PM @ नरेंद्र मोदी ने की ''मन की बात'': देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने तीसरी बार शपथ लेने के बाद पहली बार देशवासियों से की ''मन की बात'', आदिवासी बहनों के उत्थान के साथ ओलम्पिक खेलों और पर्यावरण पर की चर्चा

मन की बात कार्यक्रम में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा कि आज से फिर, एक बार, हम, ‘मन की बात’ में ऐसे देशवासियों की चर्चा करेंगे। इसमें अपने कामों से समाज में, देश में, बदलाव ला रहे हैं, हम उन पर चर्चा करेंगे। हमारी समृद्ध संस्कृति की, गौरवशाली इतिहास की, और, विकसित भारत के प्रयास की भी चर्चा इसमें की जाएगी।

जयपुर, 30 जून 2024। भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी प्रधानमंत्री पद पर तीसरी बार शपथ लेने के बाद देशवासियों को आज पहली बार मन की बात कार्यक्रम के माध्यम से संबोधित किया। मन की बात कार्यक्रम में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा कि आज से फिर, एक बार, हम, ‘मन की बात’ में ऐसे देशवासियों की चर्चा करेंगे। इसमें अपने कामों से समाज में, देश में, बदलाव ला रहे हैं, हम उन पर चर्चा करेंगे।

हमारी समृद्ध संस्कृति की, गौरवशाली इतिहास की, और, विकसित भारत के प्रयास की भी चर्चा इसमें की जाएगी। मोदी ने केरला की आदिवासी बहनों द्वारा तैयार किए जा रहे कार्थुमबी छाते, बेंगलुरू के कब्बन पार्क में संस्कृत भाषा को लेकर किए जा रहे प्रयास की सराहना की।


मोदी ने कहा कि आज 30 जून का ये दिन बहुत ही महत्वपूर्ण है। आज के दिन को हमारे आदिवासी भाई-बहन ‘हूल दिवस’ के रूप में मनाते हैं। यह दिन वीर सिद्धो-कान्हू के अदम्य साहस से जुड़ा हुआ है। इन्होंने विदेशी शासकों के अत्याचार का पुरजोर विरोध किया था। वीर सिद्धो-कान्हू ने हजारों संथाली साथियों को एकजुट करके अंग्रेजों का जी-जान से मुकाबला किया।

तब, झारखंड के संथाल परगना में हमारे आदिवासी भाई-बहनों ने विदेशी शासकों के खिलाफ हथियार उठा लिया था। देश के हमारे संथाली भाई-बहनों पर अंग्रेजों ने बहुत सारे अत्याचार किए थे। उन पर कई तरह के प्रतिबंध भी लगा दिए थे। इस संघर्ष में अद्भुत वीरता दिखाते हुए वीर सिद्धो और कान्हू शहीद हो गए। झारखंड की भूमि के इन अमर सपूतों का बलिदान आज भी देशवासियों को प्रेरित करता है। 


मोदी ने प्रकृति पर चर्चा करते हुए कहा कि इस वर्ष विश्व पर्यावरण दिवस पर एक विशेष अभियान शुरू किया गया है। इस अभियान का नाम है ‘एक पेड़ माँ के नाम’ है। मैंने भी एक पेड़ अपनी माँ के नाम लगाया है। सभी देशवासियों से, दुनिया के सभी देशों के लोगों से ये अपील की है कि अपनी माँ के साथ मिलकर, या उनके नाम पर, एक पेड़ जरूर लगाएं। 
मोदी ने मानसून पर चर्चा करते हुए केरला की आदिवासी बहनों द्वारा बनाए जा रहे छातों पर चर्चा करते हुए कहा कि ‘मन की बात’ में आज मैं आपको एक खास तरह के छातों के बारे में बताना चाहता हूँ। ये छाते तैयार होते हैं भारत के केरला राज्य में। छाते, वहाँ कई परंपराओं और विधि-विधान का अहम हिस्सा होते हैं, लेकिन मैं जिस छाते की बात कर रहा हूँ, वो हैं ‘कार्थुम्बी छाते’ और इन्हें तैयार किया जाता है केरला के अट्टापडी में।

ये रंग-बिरंगे छाते बहुत शानदार होते हैं। और खासियत ये इन छातों को केरला की हमारी आदिवासी बहनें तैयार करती हैं। आज देशभर में इन छातों की मांग बढ़ रही हैं। इनकी आनलाइन बिक्री भी हो रही है। आज कार्थुम्बी छाते केरला के एक छोटे से गाँव से लेकर मल्टी नेशनल कंपनियों तक का सफर पूरा कर रहे हैं। लोकल के लिए वोकल होने का इससे बेहतरीन उदाहरण और क्या होगा ?

