सिरोही विधानसभा: सिरोही-शिवगंज विधानसभा सीट पर हमेशा जैन समाज का ही रहा है दबदबा! क्या इस बार भी निर्दलीय लड़ेंगे संयम लोढ़ा! त्रिकोणीय हो सकता है मुकाबला।
सिरोही जिले में जैन समाज के वोट कुल आबादी का आधा प्रतिशत भाग भी नहीं है। लेकिन इसके बावजूद आज़ादी के बाद से सिरोही-शिवगंज विधानसभा सीट से सबसे ज्यादा जैन समाज का विधायक ही जीता है, यह हैरान करने वाली बात हो सकती है।
सिरोही। भाजपा ने जाति कार्ड खेलते हुए 2003 की चुनावी हार के बाद मुंडारा से ओटाराम देवासी को सिरोही-शिवगंज विधानसभा मैदान में उतारा था, यह भाजपा का मास्टर स्ट्रोक भी था।
माली, घांची, कुम्हार, देवासी आदि वोटबैंक वाले भले ही एकता के नारे लगाते हो, सिरोही शिवगंज विधानसभा सीट पर आजादी के बाद से ही जैन समाज का दबदबा रहा है, इस सीट से सबसे ज्यादा जैन समाज के लोग जीते हैं।
तीन बार विधायक रहे संयम लोढ़ा चौथी बार फिर मैदान में है, इस बार वह और ज्यादा मजबूती से सामने आए है। क्या चौथी बार फिर वह यहां से जीतेंगे?
क्या फिर होगा त्रिकोणीय मुकाबला -
सिरोही-शिवगंज विधानसभा सीट पर इस बार भी त्रिकोणीय मुकाबला हो सकता है। सूत्रों के अनुसार अशोक गहलोत के सलाहकार माने जाने वाले संयम लोढ़ा इस बार वापस निर्दलीय चुनाव लड़ सकते हैं!
पार्टी कार्यकर्ताओं का कहना है कि पार्टी हाईकमान पूर्व के बागी उम्मीदवारों के टिकट काट कर सख्त संदेश देगी। कांग्रेस के एक कार्यकर्ता अपना टिकट भी पक्का मान रहे हैं।
अगर कांग्रेस से संयम लोढ़ा का टिकट कटा तो वह निर्दलीय चुनाव लडेंगे, इसमें संदेह नहीं रहता। वैसे भी त्रिकोणीय मुकाबले में उनकी जीत की संभावना ज्यादा बनती है।
पिछले विधानसभा चुनावों में संयम लोढ़ा की जीत की मुख्य वजह कांग्रेस उम्मीदवार जीवाराम आर्य को मिले वोट ही थे, तो क्या इस बार भी ऐसा ही होगा? वैसे भी संयम लोढ़ा राजनीति के धुरंधर खिलाड़ी है, वह जीत केलिए हर संभावना तलाशेंगे।
संयम लोढ़ा पिछले पांच वर्ष तक जमीनी स्तर पर लोगों से जुड़े रहे हैं। सिरोही-शिवगंज विधानसभा के हर गांव गली में उनके समर्थक व उनका अपना वोटबैंक है। सीधे मुकाबले में हार जीत का अंतर कम हो सकता है, त्रिकोणीय मुकाबले में उनकी जीत की संभावना ज्यादा बनती है, ऐसा हमारा मानना है।
अगर संयम लोढ़ा का कांग्रेस से टिकट कटा तो माली समाज, देवासी समाज या वोटबैंक वाले किसी समाज से कांग्रेस किसी को टिकट देकर चुनावी मैदान में उतार सकती है। ऐसे में सिरोही विधानसभा सीट पर त्रिकोणीय मुकाबला देखने को मिल सकता है।
अगर संयम लोढ़ा कांग्रेस के टिकट पर चुनाव लडेंगे तो मुकाबला सीधे भाजपा वर्सेज कांग्रेस होगा और किसी भी पक्ष केलिए जीत इतनी आसान भी नहीं होगी जितनी समझी जा रही है।
