हमारी सुनो सरकार: जिस शहर को देखने के लिए हर रोज आते हैं हज़ारों पर्यटक, उसी शहर में एक ऐसी बस्ती, जहां के निवासी हैं मूलभूत सुविधाओं से महरूम

आज भी इस बस्ती की बहन बेटियों को खुले में ही शौच जाने के लिए मजबूर होना पड़ रहा हैं। आज भी यहां की महिलाएं अल सवेरे सूरज उदय होने से पहले या फिर रात का अंधेरा होने के बाद शौच से निवृत होने का कार्य करती हैं। ताकि उन्हें खुले में शौच जाते कोई देख ना लें। देश और प्रदेश की सरकारें लाख दावे करती हो पर....

गंदा नाला पार करते अम्बेडकर नगर कॉलोनी के बाशिंदे
  • गणपतसिंह मांडोली 9929420786

सिरोही। प्रदेश का एक मात्र हिलस्टेशन जिसे प्रदेश का सबसे ऊंचा शहर होने का गौरव हासिल हैं, जिसे प्रदेश की सबसे धनी नगरपालिका होने का रुतबा हासिल हैं, जिसे प्रदेश की सबसे पुरानी नगरपालिका होने का तमगा हासिल हैं, जिसे देखने के लिए हर रोज सैकड़ो नही हज़ारो पर्यटक यहां पहुंचते हैं। और ये पर्यटक इस शहर की खूबसूरत वादियों से लेकर यहां के दर्जनों पर्यटक स्थलों को देखने की लालसा रखते हैं। उसी शहर की एक ऐसी बस्ती की बदहाली से आज हम आपको रूबरू करवाने जा रहे हैं जिसे देखकर, सुनकर और पढ़कर आपको भी शर्मिंदगी महसूस हो जाएगी। पर क्या करें, जिम्मेदारों को ना तो इस बात के लिए शर्म आ रही हैं और ना ही ये जिम्मेदार इन बदहाल बस्तीवासियों की सुध ले रहे हैं। जी हां आज हम आपको राजस्थान की शान कहे जाने वाले माउंट आबू शहर की अम्बेडकर नगर कॉलोनी में निवासरत लोगो की दास्तान सुनाने जा रहे हैं जिसे सुनकर आप भी कहेंगे "बेशर्म सरकार।"

आज़ादी के 74 वर्षों बाद भी नही मिला पुश्तैनी घरों का पट्टा, ना ही कच्ची बस्ती का दर्जा

26 जनवरी 1950 को जब देश में संविधान लागू हुआ था तो देशवासियों के साथ साथ माउंट आबू की अम्बेडकर कॉलोनी, जनता कॉलोनी और इंदिरा कॉलोनी के लोगो ने भी खूब जश्न मनाया। यहां के बाशिंदों को भी तब लगा था कि अब इस देश में जनता की सरकार होगी, वोट से चुना व्यक्ति राजा बनेगा, और जनता के हितों के काम करेगा। पर जनतंत्र की घोषणा के 70 सालों बाद भी यहां के लोग अपने घर के पट्टे के हक से वंचित हैं। कहने को तो ये लोग माउंट आबू नगरपालिका के वार्ड संख्या 14, 15 और 16 के मतदाता है। पर इन मतदाताओं के पास सिर्फ वोट देने के अधिकार के अलावा एक भी अधिकार नही हैं। यहां के निवासी पिछले 70 सालों से अपने घरों के पट्टे के लिए नगरपालिका के चक्कर काट रहे हैं पर पीढ़ियां खत्म होने के बावजूद इन्हें पट्टा नसीब नही हो रहा हैं। विडम्बना देखिए अभी तक नगरपालिका ने इन बस्तियों को कच्ची बस्ती तक घोषित नही किया हैं। जिसके चलते सरकार की महत्वपूर्ण योजना प्रशासन शहरों के संग में भी इन बस्तीवासियों को अपना हक, अपना अधिकार नही मिल पा रहा हैं। हां माउंट आबू में मास्टर प्लान लागू करने लिए बनी कमेटी के सदस्यों ने इन बस्तीवासियों पर रहम जरूर दिखाया कि मास्टर प्लान में इसे नो-कंस्ट्रक्शन जोन में शामिल नही किया, वरना इन बस्तीवासियों को बेघर होने से भी कोई नही रोक सकता था। इन बस्ती वालों के पास घर के स्वामित्व का कोई दस्तावेज नही होने से इन्हें मूलभूत सुविधा से भी वंचित रहना पड़ रहा हैं। और ये लोग आज 21 वीं सदी में भी 16 सदी की तरह जीवन गुजारने को मजबूर हैं।

