प्रताप पर परोसा झूठ : आबू की धरा पर महाराणा प्रताप की झूठी जानकारी और ऐतिहासिक तथ्यों को तोड़ मरोड़ गए कुमार विश्वास
उनका मंचीय प्रदर्शन न केवल खोखला है। बल्कि सरकारी धन की चाशनी में लिपटने भी लगा है।माउंट आबू की पावन धरा पर उन्होंने महाराणा प्रताप से जुड़ी एक काल्पनिक कविता की झूठी जानकारी एक बार फिर से परोसी। यही नहीं वे यह भी कहते नजर आए कि महाराणा प्रताप के बहनोई का नाम पृथ्वीराज पीथल था।
माउंट आबू | सबसे महंगा कवि होने का दावा करने वाले कुमार विश्वास का इतिहास का ज्ञान शरद महोत्सव के कवि सम्मेलन में सामने आया। अपनी व्याख्याता पत्नी को आरपीएससी का पद दिलवाने के बाद उन्होंने जिस तरह से राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत की तारीफें की है।
उससे साफ है कि अब उनका मंचीय प्रदर्शन न केवल खोखला है। बल्कि सरकारी धन की चाशनी में लिपटने भी लगा है।माउंट आबू की पावन धरा पर उन्होंने महाराणा प्रताप से जुड़ी एक काल्पनिक कविता की झूठी जानकारी एक बार फिर से परोसी। यही नहीं वे यह भी कहते नजर आए कि महाराणा प्रताप के बहनोई का नाम पृथ्वीराज पीथल था।
यह हास्यापद प्रदर्शन कुमार विश्वास से अपेक्षित तो नहीं था, परन्तु अक्सर महंगे कवि होने का जिक्र करने की आत्मश्लाघा उनके ज्ञान को कुंद करने लगी हैं। भाई और बहनोई में बहुत फर्क होता है। इतना तो कविराज कुमार को भी मालूम होगा।
परन्तु पांचवें वेद जैसी रचना लिखने वाले महान कवि पृथ्वीराज पीथळ के बारे में ज्ञान नहीं होना कुमार विश्वास की योग्यता पर सवाल उठाती है। उनके आलोचक उन्हें कॉपी पेस्ट कवि भी कहते हैं, जिस पर माउंट आबू में उन्होंने यह ऐतिहासिक भूल करके मुहर ही लगाई है।
हिंदुआ सूर्य महाराणा प्रताप से जुड़े झूठे कथानक को एक बार फिर से आलापते हुए कुमार विश्वास इस आयोजन में इतिहास को भी तोड़ मरोड़ गए। आपको बता दें कि अरे घास री रोटी ही जद बन बिलावड़ो ले भाग्यो वाली कविता के रचियता स्व. कन्हैयालाल सेठिया ने खुद कहा था कि उनकी यह कविता सिर्फ एक कल्पना है। महाराणा प्रताप ने कोई संधि पत्र नहीं लिखा था।
कुमार विश्वास को यदि ऐतिहासिक ज्ञान लेना है तो क्षत्रिय युवक संघ के इस वीडियो को देखना चाहिए।
बावजूद इसके कुमार विश्वास अक्सर इसका जिक्र करते हैं। शरद महोत्सव में भी किया। यही नहीं माउंट आबू में उन्होंने डिंगल भाषा के कवि पृथ्वीराज को प्राकृत का कवि बताते हुए उन्हें महाराणा प्रताप का बहनोई बता दिया। जबकि कवि पृथ्वीराज महाराणा प्रताप के मौसेरे भाई थे। पृथ्वीराज राठौड़ उर्फ पीथल की बेलि क्रिसन रुक्मिणी री डिंगल भाषा की कालजयी रचना है। कुमार विश्वास अक्सर लोगों के ज्ञान और शब्दों को लेकर कवि सम्मेलनों में उनकी फजीहत करते हैं। परन्तु लगता है कि उन्हें खुद इतिहास का ज्ञान जरा है। इससे पहले भी कुमार अक्सर दूसरे कवियों के आख्यानों के जरिए ही ज्यादातर अपना टाइम पास करते रहे हैं।
जनता का पैसा और तारीफ साहब की