जैन समाज के वोटों की स्थिति -
सिरोही विधानसभा में ही नहीं, सिरोही जिले में जैन समाज के वोट कुल आबादी का आधा प्रतिशत भाग भी नहीं है। लेकिन इसके बावजूद सिरोही विधानसभा सीट से सबसे ज्यादा जैन समाज का विधायक ही जीता है, यह हैरान करने वाली बात हो सकती है। भाजपा भले ही जातिगत वोटबैंक को ध्यान में रखकर उम्मीदवार को टिकट देती हो लेकिन आधा प्रतिशत आबादी वाले जैन समाज से ही सबसे ज्यादा विधायक जीते। 2011 की जनगणना के अनुसार सिरोही जिले में जैन समाज की आबादी 6 हजार 829 थी।
पिछले चुनावों की स्थिति -
पिछले विधानसभा सभा चुनावों में 16 प्रत्याशी मैदान में थे। भाजपा के मूल वोट बैंक कहे जाने वाले कुम्हार समाज के वोटों को तोड़ने केलिए जीवाराम को कांग्रेस ने टिकट दिया था, जिसका सीधा फायदा निर्दलीय संयम लोढ़ा को ही मिला था।
संयम लोढ़ा ने पूर्व मंत्री ओटाराम देवासी को 10 हजार से अधिक वोटों से हराया था।
2013 में 17 प्रत्याशी थे मैदान में -
2013 के विधानसभा चुनावों में 17 प्रत्याशी मैदान में थे। इन चुनावों में ओटाराम देवासी ने कांग्रेस के संयम लोढ़ा को 24439 वोटो से हराया था। ओटाराम देवासी इसी कार्यकाल मंत्री बने थे।
इससे पहले 2008 के चुनावों में ओटाराम देवासी ने 8750 वोटों से संयम लोढ़ा को हराया था।
ज्ञात हो कि 2003 में तारा भंडारी के विधानसभा चुनाव हारने के बाद 2008 में ओटाराम देवासी को मुंडारा से यहां लाया गया था। यह भाजपा का मास्टर स्ट्रोक था।
संयम लोढ़ा 1998, 2003 और 2018 का विधानसभा चुनाव जीत चुके हैं -
संयम लोढ़ा पहली बार 1998 में विधायक बने। इन चुनावों में संयम लोढ़ा 6802 वोटों से चुनाव जीते थे। तारा भंडारी उस समय विधानसभा उपाध्यक्ष भी थी। संयम लोढ़ा दूसरी बार 2003 में विधानसभा चुनाव जीते।
दो बार कांग्रेस से चुनाव जीतने वाले संयम लोढ़ा तीसरी बार 2018 में निर्दलीय चुनाव जीते।
भाजपा में एक अनार सौ बीमार वाली स्थिति -
भाजपा से तीर्थगिरी महाराज, पूर्व मंत्री ओटाराम देवासी, भाजपा के पूर्व जिलाध्यक्ष नारायण पुरोहित, पूर्व जिला प्रमुख पायल परसरामपुरिया, भाजपा के पूर्व जिलाध्यक्ष लुंबाराम चौधरी सहित टिकट केलिए दावेदारों की लंबी लिस्ट है। इन नामों के अतिरिक्त टिकट चाहने वाले अनेक लोग मैदान में है, कुल मिलाकर एक अनार सौ बीमार वाली स्थिति है।
कांग्रेस के नामों पर ज्यादा चर्चा नहीं --
सिरोही शिवगंज विधानसभा सीट से कांग्रेस के भी टिकट के अनेक दावेदार है, लेकिन एक दो उम्मीदवारों को छोड़कर दूसरे नामों पर चर्चा तक नहीं होती। संयम लोढ़ा के राजनीति में आने के बाद कांग्रेस में ज्यादा नेता पनप नहीं पाए, यह संयोग है या प्रयोग यह समझना भी दिलचस्प हैं। कांग्रेस से हरीश परिहार के नाम की चर्चा अवश्य होती है।