खुले में शौच जाने को मजबूर, प्रधानमंत्री का सपना हो रहा चूर-चूर

2014 में जब देश के प्रधानमंत्री और पद नरेंद्र मोदी आसीन हुए और देश को गंदगी से मुक्त करने, खुले में शौच से मुक्त करने तथा बेटियों की सुरक्षा को लेकर जब स्वच्छ भारत अभियान की शुरुआत की गई थी, तो माउंट आबू के अम्बेडकर नगर के निवासियों को भी अत्यधिक खुशी हुई थी कि चलो अब उनके घरों में भी शौचालय बनेंगे। पर जैसे ही नगरपालिका में इन बस्तीवासियों ने शौचालय के लिए आवेदन किया तो इन्हें घर के स्वामित्व वाले दस्तावेज के अभाव में निराशा ही हाथ लगी। और आज भी इस बस्ती की बहन बेटियों को खुले में ही शौच जाने के लिए मजबूर होना पड़ रहा हैं। आज भी यहां की महिलाएं अल सवेरे सूरज उदय होने से पहले या फिर रात का अंधेरा होने के बाद शौच से निवृत होने का कार्य करती हैं। ताकि उन्हें खुले में शौच जाते कोई देख ना लें। देश और प्रदेश की सरकारें लाख दावे करती हो कि देश प्रदेश खुले में शौच से मुक्त हो गया, पर आज भी प्रदेश के सबसे ऊंचे शहर की रहने वाली ये महिलाएं खुले के शौच जाने के लिए विवश हैं, और वो भी सिर्फ सरकार की निष्क्रियता के कारण।


ना बिजली, ना पानी, ना सड़क, गंदगी के बीच पलता बढ़ता जीवन

माउंट आबू की इस अम्बेडकर नगर कॉलोनी में सूरज ढलते ही अंधेरा छा जाता हैं। इस बस्ती के घरों में बिजली के कनेक्शन तक नही हैं। ना ही इस बस्ती वासियों के घरों में नल कनेक्शन हो पाए हैं। ऐसे में इस बस्ती की महिलाओं को आज भी सिर पर घड़ा उठाकर सार्वजनिक नल से पानी भरकर अपने घरवालों की प्यास बुझाने के लिए विवश होना पड़ रहा हैं।  बस्ती में आने जाने वाले मार्ग की अगर हालात देख ले तो हमारा यहां एक पल भी रुकने का मन नही करेगा। बस्ती और शहर के बीच एक बड़ा नाला हैं, जहां से पूरे शहर की गंदगी इस नाले में बहती हैं। और इस बस्ती के लोगो को यह गन्दा नाला पार कर शहर में जरूरत की सामग्री लेने जाना पड़ता हैं। पर नगरपालिका इस गंदे नाले पर एक पुलिया तक नही बना पा रही हैं। जिसके कारण इस बस्ती के लोगो को भारी दिक्कतों का सामना करना पड़ रहा हैं।


नेताजी का काम सिर्फ वोट मांगना, जीतने के बाद नही लेता कोई सुध

अम्बेडकर नगर के निवासियों के पास सफेद कुर्ता वाले नेता जी आते हैं, पर सिर्फ चुनावो के समय वोट मांगने। फिर चाहे वो सांसद का चुनाव हो, विधायक या नगरपालिका पार्षद के चुनाव। जब भी चुनाव होते हैं सभी पार्टियों के नेता हाथ जोड़ते इन मतदाताओं को लोक लुभावने वादे करके "अबकी बार घर घर बिजली और घर घर पानी" के साथ साथ "शौचालय और सड़क" के वादे खूब किए जाते हैं, पर आज तक ये नेता इन बस्ती वालों को एक भी सुविधा मुहैया नही करवा सके हैं। जिसके कारण यहां के लोगो का जीवन बद से बदतर होते जा रहा हैं। अब सरकार को चाहिए कि माउंट आबू की इस अम्बेडकर नगर कॉलोनी के निवासियों को भी मूलभूत सुविधा प्रदान करने हेतु कोई ठोस योजना बनाई जाए, ताकि इन बस्तीवासियों के जीवन स्तर को भी ऊंचा उठाया जा सके।