध्यक्ष लालू प्रसाद यादव(Lalu Prasad Yadav) से उत्तर प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री और समाजवादी पार्टी (Samajwadi Party)के संस्थापक मुलायम सिंह यादव (Mulayam Singh Yadav) ने मुलाकात की। लालू और मुलायम की ये मुलाकात चाय पर चर्चा बताई जा रही हैं। वहीं दूसरी ओर रानजीतिक गलियारों में इस चर्चा के कई मायने निकाले जा रहे है। लालू—मुलायम की मुलाकात के दौरान मुलायम के बेटे और सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव(SP President Akhilesh Yadav) भी मौजूद थे। अखिलेश ने इनकी मुलाकात की फोटो सोशल मीडिया पर शेयर तक की। फोटो में तीनों नेता चाय पीते जरूर नजर आए। उत्तर प्रदेश और बिहार(Uttar Pradesh and Bihar) की राजनीति लंबे समय से जाति के इर्द-गिर्द घूमती रही है। उत्तर प्रदेश में अगले साल विधानसभा चुनाव हैं। ऐसे में यादव जाति के दो दिग्गज नेता मुलायम और लालू आपस में रिश्तेदार भी हैं, वे महज चाय पीने के लिए नहीं मिले थे। इसके गहरे राजनीतिक(political) मायने निकाले जा रहे हैं। यह यादवों की एकजुटता दिखाने की कवायद भी है। साथ ही, यादव वोट बैंक(Yadav vote bank) में सेंधमारी की संभावना को कमजोर करने की भी कोशिश है।
वोटर्स के लिए एकजुट हो रही हैं पार्टियां
समाजवादी पार्टी (Samajwadi Party) आने वाले विधानसभा चुनाव(Assembly elections) में एक मजबूत गठबंधन बनाकर लड़ने की तैयारी कर रही हैं। हाल ही में इस पार्टी ने NCP से हाथ मिलाया है। कहा जा रहा है कि सपा और भी पार्टियों को इसका हिस्सा बना सकती है। अब इस गठबंधन में RJD के शामिल होने की चर्चा भी तेज हो गई है। अगर ऐसा होता है, तो यह UP के यादव वोटर्स को लुभाने की दिशा में एक बड़ा कदम होगा। उत्तर प्रदेश (Uttar Pradesh) में वोटर्स में यादवों की भागीदारी करीबन 9 प्रतिशत है। 1977 में रामनरेश यादव(Ramnaresh Yadav) के हाथ सत्ता की बागडोर लगी। इसके बाद 3 बार मुलायम सिंह यादव मुख्यमंत्री बने और एक बार अखिलेश यादव CM रहे। बताया जाता है कि यूपी की राजनीति में जहां यादवों की पहचान सपा मुखिया मुलायम और उनके परिवार से है, वहीं बिहार में राजद प्रमुख लालू और उनके परिवार से।

राजनीतिक जानकारों का मानना है कि इन दोनों की वजह से यादवों का विकास बाकी पिछड़ी जातियों के मुकाबले ज्यादा हुआ है। ऐसे में 2014 के लोकसभा चुनाव(Lok Sabha Elections) में भारतीय जनता पार्टी (BJP) यादव वोट बैंक की सेंधमारी में काफी हद तक सफल रही थी। 9 प्रतिशत यादवों के वोट बैंक में से 27 प्रतिशत वोट भाजपा को मिला, जो 2009 के लोकसभा चुनाव में सपा को 73 प्रतिशत मिला था। 2007 के विधानसभा चुनाव में SP को 72 प्रतिशत और 2012 के विधानसभा चुनाव में इसे 66 प्रतिशत यादव वोट मिला था। 2014 के लोकसभा चुनाव(Lok Sabha Elections) में BJP की लहर के चलते यूपी की यादव सत्ता सिर्फ मुलायम परिवार के कुछ सांसदों तक ही सिमट गई। बिहार में यादव मतदाता 16 प्रतिशत के करीब हैं, जो RJD का परंपरागत वोटर माने जाते हैं। 2000 में बिहार में यादव विधायकों(Yadav MLAs) की संख्या 64 थी, जो 2005 में 54 हो गई। 2010 में यह संख्या घटकर 39 पर आ गई, लेकिन 2015 में बढ़कर 61 पहुंच गई। 2020 के चुनाव में 52 यादव विधायक बने हैं। वहीं दूसरी ओर बिहार की सियासत में यादव मतदाता किंगमेकर माना जाता है। यहां के आधे से अधिक जिलों की विधानसभा सीटों पर यादवों का प्रभाव माना जाता है।