 
वहीं दूसरी ओर मोदी ने पेरिस ओलंपिक खेलों पर कहा कि आप सब भी ओलंपिक खेलों में भारतीय खिलाड़ियों का उत्साह बढ़ाने का इंतजार कर रहे होंगे। मैं भारतीय दल को ओलंपिक खेलों की बहुत-बहुत शुभकामनाएं देता हूँ। इस बार कुश्ती और घुड़सवारी में हमारे दल के खिलाड़ी उन केटेगिरी में भी भाग लेंगे, जिनमें पहले वे कभी शामिल नहीं रहे।

मैं आपकी तरफ से उनका उत्साहवर्धन करूंगा। और हाँ.. इस बार हमारा हैशटेग  #Cheer4Bharat है। इस हैशटेग के जरिए हमें अपने खिलाड़ियों को चीयर  करना हैै। वहीं दूसरी ओर मोदी ने 10वें अन्तराष्ट्रीय योग दिवस पर भी चर्चा की। मोदी ने कहा कि इस महीने पूरी दुनिया ने 10वें योग दिवस को भरपूर उत्साह और उमंग के साथ मनाया है।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भारतीय प्रोडक्ट पर चर्चा करते हुए कहा कि भारत के किसी लोकल प्रोडक्ट को ग्लोबल होते देखते हैं, तो गर्व से भर जाना स्वाभाविक है। ऐसा ही एक प्रोडक्ट है अराकू कॉफी। यह कॉपी आंध्र प्रदेश के अल्लुरी सीता राम राजू जिले में बड़ी मात्रा में पैदा होती है। ये अपने भरपूर स्वाद और सुगंध के लिए जानी जाती है।

अराकू कॉफी की खेती से करीब डेढ़ लाख आदिवासी परिवार जुड़े हुए हैं। लोकल प्रोडक्ट के लिए कश्मीर के लोग भी पीछे नहीं है। यहाँ के पुलवामा से स्नो मटर की पहली खेप लंदन भेजी गई। कुछ लोगों को ये आइडिया सूझा कि कश्मीर में उगने वाली सब्जी को क्यूँ ना दुनिया के नक्शे पर लाया जाए। इसके बाद चकूरा गावं के अब्दुल राशीद मीर इसके लिए सबसे पहले आगे आए। उन्होंने गावं के अन्य किसानों की जमीन को एक साथ मिलाकर स्नो मटर  उगाने का काम शुरू किया।
मोदी ने कहा कि संस्कृत की प्राचीन भारतीय ज्ञान और विज्ञान की प्रगति में बड़ी भूमिका रही है। आज के समय की मांग है कि हम संस्कृत भाषा को सम्मान भी दें, और उसे अपने दैनिक जीवन से भी जोड़ें। आजकल ऐसा ही एक प्रयास बेंगलुरू में कई और लोग कर रहे हैं। बेंगलुरू में एक पार्क है कब्बन पार्क।

इस पार्क में यहाँ के लोगों ने एक नई परंपरा शुरू की है। यहाँ हफ्ते में एक दिन, हर रविवार बच्चे, युवा और बुजुर्ग आपस में संस्कृत में बात करते हैं। यहाँ वाद-विवाद के कई सेशन भी संस्कृत में ही आयोजित किए जाते हैं। इनकी इस पहल का नाम है संस्कृत वीकेंड। बेंगलुरूवासियों के बीच यह प्रयास देखते ही देखते काफी लोकप्रिय हो गया है। अगर हम सब इस तरह के प्रयास से जुड़ें तो हमें विश्व की इतनी प्राचीन और वैज्ञानिक भाषा से बहुत कुछ सीखने को मिलेगा।