अवैध निर्माण पर प्रशासन क्यों मौन?: लिमडी कोठी में नियम विरुद्ध निर्माण के बावजूद प्रशासन खामोश, आखिर क्या हैं वजह? 

टीनशेड की जगह लग गई आरसीसी की छत, खाली परिसर में बन रहे नए कमरें। बावजूद प्रशासन को नज़र नही आ रहा नया निर्माण। जबकि प्रशासन को ये भी नही पता कि जिस कोठी के रिपेयरिंग की परमिशन जारी की गई उसका स्वामित्व हैं किसके नाम? फिर प्रशासन ने इस कोठी के रिपेयरिंग की परमिशन किसके नाम की जारी? हर कोई पूछ रहा सवाल...

  • गणपतसिंह मांडोली / विक्रमसिंह करणोत

सिरोही। माउंट आबू के अधिसूचित पर्यावरण संवेदनशील क्षेत्र (ईको सेंसिटिव जोन) में प्रभावशाली लोग किस तरह नियम कायदों की धज्जियां उड़ाते हैं इसका जीता जागता उदाहरण लिमडी कोठी हैं। रियासत कालीन लिमडी कोठी की द्वितीय मंज़िल की छत टीन शेड (लोहे के पतरे) से बनी हुई थी। और माउंट आबू  के इस ईको सेंसिटिव जोन में अगर आपको अपने मकान की मरम्मत की परमिशन दी जाती हैं तो बाकायदा उस परमिशन में इस बात का जिक्र होता हैं कि आप इस भवन के वास्तविक स्वरूप में कोई रद्दोबदल नही कर सकेंगे और साथ ही इस बात का भी जिक्र होता हैं कि आपके भवन की छत पर यदि टीनशेड (पतरे) लगा हुआ हैं तो आप उसकी जगह आरसीसी या पत्थर की पट्टियां डालकर नई छत नही बना सकते। यानी आपके भवन का जो स्वरूप मरम्मत की परमिशन से पहले होता हैं, वैसा ही स्वरूप मरम्मत के बाद भी होना चाहिए, उसमें किसी भी प्रकार का कोई हेरफेर नही होना चाहिए। लेकिन लिमडी कोठी की मरम्मत के बाद उसके वास्तविक स्वरूप में खिड़की, झरोखों से लेकर छत के मूल स्वरूप को पूरी तरह से बदल दिया गया। जहां इस कोठी की छत टीनशेड (पतरो) से निर्मित हुआ करती थी, आज वहां इस कोठी की छत आरसीसी से बनकर तैयार हैं। पर उपखण्ड प्रशासन को नियम विरुद्ध हुआ कार्य नज़र ही नही आ रहा। 

लिमडी कोठी के खाली भूखंड परिसर में बन रहे नए कमरे

लिमडी कोठी में हो रहे अवैध निर्माण को लेकर जब FIRST BHARAT ने 2 जुलाई को पहली बार खबर प्रकाशित की थी, तो जिला प्रशासन ने औपचारिकता करते हुए आबूपर्वत एसडीएम से ही एक जांच करवाकर रिपोर्ट मंगवाई थी। उस जांच रिपोर्ट में आबू एसडीएम ने बताया था कि लिमडी कोठी में अनुमति के अनुसार शौचालय, फर्श और दीवारों की मरम्मत का कार्य ही किया जा रहा हैं। इसके अलावा कोई भी नया निर्माण नही किया हैं। जबकि हकीकत ये हैं कि लिमडी कोठी में रात दिन जारी अवैध निर्माण के तहत कई नए कमरे बनाए जा रहे हैं, जो पुरानी कोठी से इतर कोठी के खाली भूखंड पर बनाए जा रहे हैं। ये तस्वीरें साफ बयां कर रही हैं कि कोठी से अलग बनाए जा रहे ये सभी कमरे पहले से बने हुए नही बल्कि नया निर्माण हैं। कोठी की ही अगर बात करें तो कोठी की ऊपरी मंजिल पर कई नए कमरों का निर्माण किया गया हैं। पहले उक्त कोठी दो मंजिला भवन के रूप में ही अस्तित्व में थी लेकिन वर्तमान में इसे तीन मंजिला भवन बना दिया गया हैं यानी एक मंजिल पूरी तरीके से अवैध निर्माण करके बनाई गई हैं। लेकिन उपखण्ड प्रशासन राजनैतिक रसूख के आगे नतमस्तक होकर वो ही रिपोर्ट बनाकर भेज रहा हैं जैसा इस कोठी के स्वामी चाहते हैं।

