नहीं रहे मसाला किंग: असली मसाले सच—सच एमडीएच वाले धर्मपालजी नहीं रहे, मॉ​डलिंग की दुनिया को उनका रहा यह चैलेंज

दुनिया के शायद ऐसे इकलौते इंसान जो खुद अपने प्रोडक्ट का एड करते थे। उनकी ही तकनीक को बाबा रामदेव ने अपना रखा है। एमडीएच मसालों का स्वाद जब जीभ पर आता था तो देगी मिर्च जैसी उनकी सुर्ख लाल पगडी वाली तस्वीर जहन में छा जाती। देगी मिर्च, यही पहला मसाला था जिसकी बदौलत उन्होंने  मसालों का सफर शुरू किया.

मुम्बई में गणपतसिंह मांडोली के साथ महाशय धर्मपालजी

सिरोही | भारतीय मसालों को देश दुनिया के हर घर तक पहुंचाने वाले महाशय धर्मपाल जी नहीं रहे। 98 वर्ष की उम्र में निधन हो गया, लेकिन वे इतने बरस के कभी लगे नहीं। मसाला ब्रांड एमडीएच के मालिक 'महाशय' धर्मपाल गुलाटी का गुरुवार सुबह निधन हो गया है। वे 98 साल के थे। खबरों के मुताबिक, उनका पिछले तीन हफ्तों से दिल्ली के एक अस्पताल में इलाज चल रहा था। गुरुवार सुबह उन्हें दिल का दौरा पड़ा। उन्होंने सुबह 5:38 बजे अंतिम सांस ली। इससे पहले वे कोरोना से संक्रमित हो गए थे। हालांकि बाद में वे ठीक हो गए थे। पिछले साल उन्हें पद्म भूषण से सम्मानित किया गया था।

दुनिया के शायद ऐसे इकलौते इंसान जो खुद अपने प्रोडक्ट का एड करते थे। उनकी ही तकनीक को बाबा रामदेव ने अपना रखा है। एमडीएच मसालों का स्वाद जब जीभ पर आता था तो देगी मिर्च जैसी उनकी सुर्ख लाल पगडी वाली तस्वीर जहन में छा जाती। देगी मिर्च, यही पहला मसाला था जिसकी बदौलत उन्होंने  मसालों का सफर शुरू किया और फिर तो मसाला किंग बने।

उन्होंने मसालों में उन्होंने जितना तीखापन डाला था। जिंदगी में उतनी ही सादगी घोल रखी थी। शायद इसी की बदौलत उनके मसालों की महक पूरी दुनिया तक पहुंची। मुम्बई में करीब आधा घंटा मैं उनके पास रहा। देश के विभाजन के वक्त पाकिस्तान से आकर दिल्ली बसने और फिर एक तांगवाला से मसालेवाला बनने तक की पूरी कहानी सुनाई। 1500 रुपये लेकर आये थे और आज 5400 करोड़ के मालिक थे। इन सारी सफलताओं के बीच वे जमीन से जुडे रहे। शायद अपने बुरे वक्त को कभी नहीं भूले थे। इसीलिए गरीब व जरुरतमंद लोगों के लिए स्कूल अस्पताल चलाते थे। एक पूरी पीढी ने उन्हें एड में देखा है। 98 साल के एक युवा मॉडल थे महाशय धर्मपाल जी। उनके जाने के बाद भी उनकी महक हर घर हर रसोई में मौजूद रहेगी।

'दादाजी',  'मसाला किंग', 'किंग ऑफ स्पाइसेज' और 'महाशयजी' के नाम से मशहूर धर्मपाल गुलाटी का जन्म 1923 में पाकिस्तान के सियालकोट में हुआ था। स्कूल की पढ़ाई बीच में ही छोड़ने वाले धर्मपाल गुलाटी शुरुआती दिनों में अपने पिता के मसाले के व्यवसाय में शामिल हो गए थे। 1947 में विभाजन के बाद, धर्मपाल गुलाटी भारत आ गए और अमृतसर में एक शरणार्थी शिविर में रहे। इन्होंने दिल्ली की गलियों में तांगा भी चलाया। एमडीएच मसाले कंपनी का नाम उनके पिता के काराबोर पर आधारित है। उनके पिता 'महशियान दी हट्टी' के नाम से मसालों का कारोबार करते थे। हालांकि लोग उन्हें 'देगी मिर्च वाले' के नाम से भी जानते थे। उन्हें व्यापार और वाणिज्य के लिए साल 2019 में भारत के दूसरे उच्च नागरिक सम्मान पद्म भूषण से भी नवाज़ा गया था।

दिल्ली के करोल बाग में पहला खोला पहला स्टोर


फिर वह दिल्ली आ गए थे और दिल्ली के करोल बाग में एक स्टोर खोला। गुलाटी ने 1959 में आधिकारिक तौर पर कंपनी की स्थापना की थी। यह व्यवसाय केवल भारत में ही नहीं बल्कि दुनिया में भी फैल गया। इससे गुलाटी भारतीय मसालों के एक वितरक और निर्यातक बन गए। उन्हें व्यापार और वाणिज्य के लिए साल 2019 में भारत के दूसरे उच्च नागरिक सम्मान पद्म भूषण से भी नवाज़ा गया था।

वेतन का 90 फीसदी करते थे दान


गुलाटी की कंपनी ब्रिटेन, यूरोप, यूएई, कनाडा आदि सहित दुनिया के विभिन्न हिस्सों में भारतीय मसालों का निर्यात करती है। 2019 में भारत सरकार ने उन्हें देश के तीसरे सबसे बड़े नागरिक सम्मान पद्म भूषण से सम्मानित किया था। एमडीएच मसाला के अनुसार, धर्मपाल गुलाटी अपने वेतन की लगभग 90 प्रतिशत राशि दान करते थे।

गणपतसिंह मांडोली की रिपोर्ट