जनता के सरकारी पैसे से किए जा रहे शरद महोत्सव में इस कवि सम्मेलन पर लाखों का खर्च आया है। इसी बीच कुमार की कविता में व्यक्तिगत तारीफ में तीन मुख्य केन्द्र रहे। पहले मुख्यमंत्री अशोक गहलोत, दूसरे एसडीएम अभिषेक सुराणा और तीसरी उनकी पत्नी जो संवैधानिक पद पर हैं।
उन्होंने ऐतिहासिक चरित्रों की तारीफ की, लेकिन महाराणा प्रताप द्वारा संधि पत्र लिखने की गलत जानकारी देकर साफ तौर पर यह साबित किया कि वे तथ्यों को जांचते नहीं हैं। परन्तु गहलोत, सुराणा और अपनी पत्नी की तारीफ में उन्होंने इस तरह कसर नहीं रखी। चर्चाएं तो यह भी है कि वे माउंट से अपने परिवार समेत जैसलमेर घूमने जा रहे हैं। जी हां! परिवार के महत्वपूर्ण सदस्य जब सरकारी पैसा उड़ाने की मोहलत और अधिकारिता रखते हों तो कौन मना करने वाला है। हालांकि महाराणा प्रताप के छोटे भाई शक्तिसिंह की पुत्री किरण देवी का विवाह पृथ्वीराज राठौड़ के साथ होने की बात है। ऐसे में वे छोटे भाई की पुत्री के पति होने के नाते उनके दामाद या जंवाई कहला सकते हैं, लेकिन बहनोई नहीं।
डिंगल के बदले प्राकृत और भाई को बहनोई अथवा दामाद को बहनोई जैसे जवाब यदि राजस्थान की आरपीएससी में कोई विद्यार्थी लिख दे तो इन्हीं श्रीमान की भार्या उसे फेल कर देंगी। परन्तु साहब को कौन रोकेगा?
पांचवां वेद कहलाती है पीथळ की रचना
वेलि क्रिसन रुकमणी री (कृष्ण और रुक्मिणी की वेलि) : डिंगल शैली में रचित यह कृति पृथ्वीराज की सर्वोत्कृष्ट रचना मानी जाती है। यह 305 पद्यों का एक खण्ड काव्य है। इसमें श्रीकृष्ण और रुक्मिणी के विवाह की कथा का वर्णन है। इसका निर्माण वि.सं. 1637 (ई.सं. 1580) में हुआ था।
इस ग्रन्थ का प्रथम सम्पादन इटली के भाषाविद एलपी टैरीटोरी ने किया था जिसका सन 1917 में प्रकाशन हुआ था। टैरीटोरी ने पृथ्वीराज को 'डिंगल का होरेस' कहा है। राष्ट्रकवि दुरसा आढ़ा ने तो इस रचना को 'पांचवें वेद' की संज्ञा दी है। बाद में विद्वान ठाकुर रामसिंह व सूर्यकारण पारीक ने इस ग्रन्थ का सम्पादन कर हिंदी टीका लिखी थी। इनकी अन्य रचनाएँ दसम भागवतरा दूहा, गंगा लहरी, बसदेवराउत, दसरथरावउत, कल्ला रायमलोत री कुंडलियाँ आदि।
महाराणा प्रताप की एक बहन का विवाह मारवाड़ के शासक राव मालदेव और एक अन्य बहन का विवाह राव चन्द्रसेन के साथ हुआ था।
जबकि पृथ्वीराज की पहली रानी लालादे बड़ी ही गुणवती पत्नी थी। वह भी कविता करती थी। युवास्था में ही उसकी मृत्यु हो गई जिससे उन्हें बड़ा सदमा बैठा। उसके शव को चिता पर जलते देखकर पृथ्वीराज राठौड़ चीत्कार कर उठे: 'तो राँघ्यो नहिं खावस्याँ, रे वासदे निसड्ड। मो देखत तू बालिया, साल रहंदा हड्ड।' (हे निष्ठुर अग्नि, मैं तेरा राँघा हुआ भोजन न ग्रहण करुँगा, क्योंकि तूने मेरे देखते देखते लालादे को जला डाला और उसका हाड़ ही शेष रह गया)।
बाद में स्वास्थ्य खराब होता देखकर संबंधियों ने जैसलमेर के राव की पुत्री चंपादे से उनका विवाह करा दिया। यह कविता करती थीं।