2008 और 2021 की लिमडी कोठी में कितना फर्क, आप भी देखिए

माउंट आबू की इस ऐतिहासिक इमारत लिमडी कोठी के पुराने फ़ोटो FIRST BHARAT के पास मौजूद हैं। उन्ही फ़ोटो में से एक फोटो आज हम प्रकाशित कर रहे हैं जो वर्ष 2008 में लिया गया था। इस फोटो के साथ ही हम आपको आज का भी एक फोटो दिखा रहे हैं। इन दोनों फ़ोटो को देखकर हर कोई व्यक्ति ये फर्क आसानी महसूस कर सकता हैं कि जहां आम आदमी को अपने घर में एक ईंट लगाने की परमिशन नही मिलती उसी माउंट आबू में इस लिमडी कोठी को इतना कुछ बदलने का अधिकार किसने दे दिया?

जिस भवन में नही रहता कोई उसे मरम्मत की परमिशन, लेकिन जिस घर में पीढ़ियों से रह रहे लोग, वो मरम्मत की परमिशन के लिए वर्षों से खा रहे ठोकरें

आपको बता दें लिमडी कोठी पिछले कई दशकों से वीरान पड़ी थी। इस भवन में कभी कोई व्यक्ति स्थाई नही रहता था। इस कोठी का थोड़े वर्षों पूर्व बेचान किया गया और एक बड़े राजनेता ने इसका स्वामित्व अपने अधीन लिया। प्रदेश में सत्ताधारी दल से जुड़ा होने के कारण इस कोठी में किसी का स्थाई निवास नही होने के बावजूद इस कोठी के रिपेयरिंग की उपखण्ड प्रशासन ने रातों रात में स्वीकृत जारी कर दी। जबकि जिन घरों में लोग पीढ़ियों से रह रहे हैं और उनके घर जीर्णशीर्ण अवस्था में पहुंच चुके हैं वे लोग पिछले 15 से 20 वर्षों से अपने आशियाने की मरम्मत की परमिशन मांग रहे लेकिन ईको सेंसिटिव जोन के चलते उन्हें परमिशन नही मिल रही हैं, और उनकी फाइलें दबी की दबी पड़ी हैं। वहीं लिमडी कोठी की रिपेयरिंग की परमिशन किस व्यक्ति के नाम से जारी की, इसका असली मालिक कौन हैं? ये भी जानकारी उपखण्ड प्रशासन के पास नही होने के बावजूद परमिशन जारी कर दी गई, जो सवालों के घेरे में हैं।

लिमडी कोठी के आसपास के क्षेत्र को कंस्ट्रक्शन फ्री जोन में शामिल करने की रणनीति

माउंट आबू में उक्त लिमडी कोठी जिस जगह स्थित हैं वो क्षेत्र नक्की झील से अर्बुदा देवी सर्किल जाने वाली सड़क के पश्चिमी भाग में स्थित हैं। और जोनल मास्टर प्लान 2030 में उक्त भाग "नो कंस्ट्रक्शन जोन" के रूप में अंकित हैं। यानी इस भूभाग पर किसी भी तरह का निर्माण कार्य नही किया जा सकता। लेकिन राज्य सरकार इस भूभाग को "नो कंस्ट्रक्शन जोन से कंस्ट्रक्शन जोन" में तब्दील करने के लिए माउंट आबू नगरपालिका से प्रस्ताव पारित करवा रही हैं। और नगरपालिका ने ऐसा कर भी दिया हैं। अब आप इसे सत्ता का दुरुपयोग नही तो क्या कहेंगे?